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कोरोना काल में सिंगरौली के युवाओं ने दी जिले को नई पहचान, शरद के बाद की उषा ने फैलाई शिक्षा की नई रोशनी

locationसिंगरौलीPublished: Oct 26, 2020 04:57:02 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

-कोरोना काल में मोबाइल पुस्तकाल से बच्चों को रिझाया-अब बच्चे करते हैं अपनी शिक्षिका का बेसब्री से इंतजार-इसी जिले के शरद पांडेय भी ऐसे ही मोबाइल टीचिंग से बच्चों को कर रहे शिक्षित

मोबाइल लाइब्रेरी वाली शिक्षिका उषा दुबे

मोबाइल लाइब्रेरी वाली शिक्षिका उषा दुबे

सिंगरौली. शिक्षा की अलख जलाने वाले शहर सिंगरौली की इस शिक्षिका के जज्बे को सलाम है। ये शिक्षिका एक जूनियर हाईस्कूल का स्टॉफ हैं। लेकिन कोरोना काल में जब सब कुछ बंद हो गया तो अपनी स्कूटी से यह निकल पड़ीं बच्चों को किताबों से जोड़ने। धीरे-धीरे यह अभियान बन गया। बच्चे जुड़ते गए और एक फसाना बन निकला।
इस कोरोना काल में सिंगरौली ने वो कर दिखाया है जो बड़े-बड़े नामचीन और शिक्षा के लिए देश भर में मशहूर शहरों के शिक्षक नहीं कर सके। स्मरण रहे कि पत्रिका ने सिंगरौली के शरद पांडेय की स्टोरी भी अपने पाठकों तक पहुंचाई थी। सिंगरौली के शाहपुर नवजीवन विहार के सरकारी स्कूल के शिक्षक शरद पांडेय ने कोरोना संक्रमण के शुरूआती दौर में जब स्कूल बंद हो गए तभी इन्होंने मोहल्ला कक्षा की शुरूआत की थी।
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मोहल्ला कक्षा के तहत शरद पांडेय ने अपनी बाइक में स्टैंड के मार्फत ब्लैक बोर्ड व लाउड स्पीकर फिट करा दिया और मोहल्ला-मोहल्ला घूम कर कक्षाएं संचालित करने लगे। दरअसल इन्होंने यह महसूस किया कि ऑनलाइन शिक्षण प्रणाली में एक तो बच्चे उतने सहज नहीं हो पा रहे हैं। इसकी स्वीकार्यता वैसी नहीं बन पा रही है जितनी अपेक्षा की जा रही है। दूसरे गांव-गिरांव के ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता बच्चों के लिए लैपटॉप और स्मार्ट फोन नहीं खरीद सकते, उनके लिए इन्होंने मोहल्ला कक्षा की शुरूआत की।
इसी जिले की माध्यमिक पाठशाला हर्रई पूर्व में कार्यरत शिक्षिका उषा दुबे बच्चों को कहानियां पढ़ाने और वाचन क्षमता बढ़ाने के लिए करीब दो महीने से मोहल्ले-मोहल्ले पहुंच रही हैं। हर मोहल्ले में करीब 15-20 बच्चे अलग-अलग आकर कहानियां पढ़ते हैं। साथ ही बच्चे अब अंग्रेजी भाषा बोलना भी सीख रहे हैं। इससे बच्चों के माता-पिता भी खुश हैं।
शिक्षिका उषा की कहानी भी शरद से मिलती जुलती है। लॉकडाउन में गरीब बच्चों की पढ़ाई रुकी तो इन्होंने खुद की स्कूटी को चलता फिरता पुस्तकालय बना लिया। सुबह 8 बजे से चार घंटे तक बच्चों के बीच रहना और उनको पढ़ाना अब इनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। बच्चे भी ‘किताबों वाली दीदी’ का सुबह से उठकर इंतजार करते हैं। स्कूटी की आवाज सुनकर वे दौड़ पड़ते हैं। स्कूटी में ज्ञान-विज्ञान से लेकर जरूरी विषयों की 100 किताबें मौजूद रहती हैं।
पुस्तकालय में कक्षा एक से लेकर आठवीं तक के बच्चों के लिए किताबें मौजूद रहती हैं। वे 4 किलो मीटर क्षेत्र में चिन्हित मोहल्ले में बच्चों को इकट्ठा करके पुस्तकें देती हैं। बच्चों को अलग-अलग खड़ा करके वाचन करने में लगे समय को बाकायदा नोट करती हैं। अगले दिन यह देखती हैं कि पढ़ाई के समय में कितना सुधार हुआ और कहां कमी रह गई। बच्चे करीब एक घंटे तक कहानियां पढ़ते हैं। कहानी के अलावा अंग्रेजी सहित अन्य विषयों पर भी चर्चा की जाती है।
उनका कहना है कि लॉकडाउन के बाद बच्चों की पढ़ाई एकदम रुक सी गई थी। चलते-फिरते इस पुस्तकालय ने तो बच्चों में उत्साह पैदा कर दिया है। अब आलम यह है कि बच्चे उनका इंतजार करते रहते हैं। उन्हें स्कूल जैसा माहौल मिल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस रविवार यानी 26 अक्टूबर के अपने रेडियो कार्यक्रम “मन की बात” में इनकी प्रशंसा की।

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