सिंगरौली

लाखों के राजस्व की चपत लगा रहे कोल परिवहन में लगे ट्रांसपोर्टर

सड़क सुरक्षा के निर्देश नजरअंदाज …..

सिंगरौलीJun 23, 2021 / 11:57 pm

Ajeet shukla

Transporters transporting coal in Singrauli are not paying RTO tax,Transporters transporting coal in Singrauli are not paying RTO tax,Transporters transporting coal in Singrauli are not paying RTO tax,Transporters transporting coal in Singrauli are not paying RTO tax

सिंगरौली. कोरोना की आपदा में उलझा प्रशासन सड़क सुरक्षा समिति के उन निर्देशों का पालन कराना भूल गया, जिससे प्रदेश को लाखों रुपए का राजस्व मिलने की संभावना है। अनलॉक में भी जब सभी स्थितियां सामान्य हो गई है। इसके बावजूद जिला प्रशासन का ध्यान निर्देशों का पालन कराने की ओर नहीं जा रहा है। बात बिना परमिट जिले में कोयला परिवहन कर रहे सैकड़ों भारी वाहनों की कर रहे हैं।
जिले में इस समय भी कोल परिवहन में लगे 90 फीसदी से अधिक वाहन छत्तीसगढ़ व उत्तर प्रदेश के हैं। इससे जिला और प्रदेश उनसे परमिट के बदले मिलने वाले राजस्व से वंचित है। यह रकम लाखों में होती है। क्योंकि जिले में कोयला परिवहन कर रहे वाहनों की संख्या एक हजार के करीब है। पूर्व में सड़क सुरक्षा समिति ने राजस्व के हो रहे नुकसान को देखते हुए यहां कोयला परिवहन में लगे वालों को परमिट लेना अनिवार्य किया था, लेकिन कवायद केवल निर्देश जारी करने तक सीमित होकर रह गई है।
सड़क सुरक्षा समिति ने वर्ष के पहले महीने में राजस्व को लग रही चपत के मद्देनजर निर्णय लिया था कि कोल परिवहन में लगे बाहरी यानी दूसरे राज्यों के वाहनों को प्रतिबंधित किया जाएगा। यहां उन्हें परिवहन की अनुमति तभी मिलेगी, जब उनके द्वारा यहां जिले से परमिट लिया जाएगा। कोल परिवहन में लगे वाहनों पर प्रतिबंध का निर्देश तो जारी हुआ, लेकिन प्रतिबंध लगाना संभव नहीं हुआ। यही वजह रहा कि ट्रांसपोर्टरों व मोटर मालिकों ने यहां का परमिट लेना जरूरी नहीं समझा और उत्तर प्रदेश व छत्तीसगढ़ के परमिट पर यहां पर कोल परिवहन में लगे हैं।
बचत के चलते निर्देश को कर रहे नजरअंदाज
कोल परिवहन में लगे वाहनों के मालिक थोड़ी सी बचत के चलते यहां का परमिट लेने से कतरा रहे हैं। ज्यादातर मोटर मालिक उत्तरप्रदेश में वाहन का पंजीयन कराना चाहते हैं। क्योंकि वहां पंजीयन के दौरान लगने वाले टैक्स और प्रक्रिया में अंतर है। यहां मध्य प्रदेश में पंजीयन के दौरान मोटर मालिक से एक बार में वाहन की कीमत का करीब 8 फीसदी रकम टैक्स के रूप में देना पड़ता है। यह रकम चार से पांच लाख के करीब होती है। जबकि उत्तरप्रदेश में वाहन का टैक्स हर तीन महीने पर लिया जाता है।
हर तीन महीने पर दी जाने वाली रकम केवल 11 से 12 हजार रुपए होती है। एमपी में टैक्स केवल एक बार चुकाना होता है। जबकि उत्तरप्रदेश में तीन महीने के अंतराल पर 15 वर्ष तक चुकाना पड़ता है। वैसे तो दोनों राज्यों के कुल टैक्स की तुलना की जाए तो एमपी में लिया जाने वाला टैक्स यूपी के पूरे 15 वर्षों में लिए जाने वाले टैक्स से करीब आधा होता है। लेकिन यूपी में टैक्स छोटी-छोटी किश्तों में लगता है। इसलिए मोटर मालिक वहीं पर पंजीयन कराना बेहतर समझते हैं। जबकि वाहन यहां एमपी में चलाते हैं। इससे एमपी को बड़े राजस्व का नुकसान होता है।
यह भी निर्देश, जो नजर अंदाज
– खदानों से वाहनों को 20 से 25 के समूह में निकालना।
– कोल परिवहन में वाहनों के ओवरलोडिंग की समस्या।
– वाहनों की रफ्तार नियंत्रित करने स्पीड गवर्नर लगाना।
– कोल वाहनों से होने वाली सड़क दुर्घटनाओं को रोकना।
– सड़क से परिवहन के चलते हो रहे प्रदूषण को कम करें।

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