scriptतीन दर्जन से अधिक दुग्ध समितियां बंद, सक्रिय हों तो बने बात | when close dairy society active in Singrauli, then industry be develop | Patrika News

तीन दर्जन से अधिक दुग्ध समितियां बंद, सक्रिय हों तो बने बात

locationसिंगरौलीPublished: Aug 12, 2020 11:56:39 pm

Submitted by:

Ajeet shukla

47 में से केवल 18 समितियां सक्रिय …..

milk

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सिंगरौली. लॉकडाउन के दौरान भारी संख्या में प्रवासी घर लौटे हैं। ऐसे में उनके लिए डेयरी का व्यवसाय फायदे का धंधा हो सकता है। दुग्ध संघ की पर्याप्त उत्पादन क्षमता के मद्देनजर इस क्षेत्र में प्रवासियों के सफल होने की पर्याप्त संभावना है। जरूरत है तो केवल प्रशासनिक स्तर पर प्रोत्साहन को लेकर विशेष अभियान शुरू करने की।
जिले में संचालित सहकारी दुग्ध संघ की ओर से पूर्व में उत्पादन व कलेक्शन के लिए 47 दुग्ध समितियों का गठन किया गया था, लेकिन वर्तमान में इनमें से केवल चितरंगी की 18 समिति सक्रिय हैं। बाकी की समितियां न ही दुग्ध का उत्पादन कर रही हैं और न ही उनकी ओर से दुग्ध का कलेक्शन किया जा रहा है। यही वजह है कि दुग्ध संघ को पर्याप्त मात्रा में उत्पाद नहीं मिल पा रहा है।
गौरतलब है कि दुग्ध की पैकिंग कर बिक्री करने वाले दुग्ध संघ को वर्तमान में हर रोज केवल 1600 लीटर दुग्ध प्राप्त हो रहा है। जबकि संघ की ओर से स्थापित संयंत्र की क्षमता 10 हजार लीटर दुग्ध प्रतिदिन लेने की है। इस तरह से जिले में दुग्ध उत्पादन के लिए डेयरी व्यवसाय शुरू करने से सफल होने की पर्याप्त संभावना है।
मवेशी पर्याप्त, लेकिन उत्पादन बहुत कम
जिले में मवेशियों की संख्या के मद्देनजर दुग्ध का उत्पादन काफी कम है। विभागीय अधिकारियों के मुताबिक जिले में गौ वंश के मवेशियों की संख्या सवा लाख के करीब है। जबकि भैंस वंश के करीब 40 हजार मवेशी हैं। इसके बावजूद दुग्ध का उत्पादन हर रोज केवल 30 से 40 हजार लीटर तक सीमित है। प्रति मवेशी की दर से यह उत्पादन बहुत कम है। इसकी मुख्य वजह मवेशियों का देसी नस्ल का होना है।
नस्ल सुधार के लिए शुरू है अभियान
ज्यादातर मवेशी देसी नस्ल के हैं। इसलिए मवेशियों की पर्याप्त संख्या होने के बावजूद दुग्ध उत्पादन कम है। पशुपालन विभाग के अधिकारी इस वस्तुस्थिति से अवगत हैं। यही वजह है कि उनकी ओर से वर्तमान में नस्ल सुधार अभियान की शुरुआत की गई है। मवेशियों का कृत्रिम गर्भाधान कर मवेशियों की उन्नत नस्ल तैयार करने की कोशिश की जा रही है। ताकि जिले में दुग्ध का उत्पादन बढ़ाया जा सके।
व्यावसायिक नहीं पालकों का नजरिया
जिले में दुधारू मवेशियों के पालन का रवैया व्यावसायिक नहीं है। मवेशी पालक केवल निजी उपयोग के लिए मवेशी का पालन करते हैं और दूध निकालने के बाद मवेशियों को ऐरा छोड़ देते हैं। जिला प्रशासन को इस दिशा में भी ध्यान देने की जरूरत है। अनुदान देने सहित अन्य तरीके अपना कर पालकों के मन में व्यावसायिकता का बीज बोया जा सकता है।
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