मूल रूप से नागौर निवासी पर्यावरण प्रेमी हिम्मताराम 1975 से लेकर अब तक साढ़े पांच लाख पौधे लगा चुके हैं। इन्हें वर्ष-2015 में राजस्थान सरकार की ओर से राजीव गांधी पर्यावरण संरक्षण पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। सोमवार को एक दिवसीय माउंट आबू प्रवास पर आए हिम्मताराम ने पत्रकारों से रूबरू होते हुए कहा कि माउंट आबू के पर्यावरण एवं वन्य क्षेत्र को सुरक्षित रखने के लिए हर व्यक्ति को आगे आना होगा, क्योंकि बढ़ते विकास के साथ माउंट के पेड़-पौधों का संरक्षण रखना भी जरूरी है।
वन सम्पदा के लिए घातक लालटेनिया व गुजराती बबूल उन्होंने कहा कि इन हरे भरे पेड़ों से हमें बेहतरीन ऑक्सीजन व छांव मिलती है। परिंदों को पेड़ों पर बसेरा बनाने की जगह मिलती है। यदि पेड़-पौधे सुरक्षित हैं तो वन्यजीव भी सुरक्षित हैं। उन्होंने कहा कि मानव जाति भी इन्हीं पेड़ों के कारण सुरक्षित रह सकती हैं। उन्होंने माउंट आबू में फैले लालटेनिया (लेन्टेना) पौधा, जो कि तेज गति से पूरे माउंट आबू की पहाडि़यों पर फैल चुका है, तथा माउंट आबू की तलहटी से गुजराती बबूल की कंटीली झाडि़यों के बढ़ने को लेकर भी खासी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि माउंट आबू में अगर लालटेनिया व गुजराती बबूल की कंटीली झाड़ियां फैल गई तो यहां का पूरा वन नष्ट हो जाएगा। इनसे वन सम्पदा को काफी नुकसान हो सकता है। इस पर समय रहते रोक लगानी जरूरी है।
दावानल व आग पर काबू पाने को बजट नाकाफी पर्यावरण प्रेमी ने राज्य सरकार द्वारा हर वन क्षेत्र को दी जा रही दो करोड़ की राशि को भी कम बताया। उन्होंने बताया कि बजट के अभाव में दावानल व आग सरीखी घटनाओं पर नियंत्रण पाने में कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस दौरान बैठक में मौजूद वन कर्मियों व शहर वासियों ने भी वन्य क्षेत्र में हो रही समस्याओं से उन्हें अवगत करवाया।
फ़ोटो - माउंट आबू. वन विभाग कार्यालय में बैठक के दौरान जानकारी देते पद्मश्री हिम्मताराम।