संसाधनों की कमी से भी परेशानीमाउंट आबू का बड़ा जंगल होने के साथ ही विभाग के पास संसाधनों की भारी कमी परेशानी बढ़ा रही है। 328 किलोमीटर क्षेत्र व 32 हजार हैक्टेयर में फैले जंगल में विभाग के पास संसाधन नहीं होने के कारण वन कार्मिकों को असुविधाओं से गुजरना पड़ता हैं। विभाग के पास करीब एक दर्जन से भी ज्यादा नाके हैं जहां पर तैनात विभाग के कर्मचारी को एक उपकरण दिया जाता है जिसे आम लोगों द्वारा जंगल में आग लगने की सूचना मिलती है या धुंआ दिखाई देने पर उस उपकरण से उच्च अधिकारियों को सूचना दी जाती है। ऐसे में बिना लोकेशन ही बमुश्किल आग बुझाने के लिए टीम मौके पर पहुंचती है। ऐसे में कई बार आग बुझाने में कई दिन भी लग जाते हैं। लेकिन आग बुझाने वाले कर्मचारियों व मजदूरों लिए पानी व भोजन की व्यवस्था में भी परेशानी रहती है।
अब तक नहीं आग पर काबू गर्मियों के दिनों में माउंट आबू की पहाडि़यों पर लगने वाली आग पर काबू पाने के लिए वन विभाग को मशक्क्कत करनी पड़ रही है। विभाग के पास वन कर्मी, वन मित्र, वन मजदूर व सहयोगियों को मिलाकर करीब सौ से भी ज्यादा कर्मचारी होने के बावजूद आग पर काबू नहीं पाया जा सका है।
उधर आने वाले दिनों में अप्रैल, मई व जून महीने में भयंकर गर्मी के चलते आग की घटनाओं के बढऩे की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता।2017 में हालात हुए थे भयावह
ऐसे में विभाग को इस ज्वलंत समस्या को लेकर ठोस निर्णय लेना पड़ेगा। अन्यथा 2017 की घटना को फिर दोहराया जा सकता है। 2017 में माउंट की पहाडिय़ों पर विभाग की उदासीनता के कारण आग ने विकराल रूप ले लिया था। ऐसे में हेलीकॉप्टर से पानी डाल कर बमुश्किल वन संपदा व जीव जंतुओं को बचाया गया था।
इन्होंने बताया... वन कर्मियों को आग बुझाने का प्रशिक्षण दिया गया था। काफी स्थानों पर आग लग रही है। कई स्थानों पर बुझा दी गई है। जिन स्थानों से आग की सूचना मिल रही है वहां पर टीम भेजी जा रही है।
गजेन्द्र सिंह, रेंजर वन विभाग, माउंट आबू अलर्ट रहना होगा आग की घटनाओं को लेकर वन विभाग के अलावा हम सबको अलर्ट रहना होगा। क्योंकि जंगल नष्ट हो गया तो माउंट आबू का वातावरण पूरा खराब हो जाएगा। इसके लिए हर व्यक्ति की यह जिम्मेदारी होती है।
महेन्द्र दान चार्स, वनप्रेमी . माउंट आबू