गौरतलब है कि पुरातन काल में प्रत्येक घर में गोवंश रखा जाता था। लोग उसे बड़े प्रेम से पालते थे। कालांतर में आधुनिकता के दौर की वजह से यह गोवंश घरों से निकलकर गोशालाओं तक सीमित रह गया। वर्तमान समय में जो भी लोग अपने घरों पर गोवंश पालते है, वे भी उन्हें अपने घरों में रखने के बजाय उसका दूध निकालने के बाद खुले में घुमने के लिए छोड़ देते है। ये गोवंश दिन भर बाजारों व गली मौहल्लों में भ्रमण कर अपना पेट भरते है और सांझ ढलने पर मालिक उसे फिर से अपने घर ले जाकर बांध देते है। यह क्रम अनवरत चलता रहता है। इनमें से कई गोवंश ऐसे भी है जो अब दुधारू नहीं रहे। ऐसे में उनके मालिकों ने उन्हें बेसहारा छोड़ दिया है। इस प्रकार के गोवंश अब अपना पेट भरने के लिए इधर-उधर मुंह मारते दिखाई देते है।
गोसेवा की आड़ में पनप रहा गौरखधंधा सडक़ों पर बेसहारा घुम रहे इन गोवंशों के चारा पानी की समस्या का तय समय पर निराकरण नहीं होने तथा स्वायत्तशासी संस्थाओं व स्थानीय गोशालाओं की इनके प्रति उदासीनता के परिणाम स्वरूप गोसेवा की आड़ में अपने निहित स्वार्थो की पूर्ति करने वालों ने इसमें फायदा देख गोसेवा के नाम से संस्थाएं बनाकर लोगों से पुण्य कमाने का प्रलोभन देकर चांदी काटने वालों की संख्या अब उपखंड क्षेत्र में निरंतर बढ़ती जा रही है। जिसका सीधा असर क्षेत्र में संचालित होने वाली गोशालाओं पर पड़ रहा है। पहले वे लोग जो गोसेवा के लिए गोशालाओं में दान किया करते थे। जिससे गोशाला को गोवंश की सेवा में सहयोग मिलता था। वह अब निरंतर घटने लगा है। इधर, सरकार की ओर से समय पर अनुदान नहीं मिलने से गोशालाओं की स्थिति विकट होती जा रही है। गोशाला संचालकों की माने तो कथित गोसेवक किसी घायल गोवंश का रेस्क्यू कर उसे आखिरकार गोशाला में ही लेकर आते है। यहां लाकर वे अपने कार्य की इतिश्री कर लेते है उसके बाद उसका उपचार गोशाला को ही करवाना पड़ता है। ऐसे में इनका कार्य गोवंश को महज चारा डालने तक का ही रह जाता है। इस मामले में प्रशासन का भी मानना है कि इससे गोशालाओं पर असर हो रहा है। यदि ऐसा है तो इन स्वयंसेवी संस्थाओं का अपना सेंटर खोलकर वहां उनका उपचार करवाना चाहिए ताकि गोशालाओं की अर्थ व्यवस्था पर इसका असर नहीं हो। साथ ही हर साल इस प्रकार की संस्थाओं की ऑडिट भी होना जरुरी है।
यहां दिखती है पशु सेवा की दिवानगी यदि आप गोसेवा की दिवानगी देखना चाहते है तो उपखंड क्षेत्र के पालड़ी एम चले जाइए। जहां पूर्व पंचायत समिति सदस्य मंगल मीना पिछले कई सालों से राजमार्ग पर घायल होने वाले पशुओं को रेस्क्यू करने का काम कर रहे है। अब तक इन्होंने दुर्घटना में घायल हुए सैकड़ों की संख्या में गोवंश का रेस्क्यू कर उनका उपचार करवाया है। इसके लिए वे किसी से चंदा एकत्रित करते है या फिर प्रचार कर दान के रूप में रूपया एकत्रित करते है,ऐसा बिल्कुल नहीं है। पिछले कई सालों से गोवंश पर अपनी कमाई का ही पैसा खर्च कर रहे है। जिसमें घायल गोवंश के लिए वाहन की व्यवस्था करना हो या फिर अन्य खर्च। यदि किसी ने अपनी स्वेच्छा से दे दिया तो ठीक है अन्यथा किसी से इसकी मांग नहीं करते। इतना ही नहीं राजमार्ग पर घायल होने वाले पशुओं के लिए पशु एम्बूलेंस की व्यवस्था करवाने के लिए वे पिछले आठ साल से भी अधिक समय से निरंतर संघर्ष कर रहे है। तत्कालीन भाजपा सरकार के कार्यकाल में तो उन्होंने पशु एम्बूलेंस के लिए अपने खून से पत्र लिखकर सरकार को भेजा था। उनका कहना है कि जब तक सरकार राजमार्ग पर घायल होने वाले पशुओं के लिए एम्बूलेंस की व्यवस्था नहीं करवा देती तब तक उनका संघर्ष अनवरत जारी रहेगा।
उपचार की जिम्मेदारी गोशाला की हादसे में घायल और बीमार होने वाले गोवंश की जानकारी मिलने पर गोशाला की ओर से उन्हें गोशाला लाकर उपचार करवाया जाता है। साथ ही अन्य संस्थाओं वाले भी घायल गोवंश को उपचार के लिए गोशाला ही लाकर छोड जाते है। जिनका गोशाला को उपचार करवाना पड़ता है। कुछ लोग तो गोसेवा के नाम पर सिर्फ सोशल मीडिया में छाए रहने के लिए फोटो खिंचवाते है।
फतेहसिंह राव, अध्यक्ष, गोशाला शिवगंज।