सिरोही

भ्रष्टाचार का राशन कब तक!

सिरोही. जिनके खून में भ्रष्टाचार का राशन मिला होता है उनका पूरा तंत्र ही भ्रष्टाचार के सिस्टम के तहत काम करता है। वे उसका तरीका भी ढूंढ लेते हैं। चूरू से स्थानांतरित होकर सिरोही आए मोहनलाल देव को रसद अधिकारी के तौर पर जिम्मेदारी संभाले अभी एक महीना ही हुआ था कि ‘राशनÓ के लिए रिश्वत लेते धर लिए गए। वह भी सिरोही के सर्किट हाउस में।

सिरोहीOct 19, 2019 / 10:09 am

Amar Singh Rao

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सिरोही से अमरसिंह राव…
सिरोही. जिनके खून में भ्रष्टाचार का राशन मिला होता है उनका पूरा तंत्र ही भ्रष्टाचार के सिस्टम के तहत काम करता है। वे उसका तरीका भी ढूंढ लेते हैं। चूरू से स्थानांतरित होकर सिरोही आए मोहनलाल देव को रसद अधिकारी के तौर पर जिम्मेदारी संभाले अभी एक महीना ही हुआ था कि ‘राशनÓ के लिए रिश्वत लेते धर लिए गए। वह भी सिरोही के सर्किट हाउस में।
सिरोही जिले में चार सौ राशन डीलर हंै। सबसे पहले रसद अधिकारी ने राशन डीलरों में डर बिठाने के लिए गांव-गांव दुकानों पर ताल ठोकी। कुछ को चेतावनी दी तो दो राशन डीलरों के लाइसेंस तक निलम्बित कर दिए। इस पर उनको डीलर संघ के अध्यक्ष मुकेश अग्रवाल को रसद अधिकारी को समझाने भेजना पड़ा। पर रसद अधिकारी ने लगे हाथ यह धमकी दे दी कि सभी डीलरों से एक-एक हजार रुपए ‘बंधीÓ के रूप में ले आओ अन्यथा लाइसेंस निरस्त कर देंगे। सबसे बड़ा सवाल यह कि ज्वाइन करते ही किसी अफसर में खुलेआम रिश्वत मांगने का साहस आया कैसे? क्या उन पर किसी का ‘आशीर्वादÓ है या फिर वाकई इनके खून में भ्रष्टाचार का इतना अधिक राशन मिल गया है कि उन्हें अब जाहिर होने का डर ही नहीं?
क्या वाकई हमारा सिस्टम इतना खराब है कि बिना रिश्वत के कोई काम नहीं होता? छोटे-मोटे काम से लेकर तबादले तक में रिश्वत ली जाती है। थानेदारों में मलाईदार थानों में पोस्टिंग पाने के लिए बोली लगती है। बलात्कार सरीखे संवेदनशील मामलों तक में नाम हटाने के तक लिए रिश्वत मांगी जाती है। अभी तीन महीने पहले सिरोही में महिला थाने के कांस्टेबल नारायणसिंह को 18 हजार रुपए की रिश्वत लेते पकड़ा था। कांस्टेबल ने बलात्कार के एक मामले में मदद करने के नाम पर 30 हजार रुपए मांगे थे लेकिन बाद में 18 हजार देने पर सहमति बनी और धर लिए गए। नगर निकाय, सार्वजनिक निर्माण विभाग, खनन, परिवहन, आबकारी विभाग सहित जनता से जुड़े अन्य महकमों में बिना रिश्वत काम नहीं होना जग जाहिर है।
सवाल यह उठता है कि राशन कार्ड बनाने से लेकर दुकान आवंटन करवाने तक के लिए रिश्वत देनी पड़ती है तो इसके लिए दोषी कौन है? सरकारी तंत्र, हमारा सिस्टम या कोई और? इसके लिए जनता के नुमाइंदे भी कम जिम्मेदार नहीं हैं? क्या कोई अकेला रसद अधिकारी जब चाहे राशन की दुकान का लाइसेंस निरस्त कर दे और जब चाहे तब बहाल?
बरहाल बढ़ते भ्रष्टाचार के मामले सरकार की मंशा पर भी सवालिया निशान लगा रहे हैं। बंधी की जड़ें कितनी गहरी हैं, सब जानते हैं। जब रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तारी होती है तो फिर अपराधी को तत्काल सरकारी सेवा से बर्खास्त क्यों नहीं किया जाता? क्यों उसे मात्र निलंबित कर बचने के जुगाड़ का मौका दिया जाता है। विचारणीय यह भी है कि रिश्वत मामलों में सजा बहुत कम होती है। सरकार को ऐसे ‘बंधीÓ के खेल को रोकने के लिए सख्ती दिखानी होगी। जनता और व्यापारियों को तत्काल राहत की दरकार है। भ्रष्ट तंत्र समाप्त होने पर ही सही मायने में विकास हो पाएगा।

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