सिरोही. हादसे के बाद मौके पर सबसे पहले पहुंचने वालों में दो मुस्लिम शख्स थे जिन्होंने कार में फंसे घायलों को बाहर निकाला और अस्पताल पहुंचाने में मदद की। इनको इस बात का दु:ख भी हैकि हादसे में दो जनों को लाख कोशिशों के बावजूद नहीं बचा पाए।
अब्दुल लतीफ और मौनी अनस दोनों फोरलेन के पास होटल चलाते हैं और जिस समय हादसा हुआ उस जगह से इनकी होटल करीब सौ मीटर के फासले पर ही है। यह दोनों घटनास्थल पर सबसे पहले पहुंचने वालों में शामिल थे।
अब्दुल और अनस ने ‘पत्रिकाÓ को बताया कि दोपहर के करीब साढ़े बारह बज रहे होंगे। हम अभी होटल के काउंटर पर बैठे ही थे कि अचानक किसी के टकराने की तेज आवाज आई, कुछ संभलते की ऐसी ही आवाज फिर आई। हमें समझते देर नहीं लगी कि कोई एक्सीडेंट हुआ है। हम दौड़कर फोरलेन पर आए देखा तो तीन कारें इधर-उधर पलटी-बिखरी मिली। भीतर फंसे लोग चिल्ला रहे थे। हम भागकर उनके पास गए। एक कार में लोग बुरी तरह से फंसे हुए थे। हमने दरवाजा तोड़-मरोड़ कर एक-एक कर सबको बाहर निकाला और उन्हें सिरोही अस्पताल पहुंचाया।
अल्लाह ताला का शुक्र है कि हमें रमजान महीने में नेक काम करने का मौका मिला।
सिरोही. मेरे मम्मी-पापा कहां है…वे यहां दिख क्यों नहीं रहे… प्लीज उनसे मिलाओ ना। यह कहना है इस हादसे में अपने मम्मी-पापा को हमेशा-हमेशा के लिए खो चुके दीपिका और रमन का।
दीपिका नौंवीं और रमन बारहवीं में पढ़ते हैं। ये दोनों मम्मी-पापा के साथ छुट्टियों में घूमने हरियाणा गए थे और वहां से फिर गुजरात लौट रहे थे। दीपिका बताती हैं कि वे तो सड़क पर आराम से चल रहे थे। कहीं कोई परेशानी नहीं आई। फिर हादसा कैसे हुआ, यह समझ में नहीं आ रहा। पूछती है अंकल पता करो ना… जहां दुर्घटना हुई वहां सीसीटीवी कैमरा है क्या? पता तो चले कि दुर्घटना हुई कैसे? फिर थोड़ी देर कुछ सोचती है और बोलती है..पापा-मम्मी कहां गए…मुझे उनके पास जाना है..कोई कुछ बताता क्यों नहीं? पास खड़ी उसकी आंटी दिलासा देती है कि उनका दूसरे कमरे में इलाज चल रहा है लेकिन वह गर्दन घूमाकर चारों तरफ देखती है लेकिन वहां उसे कोई नजर नहीं आता। फिर उसकी आंखें भर जाती है और वह खामोश बैठी रहती है। ठीक ऐसी ही हालत उसके भाई रमन की भी है। वह भी बार-बार पलंग से उठता है और इधर-उधर मम्मी-पापा को खोजता है। जब मम्मी-पापा आसपास दिखाई नहीं देते तो बहन के पास आकर बैठ जाता है।