ये गांव बैंकों से वंचित (Village Without Bank in Rajasthan)
भाखर क्षेत्र के जायदरा, टांकिया, क्यारी, दोयतरा, बोरीबूज, पाबा, दानबोर, रणोरा, भमरिया, बुजा, उपलीबोर, निचलीबोर, जाम्बुड़ी, मीन तलेटी, बोसा राड़ा, उपलागढ़, निचलागढ़, निचलाखेजड़ा, उपलाखेजड़ा आदि गांव बैंकिंग सुविधाओं से वंचित है। क्षेत्र के सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों व पेंशनधारियों के लिए नजदीकी बैंक भाखर क्षेत्र से दूर देलदर व अम्बाजी में स्थित है। क्षेत्र के गांवों में बैंक न होने व सेवा का प्रचार-प्रसार न होने से इन सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसके अलावा जमा धनराशि पर ब्याज से तो वंचित रहना पड़ता है।
भाखर क्षेत्र के जायदरा, टांकिया, क्यारी, दोयतरा, बोरीबूज, पाबा, दानबोर, रणोरा, भमरिया, बुजा, उपलीबोर, निचलीबोर, जाम्बुड़ी, मीन तलेटी, बोसा राड़ा, उपलागढ़, निचलागढ़, निचलाखेजड़ा, उपलाखेजड़ा आदि गांव बैंकिंग सुविधाओं से वंचित है। क्षेत्र के सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों व पेंशनधारियों के लिए नजदीकी बैंक भाखर क्षेत्र से दूर देलदर व अम्बाजी में स्थित है। क्षेत्र के गांवों में बैंक न होने व सेवा का प्रचार-प्रसार न होने से इन सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसके अलावा जमा धनराशि पर ब्याज से तो वंचित रहना पड़ता है।
इस तरह रखते हैं धन सुरक्षित
पुरानी परम्परा को अपनाने वाले उपला टांकिया निवासी अस्सी वर्षीय फागणाराम गमेती ने बताया कि भाखर के दो दर्जन गांवों में आज भी बैंक की सुविधा नहीं है। ऐसे में लोग मजबूरी में परम्परागत तरीकों का सहारा लेते हैं। परम्परा के मुताबिक सोने-चांदी के जेवरात व रुपए पैसे कपड़े की थैली में बांधकर मिट्टी की हांडी में डाल देते हैं। उसके उपर इन्ही का बनाया हुआ मिट्टी का ढक्कन लगाकर लीप देते हैं और घर के अंदर गड्ढा खोदकर उसमें हांडी को रख देते हैं और फि र ऊपर से लिपाई कर देते हैं। भविष्य में कभी जरूरत पडऩे पर पुन: इन्हें निकालकर उपयोग में लिया जाता है। जरुरत पूरी होने पर फिर गाड़ दिया जाता है। जैसा कि आदिवासी महिला जेपली बताती है कि अमुमन हम जिस जमीन में जेवरात या नकदी छिपाते हैं, उसे जाहिर नहीं होने देते। यानी परिवार के खास सदस्यों को ही इसकी जानकारी होती है। बाहर खबर तक नहीं पहुंचती। क्योंकि बाहरी लोगों को पता चलने पर चोरी का डर रहता है।
पुरानी परम्परा को अपनाने वाले उपला टांकिया निवासी अस्सी वर्षीय फागणाराम गमेती ने बताया कि भाखर के दो दर्जन गांवों में आज भी बैंक की सुविधा नहीं है। ऐसे में लोग मजबूरी में परम्परागत तरीकों का सहारा लेते हैं। परम्परा के मुताबिक सोने-चांदी के जेवरात व रुपए पैसे कपड़े की थैली में बांधकर मिट्टी की हांडी में डाल देते हैं। उसके उपर इन्ही का बनाया हुआ मिट्टी का ढक्कन लगाकर लीप देते हैं और घर के अंदर गड्ढा खोदकर उसमें हांडी को रख देते हैं और फि र ऊपर से लिपाई कर देते हैं। भविष्य में कभी जरूरत पडऩे पर पुन: इन्हें निकालकर उपयोग में लिया जाता है। जरुरत पूरी होने पर फिर गाड़ दिया जाता है। जैसा कि आदिवासी महिला जेपली बताती है कि अमुमन हम जिस जमीन में जेवरात या नकदी छिपाते हैं, उसे जाहिर नहीं होने देते। यानी परिवार के खास सदस्यों को ही इसकी जानकारी होती है। बाहर खबर तक नहीं पहुंचती। क्योंकि बाहरी लोगों को पता चलने पर चोरी का डर रहता है।