सदस्यों ने बताया कि प्रथम दृष्टया तो संस्थान में कई कमियां पाई गई। बाल कल्याण समिति की अनुमति व बिना पंजीयन के बिना संस्थान का संचालन हो रहा है। बिना किसी सरकारी प्रमाण पत्र के कोई भी बालिकाओं एक जगह नहीं रख सकता, चाहे परिजनों की अनुमति हो या ना हो। किसी को यह भी अधिकार नहीं है कि बच्चे शिक्षा से वंचित हो या बच्चों का शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो। उनके संस्था प्रधान से बात करने पर उन्होंने कहा कि यहां के बच्चे कभी बीमार ही नहीं होंगे जो सम्भव नहीं है। संस्थान के संचालकों से कोई भी सवाल करने पर संतोषप्रद जवाब नहीं मिला। जांच रिपोर्ट के बाद इनके संचालकों को तलब कर कारण पूछे जाएंगे।
आरटीई समिति अध्यक्ष व आयोग सदस्य एसपी सिंह ने बताया कि दीक्षित के दो केन्द्र बताए गए थे। लेकिन जांच करने पर तीन-चार केन्द्र और मिले हैं। माउंट आबू में दो केन्द्र और मिले हैं। यह एक सुधारगृह न होकर एक जेल के समान है। सुरक्षात्मक दृष्टि से भी संस्थान सही नहीं है। बालिकाओं को आरटीई के तहत मूलभूत शिक्षा ही नहीं मिल रही है।
सदस्यों ने बताया कि संस्थान में केवल दो बालिकाएं ही १०वीं उत्तीर्ण है। बालिकाओं से जब पूछा गया कि वह भविष्य में क्या बनना चाहती तो सभी ने कहा कि वे कुछ नहीं बनेंगे, केवल आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण करेंगे। किशोर न्याय अधिनियम के तहत भी कोईरजिस्ट्रेेशन नहीं करवाया गया है। बालिकाएं पूर्णतया असुरक्षित वातावरण में रह रही है, जहां उनके मनोरंजन, खेलकूद व शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। माउंट आबू के आश्रम में करीब ६० बालिकाएं मिली है। दोनों संस्थान में केवल दो बालिकाएं ही राजस्थान की थी। शेष सभी अन्य राज्यों से यहां रह रही है। वहीं नेपाल से नयाखेड़ा स्थित संस्थान में करीब २० बालिकाएं हैं।
आयोग सदस्य व मनोचिकित्सक साधनासिंह ने बताया कि बालिकाओं का शारीरिक व मानसिक विकास अवरूद्ध हो रहा है। शारीरिक विकास के लिए बच्चों के खेलने के लिए पर्याप्त जगह होनी चाहिए। पूरा भवन इस प्रकार बना है कि कहीं से भी अंदर धूप नहीं आ सकती है। जब बालिकाएं एक भवन में बंद रहेगी तो मानसिक विकास प्रभावित होना लाजिमी है। बालिकाओं को केवल आध्यात्मिकता का ज्ञान दिया जा रहा है। व्यावहारिक ज्ञान की जानकारी नहीं मिल रही।