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सिरोही

दुबारा शिलान्यास और लोकार्पण का क्या औचित्य!

दूसरों को ज्ञान देना बहुत आसान है लेकिन खुद अमल करना उतना ही मुश्किल।

सिरोहीApr 04, 2018 / 10:43 am

Bharat kumar prajapat

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सिरोही से त्रिलोक शर्मा की टिप्पणी…

पर उपदेश कुशल बहुतेरे… अर्थात दूसरों को ज्ञान देना बहुत आसान है लेकिन खुद अमल करना उतना ही मुश्किल। आज हर कोई एक दूसरे को ज्ञान देने पर तुला है। इसके साथ उपदेश सुनने वाले भी बहुत हैं। इस आदान-प्रदान में अमल कोई नहीं कर रहा। आज का राजनीतिक परिदृश्य भी इसी के इर्द-गिर्द घूम रहा है। भाषण में कुछ बोला जाता है और हकीकत में कुछ और होता है। बहरहाल, जनता के धन का दुरुपयोग बदस्तूर जारी है।
बात विकास की है और नेता यह कहते नहीं थकते कि गांव, शहर, जिले के विकास में धन की कमी नहीं है। ऐसा नहीं है कि ७० साल में विकास नहीं हुआ, धन भी खूब खर्च हुआ पर वास्तविकता में गांवों की हालत जस की तस है। ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे हैं वहीं राज्यमंत्री इन दिनों दस दिन के ‘चुनावी’ दौरे पर निकले हुए हैं। सिरोही-शिवगंज विधानसभा क्षेत्र में लोकार्पण व शिलान्यास में व्यस्त हैं। इनमें अधिकांश वही काम हैं जिनका १७ दिसम्बर २०१७ को प्रभारी मंत्री के मुख्य आतिथ्य में राज्य सरकार के 4 वर्ष पूर्ण पर जिला स्तरीय समारोह में लोकार्पण व शिलान्यास किया गया था। इनमें एक वर्ष में स्वीकृत अथवा पूर्ण 140 करोड़ की लागत के 109 कार्य शामिल थे। शिलापट्ट पर ‘ग्रामीण गौरव पथ योजना फेज तृतीय सम्पर्क सडक़ झाड़ोली वीर’ शिलान्यास व ‘ग्रामीण गौरव पथ योजना फेज द्वितीय नारादरा पानी की टंकी से लोटीवाड़ा होते हुए केसर सिंह सोलंकी के घर मनोरा मार्ग’ लोकार्पण और तारीख १७ दिसम्बर २०१७ अंकित है। सांसद, विधायकों और जिला प्रमुख के नाम भी कतार में लिखे हुए हैं। ये तो बानगी है और दौरा जारी है। साढ़े तीन माह पूर्व शिलान्यास हुए कार्य क्या अब तक शुरू भी नहीं हो पाए हैं? सवाल यह है कि अब ऐसी कौन सी आफत आ गई कि इनका पुन: लोकार्पण व शिलान्यास करना पड़ गया? क्या जनता के धन के दुरुपयोग को नेताओं ने शगल बना लिया है? जनता को लेखा-जोखा देने की बात तो जोर-शोर से की जाती है पर हकीकत इससे कोसों दूर है। आबूरोड के एक व्यक्ति की मृत्यु के दो वर्ष बाद परिजनों को प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना का लाभ मिला। अतिवृष्टि- अग्निकाण्ड पीडि़त लोग मुआवजे के लिए तरस रहे हैं। पेयजल व बिजली समस्या सुलझाई नहीं जा रही। अतिवृष्टि के दौरान टूटे पुलों की मरम्मत व पुनर्निर्माण राशि फाइलों में अटकी है। इनके लिए तत्परता दिखाने की फुर्सत किसी मंत्री-नेता को नहीं है।
अब वक्त आ गया है कि अपने को ‘चौकीदार’ घोषित करने वालों से जनता पाई-पाई का हिसाब मांगे। एक ओर जनता बेरोजगारी, महंगाई व मूलभूत समस्याओं से जूझ रही है वहीं चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे नेता ‘बधाई’ के नाम पर
मिथ्या प्रचार में लाखों की राशि खर्च कर रहे हैं। चुनाव में ऐसे नेताओं का कहीं हिसाब बराबर नहीं हो जाए।

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