अब 24 जुलाई को सीबीआइ की तरफ से आरोपों पर बहस की जाएगी। ध्रुव गुप्ता की ओर से धारा 417 लगाए जाने का भी विरोध करते हुए कहा गया कि गुरमीत ने किसी के साथ धोखा नहीं किया है। इन साधुओं को मोक्ष प्राप्त करना था, इसलिए वे खुद नपुंसक बने। इसमें गुरमीत का कोई लाभ नहीं था।
कोई भी इंसान धोखाधड़ी तभी करता है,जब उसका कोई लाभ हो। मोक्ष केवल मरने के बाद ही मिल सकता है, इसलिए धारा 417 भी नहीं बनती। इसके अलावा 120बी पर गुरमीत के वकील और दोनों डॉक्टरों एमपी सिंह एवं पंकज गर्ग के वकीलों ने कहा कि आपराधिक षड्यंत्र की धारा कतई नहीं बनती।
यह मान भी लिया जाए कि गुरमीत ने साधुओं को मोक्ष प्राप्ति के लिए नपुंसक हो जाने को कहा था, लेकिन इससे डॉक्टरों को क्या लाभ होना था। डॉक्टरों को तो साधुओं ने कहा कि अंडकोश काट दिए जाएं, तो उन्होंने ऑपरेशन कर दिया। आपराधिक षड्यंत्र तभी बनता है, जब तीनों का उद्देश्य एक हो, इसलिए यह धारा भी हटाई जानी चाहिए। वकीलों ने कहा कि यदि गुरमीत ने 2000 में मोक्ष की बात कही थी तो साधुओं ने सन 2012 में शिकायत क्यों की। उन्हें एक साल बाद जब मोक्ष नहीं मिला, तो उसी समय क्यों नहीं शिकायत की गई, इसलिए लगाए गए आरोप गलत हैं।