scriptबिखर रही ‘ताऊ’ की राजनीति, वजूद बचाने लड़ रही पीढिय़ां | Devilal's political legacy is in danger in Haryana | Patrika News

बिखर रही ‘ताऊ’ की राजनीति, वजूद बचाने लड़ रही पीढिय़ां

locationसिरसाPublished: Oct 18, 2019 07:46:50 pm

Submitted by:

Nitin Bhal

Haryana Election: ‘मेरे अब और कितने टुकड़े करोगे, मैं तो कब से टुकड़ों में ही बिखरा पड़ा हूं…’ हरियाणा के दिग्गज नेता रहे देवी लाल आज इस दुनिया में होते तो शायद यही सबकुछ कह रहे होते…

बिखर गई ‘ताऊ’ की राजनीति, वजूद बचाने लड़ रही पीढिय़ां

बिखर गई ‘ताऊ’ की राजनीति, वजूद बचाने लड़ रही पीढिय़ां

सिरसा. ‘मेरे अब और कितने टुकड़े करोगे, मैं तो कब से टुकड़ों में ही बिखरा पड़ा हूं…’ हरियाणा के दिग्गज नेता रहे देवी लाल आज इस दुनिया में होते तो शायद यही सबकुछ कह रहे होते। आजादी की लड़ाई से लेकर देश से उप प्रधानमंत्री पद तक का लंबा सफर देवी लाल ने तय किया था। वो सत्ता में रहे हों या फिर सत्ता से बाहर, हरियाणा के लोगों के बीच हमेशा ही लोकप्रिय रहे। लोग उन्हें प्यार से ‘ताऊ’ कहा करते थे। देवी लाल के देहांत के 18 साल बाद अब उनकी सियासी विरासत टुकड़ों में बंट अलग-अलग राजनीतिक दलों में नजर आ रही है। ‘ताऊ’ के कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज जो बीजेपी केंद्र से लेकर हरियाणा तक सत्ता में है, देवी लाल के दौर में वो इंडियन नेशनल लोकदल (आइएनएलडी) की जूनियर पार्टनर हुआ करती थी। लेकिन, आज हालत ये है कि पार्टी में फूट के बाद आइएनएलडी आज हरियाणा की सभी 90 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करने की स्थिति में भी नहीं है। हरियाणा की सिरसा, रनिया, मेहम और करनाल सीटों पर आइएनएलडी के प्रत्याशी चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। हरियाणा की चुनावी राजनीति में इस बात की बहुत अहमियत है। क्योंकि सिरसा और रनिया सीटें, सिरसा जिले में आती हैं, जो आइएनएलडी का मुख्यालय कहा जाता है। वहीं, मेहम सीट आइएनएलडी के लिए इसलिए अहम है क्योंकि यहां से खुद देवी लाल तीन बार विधायक चुने गए थे। कभी हरियाणा की राजनीति का अहम किरदार रहे देवी लाल के वंशज अपना राजनीतिक वजूद बचाने के लिए जूझ रहे हैं।

बंट गया ब्रांड देवी लाल

बिखर गई ‘ताऊ’ की राजनीति, वजूद बचाने लड़ रही पीढिय़ां

हरियाणा की राजनीति का मशहूर ‘देवीलाल ब्रांड’ उनके पोतों में बंट गया है। एक की नुमाइंदगी अभय चौटाला की अगुवाई वाला इंडियन नेशनल लोकदल करता है। वहीं, दूसरे गुट के अगुवा ओमप्रकाश चौटाला के दूसरे बेटे अजय चौटाला हैं जो जेल में बंद हैं। उनके बेटे दुष्यंत चौटाला ने आइएनएलडी से अलग होकर जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) बनाई है। 2019 के लोकसभा चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल को केवल दो फ़ीसद वोट ही मिले थे। वहीं इससे टूट कर अलग हुई जेजेपी का प्रदर्शन भी अच्छा नहीं रहा था। इसी साल जींद में हुए विधानसभा उपचुनाव में जेजेपी ने देवी लाल के पड़पोते दिग्विजय सिंह को उम्मीदवार बनाया था। लेकिन, वो बीजेपी के नए उम्मीदवार कृष्णा मिढ़ा से हार गए थे। बता दें, मिढ़ा के पिता जींद से इंडियन नेशनल लोकदल के ही विधायक थे और ये सीट उन्हीं के निधन से ख़ाली हुई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह ने सोनीपत से चुनाव लड़ा था, लेकिन, उनकी ज़मानत तक ज़ब्त हो गई थी।


यूं बिखरती चली गई आइएनएलडी

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देवी लाल के खानदान में फूट 2005 में सत्ता से बाहर होने के बाद शुरू हुई। इस वक्त ओम प्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय चौटाला के साथ 52 लोगों को टीचर भर्ती घोटाले में आरोपी बनाया गया। ये मामला 1999-2000 का था। तब हरियाणा में 3,206 जूनियर बेसिक टीचर की भर्ती की गई थी। नई दिल्ली की एक अदालत ने जनवरी 2013 में सभी आरोपियों को 10 साल कैद की सजा सुनाई। 2005 में इंडियन नेशनल लोकदल सत्ता से बाहर हो गया। चौटाला और उनके बेटे को सजा मिलना आइएनएलडी के लिए बहुत बड़ा झटका था। जेल जाने के बाद पार्टी कार्यकर्ता चौटाला की कमी महसूस करने लगे। ओम प्रकाश चौटाला और अजय चौटाला के जेल जाने के बाद अभय चौटाला ही बचे थे। संकट से उबारने के लिए अजय चौटाला के विदेश में पढ़ रहे बेटों दुष्यंत और दिग्विजय को वापस बुलाया गया। इसी के बाद अभय चौटाला की अजय चौटाला के बेटों दुष्यंत और दिग्विजय से तनातनी शुरू हो गई। दुष्यंत को रैलियों में अभय चौटाला के सामने ही दूसरा देवी लाल कहा जाने लगा। पार्टी में आखिरी फूट पिछले साल गोहाना में हुई रैली में उस वक्त पड़ी, जब अभय चौटाला बोलने के लिए खड़े हुए तभी तब दुष्यंत के समर्थकों ने दुष्यंत को सीएम उम्मीदवार घोषित करने का शोर मचाना शुरू कर दिया। उस वक्त मंच पर ओम प्रकाश चौटाला भी मौजूद थे। चौटाला ने अपने पोतों दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला को अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से बाहर निकाल दिया।


परिवार का राजनीति में खासा दखल

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देवीलाल ने अपना सियासी करियर 1952 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनने से शुरू किया था। इमरजेंसी के दौरान देवी लाल का कांग्रेस से मोह भंग हो गया और वे जनता पार्टी में शामिल हो गए। देवी लाल के बेटों में, प्रताप सिंह 1960 के दशक में विधायक चुने गए थे। रंजीत सिंह सांसद बने और ओमप्रकाश चौटाला ने पांच बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। चौटाला और उनके दोनों बेटों अजय और अभय ने अपने गांव चौटाला का नाम अपने नाम के आगे जोडऩा शुरू किया। दोनों ही विधायक बने। एक डबवाली से तो दूसरा एलानाबाद से। अजय चौटाला के दोनों बेटे दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला आज इंडियन नेशनल लोकदल से अलग जननायक जनता पार्टी की अगुवाई कर रहे हैं। दुष्यंत चौटाला 2014 में हिसार सीट से सांसद चुने गए थे। इस साल जींद विधानसभा सीट पर उपचुनाव से सियासी पारी का आगाज़ करने वाले दिग्विजय चौटाला चुनावी बाज़ी हार गए थे। यूं तो अभय चौटाला के बेटे करन और अर्जुन राजनीतिक सभाओं में जाते हैं लेकिन, अब तक चुनाव मैदान में उनके बेटे अर्जुन ही उतरे हैं। अर्जुन ने कुरुक्षेत्र से चुनाव लड़ा था, मगर वो हार गए थे। देवी लाल के एक और बेटे रंजीत सिंह सांसद रह चुके हैं। इस बार वो रानिया विधानसभा सीट से किस्मत आज़मा रहे हैं। देवी लाल के चौथे बेटे जगदीश चौटाला के एक बेटे आदित्य चौटाला इस वक्त बीजेपी में हैं और बीजेपी के टिकट पर डबवाली सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। इससे पहले जिला परिषद के चुनाव में उन्होंने अपनी भाभी और अभय चौटाला की पत्नी कांता देवी को हराया था। देवी लाल के एक और बेटे प्रताप चौटाला के बेटे रवि चौटाला भी राजनीति में सक्रिय हैं। पहले तो उन्होंने ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन बाद में परिवार में सुलह हो गई थी।

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