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सूत्रों के अनुसार सीआईडी को भूतपूर्व सीएम स्व. चौ. बंसीलाल के कार्यकाल के दौरान ही अलग विभाग कर दिया गया था। उस समय से कानून में बदलाव नहीं हो सका। आमतौर पर प्रदेश में गृह मंत्रालय मुख्यमंत्री के पास ही रहा है। जब कभी भी सीएम से अलग करके प्रदेश में अलग से गृह मंत्री बनाया भी गया तो सीआईडी की रिपोर्ट सीएम को ही होती रही। अब गृह मंत्री अनिल विज और सीएम मनोहर लाल खट्टर के बीच सीआईडी को लेकर हुए विवाद के बीच सरकार ने इसका पक्का इंतजाम करने का फैसला लिया है।
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माना जा रहा है कि कानून में संशोधन के बाद ही मुख्यमंत्री मनोहर लाल इस विषय पर जनता के बीच जाएंगे। सीएमओ में बन रहे ड्रॉफ्ट पर कानूनी राय लेने के बाद अंतिम रूप दिया जाएगा। इसके बाद इसे कैबिनेट की बैठक में रखा जाएगा ताकि कैबिनेट की मुहर के बाद विधानसभा में संशोधित विधेयक पेश किया जा सके। सीआईडी को अलग विभाग बनाने के अलावा इसका कॉडर अलग करने और अलग से ही बजट का प्रावधान पूर्ववर्ती सरकारों के समय ही हो गया था।
क्या है दोनों नेताओं में विवाद?
अनिल विज छठी बार विधानसभा में पहुंचे हैं। इस नाते से वह खुद को वरिष्ठ मानते हैं। पार्टी द्धारा मनोहर लाल को मुख्यमंत्री बनाया गया है। विज के दबाव और सीएम के विरोध के बावजूद भाजपा हाईकमान ने बीच का रास्ता निकालते हुए अनिल विज को गृहमंत्री बनाकर सीएम के समानांतर खड़ा किया। जिसके बाद पंजाबी समुदाय से संबंधित दोनों नेताओं में विवाद शुरू हो गया। यह विवाद उस समय और गहरा गया जब गृह मंत्री अनिल विज ने विधानसभा चुनावों को लेकर दी गई रिपोर्ट सीआईडी चीफ अनिल कुमार राव से तलब की। राव ने जो रिपोर्ट दी विज उससे संतुष्ट नहीं हुए। इस बीच ही हरियाणा सरकार की अधिकृत वेबसाइट और विधानसभा साइट पर मुख्यमंत्री व मंत्रियों के विभागों को नए सिरे से अपलोड करते हुए सीआईडी विभाग सीएम को अलाट कर दिया गया। जिसे लेकर दोनों नेताओं में विवाद गहरा गया। जिसके चलते इस विवाद को समाप्त करने की तैयारी सरकार ने अंदरूनी तौर पर शुरू कर दी है।