चौरासी कोस की यह परिक्रमा सतयुग काल से होती आ रही है। मान्यता है कि देवासुर संग्राम में देवताओं की जीत सुनिश्चित करने के लिए महर्षि दधीचि ने अपनी अस्थियों का दान करने से पहले यह परिक्रमा की थी। तत्पश्चात भगवान राम ने भी इस परिक्रमा का अनुशरण किया था। भगवान राम की अगुवाई के कारण परिक्रमार्थियों को रामदल के नाम से भी पुकारा जाता है। इस परिक्रमा में भारत के कोने-कोने से लोग शामिल होने के लिए आते हैं और होलिका दहन के साथ इस परिक्रमा के पूर्ण होने पर वापस अपने वतन रवाना हो जाते हैं।
श्रद्धालुओं के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
परिक्रमा के महत्त्व और भीड़ के मद्देनजर प्रशासन ने भी तमाम बंदोबस्त किये हैं। जिला प्रशासन के मुताबिक इस परिक्रमा मेले में श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए एक प्लाटून पीएसी समेत सैकड़ों कॉन्स्टेबल और दरोगाओं की तैनाती की गयी है। यह व्यवस्था होलिका दहन तक चलती रहेगी। डीएम का कहना है कि इस मेले की सुरक्षा व्यवस्था के लिए प्रत्येक पड़ाव पर अस्थाई चौकियां भी बनाई गई हैं, ताकि श्रद्धालुओं को दिक्कतों का सामना न करना पड़े।
परिक्रमा के महत्त्व और भीड़ के मद्देनजर प्रशासन ने भी तमाम बंदोबस्त किये हैं। जिला प्रशासन के मुताबिक इस परिक्रमा मेले में श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए एक प्लाटून पीएसी समेत सैकड़ों कॉन्स्टेबल और दरोगाओं की तैनाती की गयी है। यह व्यवस्था होलिका दहन तक चलती रहेगी। डीएम का कहना है कि इस मेले की सुरक्षा व्यवस्था के लिए प्रत्येक पड़ाव पर अस्थाई चौकियां भी बनाई गई हैं, ताकि श्रद्धालुओं को दिक्कतों का सामना न करना पड़े।
लाखों श्रद्धालु करते हैं परिक्रमा
इस चौरासी कोसीय परिक्रमा में भले ही लाखों की तादात में दूर-दराज आये श्रद्धालु शामिल होते हैं। लेकिन विडम्बना यह है कि कुम्भ या इस तरह के दूसरे मेलों की तरह इस मेले के लिए सरकार द्वारा कुछ विशेष सुविधाएं नहीं उपलब्ध करायी जातीं। अगर परिक्रमा के पौराणिक महत्त्व को देखते हुए सुविधायें बढ़ा दी जाएं तो परिक्रमा के साथ ही 88 हजार ऋषियों की तपोभूमि नैमिषारण्य का भी कायाकल्प हो सकता है।
इस चौरासी कोसीय परिक्रमा में भले ही लाखों की तादात में दूर-दराज आये श्रद्धालु शामिल होते हैं। लेकिन विडम्बना यह है कि कुम्भ या इस तरह के दूसरे मेलों की तरह इस मेले के लिए सरकार द्वारा कुछ विशेष सुविधाएं नहीं उपलब्ध करायी जातीं। अगर परिक्रमा के पौराणिक महत्त्व को देखते हुए सुविधायें बढ़ा दी जाएं तो परिक्रमा के साथ ही 88 हजार ऋषियों की तपोभूमि नैमिषारण्य का भी कायाकल्प हो सकता है।
देखें वीडियो…