अपने ही होंगे आमने-सामने
हालांकि कांग्रेस के अलावा अभी तक किसी भी दल से उम्मीदवारों की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। लेकिन भाजपा से मौजूदा सांसद राजेश वर्मा अपना टिकट पक्का मानकर प्रचार में जुटे हैं। भाजपा के मौजूदा सांसद राजेश वर्मा दो बार बसपा से सांसद रह चुके हैं। मायावती का साथ छोड़ने के बाद 2014 में भाजपा के टिकट पर उन्होंने बसपा की कैसर जहां से यह सीट छीनी थी। एक बार फिर उनकी भाजपा से लड़ने की तैयारी है। वहीं दूसरी तरफ पिछले आम चुनाव के मुकाबले में रनरअप कैसर जहां हैं। यह अलग बात हैं कि पिछली बार वह बसपा से चुनाव लड़ी थीं लेकिन इस बार वह कांग्रेस के चुनाव निशान के सहारे बदला लेने की फिराक में हैं। अब बसपा मानक के अनुसार लड़ने के लिए जब कोई स्थानीय नेता ढूंढे नहीं मिला तो बाहरी नेता व पूर्व मंत्री नकुल दुबे को लोकसभा क्षेत्र के प्रभारी बनाया गया है और यहां से उनका टिकट लगभग फाइनल है।
बसपा दिनों-दिन होती गई कमजोर
अगर यह सभी उम्मीदवार पार्टी छोड़कर चुनावी मैदान में ताल ठोकने उतर रहे हैं तो इसके लिए बसपा मुखिया का वह मानक ही जिम्मेदार है, जिसमें ज्यादा दिन तक कोई जनप्रतिनिधि रह नहीं सकता और आखिर में उसे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। जनप्रतिनिधियों को पार्टी से बाहर निकालने के चलते ही बसपा दिनों दिन कमजोर होती गयी और उसके नेता विभिन्न दलों में पहुंचकर मजबूत होते गए। सिर्फ सीतापुर ही नहीं यूपी की कई लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां कभी बसपाई रह चुके नेता आज दूसरी पार्टियों के चुनाव चिन्ह पर ताल ठोंक रहे हैं।
जातीय आंकड़े
सामान्य- 23.0 फीसदी
पिछड़ा वर्ग- 27.9 फीसदी
एससी एसटी- 28.1 फीसदी
मुस्लिम- 21.0 फीसदी 2009 के नतीजे
कैसरजहां (बसपा) 2,41,106
महेंद्र वर्मा (सपा) 2,21,474
राम लाल राही (कांग्रेस) 1,17,281
ज्ञान तिवारी (भाजपा) 81577 2014 के नतीजे
राजेश वर्मा (भाजपा) 4,17,546
कैसरजहां (बसपा) 3,66,519
भरत त्रिपाठी (सपा) 1,56,170
वैशाली अली (कांग्रेस) 29104