मजदूरों का हो रहा शोषण हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले से यह दोनों बसें 29 मई की शाम को निकली थी और अब सीतापुर पहुंची। बिहार जाने वाली बस में जहां 12 मजदूर सवार थे तो वही झारखंड जाने वाली बस में 18 मजदूर सवार थे। यह सभी हिमाचल प्रदेश में मजदूरी करते थे। दो महीने से काम बंद होने कारण इनको अब खाने के भी लाले पड़ने लगे थे ऐसे में इन मजदूरों ने घर वापस आना ही बेहतर समझा। इन मजदूरों के पास घर आने के लिए भी इनके पास पैसे नही थे। जिस पर इन मजदूरों ने अपने घर फ़ोन कर के किसी तरह से पैसे मंगाए और फिर दो प्राइवेट बसों का इंतजाम कर अपने घरों के लिए रवाना हो गए। बिहार और झारखंड से हिमाचल प्रदेश जाने के लिए जहां इन मजदूरों ने पहले मात्रा 700 से 1000 रुपये ही किराए के लिए खर्च किये थे वही इस मजबूरी में इन गरीब मजदूरों को 7 हजार रुपये देने पड़े हैं। इतना किराया देने के बाद इन मजदूरों की जेब पूरी तरह खाली हो गई जिसके बाद इन सभी के पास रास्ते में खाना और पानी के लिए भी पैसा नही बचा। जिसके बाद बस के चालक ने मानवता दिखाते हुए इन मजदूरों को सुबह अपने पैसे से चाय तो पिला दी लेकिन 24 घंटे बाद भी इनको दो रोटी का इंतजाम न करा सका। भूखे मजदूरों से भरी यह दोनों बसें सीतापुर पहुंची तो कुछ समाजसेवियों द्वारा इन मजदूरों को खाना पानी बिस्किट की व्यवस्था कराई। हिमाचल प्रदेश से चलते समय कुछ मजदूरों ने थोड़े चने खरीद लिए थे बस उसी से 24 घंटे से अधिक का सफर गुजरा हैं। मजदूरों की यह दास्तां उन दावों की पोल खोलती हैं जिनमे प्रवासी मजदूरों को भोजन पानी और ठहरने की व्यवस्था बेहतर होने के कसीदे पढ़े जाते हैं। इन मजदूरों के नाम पर बटने वाला भोजन आखिर किन लोगों को दिया जाता है ये तो बाटने वाले ही जाने।