होली में दीवाली सा होता हैं नजारा पौराणिक कथाओ के अनुसार देवासुर संग्राम के वक़्त राक्षसों के संहार के लिए अपनी अस्थिया दान करने वाले महर्षि दधीची की तपो स्थली मिस्रिख स्थित दधीची कुंड पर होली से ठीक पूर्व होने वाले एक पखवारे के होली मेले का अपना अलग महत्त्व होता है। इस तीर्थ के इर्द गिर्द इन 15 दिनों के दौरान होने वाली चौरासी कोस व पंच कोसी परिक्रमाओ के बाद मिस्रिख पहुचने वाले लाखो तीर्थ यात्री प्रतिवर्ष यहाँ के होली मेला में डेरा डालते है। जिसका समापन होलिकादहन से पूर्व घंटो चलने वाली आतिशबाजी के साथ होता है। आतिशबाज़ी भी कोई मामूली नही बल्कि ऐसी की बस देखते ही रह जाओ। दधीची कुंड पर होने वाली इस आतिशबाजी के पूर्व लाखो लोगो की मौजूदगी में पहले तीर्थ की आरती के साथ पूजन किया जाता है . इसके बाद जितने भी परिक्रमार्थी आते है सब आतिशबाजी के इस कार्यक्रम को देखते है। जिला प्रशासन के आलाधिकारी भी इस पूरे कार्यक्रम में हमेशा मौजूद रहते है।