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2 जून का काला इतिहास, वो खौफनाक मंजर, जब सरकारी बंदूकों ने बांटी थी मौत

locationसोनभद्रPublished: Jun 02, 2019 12:05:49 pm

एक सरकारी आदेश से खामोश हो गयी थीं कई जिंदगियां
सोनभद्र का डाला सीमेंट फैक्ट्री गोली कांड, की खौफनाक यादें।
आज भी 2 जून को पीड़ित परिवारों के जख्म हरे हो जाते हैं।

2 June Black History

दो जून का काला इतिहास

सोनभद्र. जब इतिहास लिखा जाता है तो उसमें तारीख का किरदार सबसे अहम होता है। तारीख़ें इस बात का गवाह होती हैं कि उस दिन का मंजर खुशनुमा था या खौफनाक। इतिहास के हर पन्ने में हर तारीख का अपना वजूद होता है। दो जून की तारीख भी सोनभद्र की एक ऐसी घटना की गवाह है जिसका मंजर बेहद खौफनाक था। सिर्फ सोनभद्र के लोगों के लिये ही नहीं बल्कि यूपी की सियासत में सबसे बड़े सियासी कुनबे के मुखिया और दो-दो बार सूबे की बागडोर संभालने वाले सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के राजनैतिक इतिहास का भी एक काला दिन है। जब भी दो जून की तारीख आती है तो सोनभद्र के उन परिवारों के जख्म फिर से ताजा हो जाते हैं जिनके अपने हाकिमे वक्त के हुक्म से चली गोली से मारे गए। 1991 में दो जून को हुए गोली कांड की खौफनाक याद से पीड़ित परिवार आज भी सिहर उठते हैं।
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क्या हुआ था 2 जून 1991 को
2 जून 1991 का वह खौफनाक मंजर आज भी सोनभद्र निवासी भूले नहीं भूल पाते, जब सूबे की एकमात्र राज्य सरकार के स्वामित्व वाली सीमेंट फैक्टरी को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने कथित रूप से उद्योगपति डालमिया बेचने के बाद विरोध कर रहे हजारों श्रमिको पर भरी दुपहरी में गोली चलवा दी थी। दावा किया जाता है कि इस गोलीकांड में कइयों की जानें गयीं, हालांकि सरकारी आंकड़े में नौ मौतें ही बतायी गयी हैं।
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नब्बे के दशक में जब सूबे की कमान मुलायम सिंह ने संभाली तो घाटे में चल रही सीमेन्ट फैक्ट्री को निजी हाथों में सौपने का फैसला लिया गया। सीमेंट फैक्ट्री कर्मचारियों ने इसका पुरजोर विरोध किया। कई दिनों तक धरना-प्रदर्शन चला। दो जून 1991 को रविवार का दिन था, जब डाला सीमेन्ट फैक्ट्री के गेट के पूरब में बसे बाजार में आसपास के गांवों के हजारों आदिवासी और ग्रामीण जरूरत का सामान खरीदने के लिये जुटे थे। उसी समय दोपहर के 2.20 बजे धरने पर बैठे सीमेंट फैक्ट्रीकर्मियो व उनके परिजनों पर स्थानीय प्रशासन ने पुलिस की राइफलों का मुंह खोल दिया। गोलियों की आवाज में कुछ पल सब शांत हो गया, उसके बाद पूरा बाजार चीख-पुकार की से गूंज उठा। अचानक हुई इस पुलिसिया कार्यवाही से जहां धरने पर बैठे सीमेंट फैक्ट्री कर्मियो में भगदड़ मच गई वही बाजार को जा रहे निरीह भी इसकी चपेट में आ गये। प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो उस दिन गोलीकांड में दर्जनों की मौतें हुई थीं, लेकिन सरकारी आंकड़ों में मरने वालों की संख्या नौ दर्ज है। आज भी डाला सीमेंट फैक्ट्री कर्मी और आसपास के निवासी दो जून का दिन ‘शहीद दिवस’ के रूप में मनाते हुए उस दुख की घड़ी को याद करते शान्ति पाठ करते हैं।
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पं. नेहरू ने रखी थी सीमेंट फैक्ट्री की आधारशिला

कभी देश के प्रथम प्रधानमंत्री प.जवाहरलाल नेहरू ने जब देश के विभिन्न इलाकों में औद्योगिकरण की शुरुआत की तो उस समय यह इलाका मिर्जापुर जिले का हिस्सा हुआ करता था। यहीं उन्होंने सीमेन्ट फैक्टरी की आधारशिला रखी और अपना ऐतिहासिक वक्तव्य दिया। अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा था ‘आने वाले दिनों में यह इलाका भारत का स्विट्ज़रलैंड बनेगा।” प. नेहरू का कहा सच हुआ होता दिख रहा था। इसी सीमेन्ट फैक्टरी के सीमेन्ट से देश के सबसे बड़े बांधों में से एक रिहन्द बांध और एक के बाद एक दर्जनों बड़े कारखाने व बिजलीघरों की स्थापना हुई।
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दो जून की दूसरी शर्मसार कर देने वाली घटना

यूपी की राजनीति में दो जून की तारीख़ नज़रें नीची कर देने वाली घटना के रूप में भी याद की जाती है। 1993 में सूबे की दो क्षेत्रीय पार्टियां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन करके विधानसभा चुनावों में सफलता हासिल की। दो धुर विरोधी पार्टियों का यह गठजोड़ ज्यादा दिन न चल सका और साल भर भी नहीं गुजरा की 1994 में दोनों दलों की राहें विधानसभा में जूतमपैजार के बाद जुदा हो गयीं। अब सत्ता की कुर्सी पर काबिज मुख्यमंत्री मायावती को अपना बहुमत साबित करना था, लेकिन इसके पहले जो कुछ हुआ वह बसपा के करोड़ों समर्थकों के साथ खुद मायावती के लिये सारी उम्र दुख देने वाली घटना हो गयी। दो जून 1994 को सदन में बहुमत साबित करने से ठीक पहले वीआईपी गेस्ट हाउस में मुख्यमंत्री मायावती पर जानलेवा हमला कर दिया गया। आरोप है कि सपा नेताओं ने मायावती पर जानलेवा हमला किया, जिसमें बीजेपी विधायक ब्रह्मदत्त दि्ववेदी ने मायावती की जान बचायी। मायावती ने हमले का सीधा आरोप तत्कालीन सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव पर लगाया। गेस्ट हाउस कांड को आज भी यूपी की राजनीति का काला अध्याय कहा जाता है।
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