scriptतीन दशक का वक्त गुजरने के बाद भी खुद की पहचान नहीं बना सका सोनभद्र | Sonbhadra Divas Spacial Story | Patrika News

तीन दशक का वक्त गुजरने के बाद भी खुद की पहचान नहीं बना सका सोनभद्र

locationसोनभद्रPublished: Mar 04, 2018 11:35:02 pm

29 साल का हो चुका जनपद अपनी पहचान को अब भी है मोहताज, मूलभूत सुविधाओं का है टोटा

Sonbhadra Day

सोनभद्र दिवस

सोनभद्र. आज ही के दिन 1989 को यूपी के मिर्जापुर जिले से अलग होकर अपने अस्तित्व को समेटे जनपद सोनभद्र धरातल पर उतरा और लगभग तीन दशक का लंबा वक्त गुजरने के बाद भी आजतक अपनी पहचान नहीं बना सका।

4 मार्च 1989 को जब इस जनपद की घोषणा हुई तो तत्कालीन मुख्यमंत्री ने यह शुभकामना व्यक्त की थी कि ‘भारतभद्र’ बनेगा यह जनपद, लेकिन तमाम सांस्कृतिक खूबियों के बावजूद इसकी सांस्कृतिक पहचान नहीं बन पाई, देश में इसे कभी नक्सलवाद तो कभी पिछड़े जनपद के रूप में जाना गया, देश के टॉप टेन प्रदूषित स्थानों तो कभी अवैध खनन के रूप में चर्चित रहा, कभी बेरोजगारी तो कभी विकलांगो के जिले के रूप में यह चर्चित हुआ लेकिन देश के प्रमुख स्थानों पर अपने यहां उत्पादित विद्युत से प्रकाश करने के बावजूद कभी इसे ऊर्जा का केंद्र नहीं माना गया। लगभग तीन सौ किलोमीटर लम्बा यह जनपद क्षेत्रफल के हिसाब से सूबे में सबसे बड़ा जनपद माना जाता है जिसकी जनसंख्या लगभग 14,63,519 है।

जनपद कैमूर से लेकर विन्ध्य पर्वतों से घिरा हुआ है इसके अलावा नदियों में सोन नदी बहती है इसके रेणु नदी, बिजुल आदि कई सहायक नदियां है। जो जनपद में किसानों व ग्रामीणों के पानी का स्रोत व संसाधन है। पर्यटन की दृष्टि से शिवद्वार में शिव पार्वती की अलौकिक मूर्ति स्थापित है, टीवी सीरियल में धूम मचाने वाली सीरियल चन्द्रकान्ता में दरसाई गयी विजयगढ़ किला मौजूद है, मारकुंडी घाटी में वीर लोरिक और मंजरी की अमर प्रेम निशानी पत्थर है, सोन नदी के तट पर स्थित अगोरी किला,विश्व पटल पर अपनी पहचान बनाने वाले सलखन में जीवाश्म है जो अपनी छाप छोड़े हुए है।
जिले में दर्जनों बिजली घराने है बावजूद इसके जिले को अब तक बिजली भरपूर नही मिल पायी, कहीं बिजली के पोल है तो कहीं बिजली ही नहीं है तश्वीर चिराग तले अँधेरा वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही है।
क्या खोया क्या पाया
लगभग तीस वर्ष का समय बीत जाने के बाद बात करे जनपद वासियो ने क्या खोया क्या पाया तो इस दिन 1989 को जिला बनने के बाद तमाम कल कारखाने बने फिर भी बेरोजगारी चरम पर है जनपद में कल कारखाने तो दर्जनों बने लेकिन रोजगार में लिए जद्दोजहद होती रही इन्ही कलकारखानों से निकलने वाले प्रदूषित पानी से वातावरण पर बहुत प्रभाव पड़ा, कई ब्लाक में न जाने कितने गांव प्रदुषित पानी से प्रभावित हुए, बड़ी संख्या में ग्रामीण फ्लोरोशिस रोग से पीड़ित है जिससे उन लोगो के शरीर की बनावट टेडी मेढ़ी हो जा रही है।
इधर स्वास्थ्य विभाग आरो प्लांट युक्त पानी मुहैया कराने का गलत दावा कर रहा है, जिले को बिजली का हब कहा जाता है दर्जन भर बिजली के घराने स्थापित है लेकिन जिले को भरपूर बिजली नहीं मिल पा रही है। गांव के गांव ओडीएफ मुक्त हो रहे है लेकिन उनकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
by Jitendra Gupta
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