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हरियाणा सरकार पर हाईकोर्ट के आदेश से अनियमित हुए साढे 4 हजार से अधिक कर्मचारियों को फिर नियमित करने का दवाब

locationसोनीपतPublished: Sep 05, 2018 09:02:35 pm

यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष सतपाल वर्मा ने धरने के मौके पर कहा कि कर्मचारियों को नियमित करने के मुद्ये पर यूनियन की समय-समय पर अधिकारी स्तर पर वार्ता होती रही है…

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(चंडीगढ): हरियाणा सरकार पर चारों ओर से इस बात का दवाब है कि पिछले मई माह में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा वर्ष 2014 की नियमन नीतियां रद्य करने से अनियमित हुए साढे चार हजार से अधिक कर्मचारियों को फिर नियमित की श्रेणी में लाने के लिए सात सितम्बर से शुरू होने जा रहे विधानसभा के मानसून सत्र में विधेयक पारित कराए। इसी मांग को लेकर बुधवार को यहां हरियाणा गवर्नमेंट पीडब्ल्यूडी मेकेनिकल वर्कर्स यूनियन ने धरना दिया।

 

यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष सतपाल वर्मा ने धरने के मौके पर कहा कि कर्मचारियों को नियमित करने के मुद्ये पर यूनियन की समय-समय पर अधिकारी स्तर पर वार्ता होती रही है। अधिकारी कर्मचारियों को नियमित करने का आश्वासन देते आ रहे है। लेकिन यूनियन को पक्का भरोसा नहीं है। अब यूनियन की मांग है कि राज्य सरकार आगामी विधानसभा सत्र में विधेयक पारित कर हाईकोर्ट के आदेश से अनियमित हुए कर्मचारियों को फिर नियमित करे और इसके बाद प्रदेश में मंत्रियों और अधिकारियों के आवासों पर कार्य कर रहे करीब 50 हजार कच्चे कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार समान काम के लिए समान वेतन दे। उन्होंने कहा कि विधेयक पारित नहीं किया गया तो राज्य सरकार कच्चे कर्मचारियों को तो सेवा से बाहर का रास्ता दिखायेगी।

 

कर्मचारी संगठनों के इस तरह के दवाब के अलावा विपक्ष भी भाजपा सरकार को हाईकोर्ट के विपरीत फैसले के लिए जिम्मेदार बता रहा है। कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल जैसे विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार द्वारा पैरवी नहीं करवाए जाने से हाईकोर्ट ने वर्ष 2014 की नियमन नीतियां रद्य कर दीं। इस कारण साढे चार हजार से अधिक कर्मचारी अनियमित हो गए। इन दलों की मांग है कि अब राज्य सरकार विधेयक पारित कर इन कर्मचारियों को फिर नियमित करे। उधर राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश से अनियमित हुए कर्मचारियों को फिर नियमित करने के मुद्ये पर फैसले के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया था। इसी बीच राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का फैसला किया। विपक्ष ने इस फैसले का विरोध किया। अब राज्य सरकार फिर विधेयक पारित कराने के विकल्प पर विचार कर रही है।

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