यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष सतपाल वर्मा ने धरने के मौके पर कहा कि कर्मचारियों को नियमित करने के मुद्ये पर यूनियन की समय-समय पर अधिकारी स्तर पर वार्ता होती रही है। अधिकारी कर्मचारियों को नियमित करने का आश्वासन देते आ रहे है। लेकिन यूनियन को पक्का भरोसा नहीं है। अब यूनियन की मांग है कि राज्य सरकार आगामी विधानसभा सत्र में विधेयक पारित कर हाईकोर्ट के आदेश से अनियमित हुए कर्मचारियों को फिर नियमित करे और इसके बाद प्रदेश में मंत्रियों और अधिकारियों के आवासों पर कार्य कर रहे करीब 50 हजार कच्चे कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार समान काम के लिए समान वेतन दे। उन्होंने कहा कि विधेयक पारित नहीं किया गया तो राज्य सरकार कच्चे कर्मचारियों को तो सेवा से बाहर का रास्ता दिखायेगी।
कर्मचारी संगठनों के इस तरह के दवाब के अलावा विपक्ष भी भाजपा सरकार को हाईकोर्ट के विपरीत फैसले के लिए जिम्मेदार बता रहा है। कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल जैसे विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार द्वारा पैरवी नहीं करवाए जाने से हाईकोर्ट ने वर्ष 2014 की नियमन नीतियां रद्य कर दीं। इस कारण साढे चार हजार से अधिक कर्मचारी अनियमित हो गए। इन दलों की मांग है कि अब राज्य सरकार विधेयक पारित कर इन कर्मचारियों को फिर नियमित करे। उधर राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश से अनियमित हुए कर्मचारियों को फिर नियमित करने के मुद्ये पर फैसले के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया था। इसी बीच राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का फैसला किया। विपक्ष ने इस फैसले का विरोध किया। अब राज्य सरकार फिर विधेयक पारित कराने के विकल्प पर विचार कर रही है।