पेश किए अहम दस्तावेज
सुरजेवाला ने दस्तावेज पेश करते हुए कहा कि वर्ष 1999 में बनाई गई टेलीकॉम नीति के मुताबिक टेलीकॉम कंपनियों को 15 फीसद एजीआर देना था, लेकिन इस पर अदालत के स्टे के बाद कंपनियों की अपील पर इसे पहले घटाकर 13 फीसद और फिर आठ फीसद कर दिया गया। पिछले साल 24 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफोन-आइडिया, एयरटेल भारती, टाटा टेलीसर्विसेस (जिसकी मालिक अब एयरटेल है) व रिलायंस जियो को एक लाख दो हजार करोड़ रुपए दूरसंचार विभाग (डीओटी) में जमा कराने का आदेश दिया था। इसके बाद 20 नवंबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में टेलीकॉम कंपनियों द्वारा साल 2020-21 व 2021-22 के लिए दी जानी वाली 42 हजार करोड़ रुपए की उगाही को लंबित कर दिया गया। दिसंबर के पहले सप्ताह में वोडाफोन-आइडिया, एयरटेल और रिलायंस जियो ने प्रीपेड ग्राहकों के लिए सेलफोन शुल्क व डेटा इस्तेमाल शुल्क को 40 से 50 फीसद तक बढ़ा दिया।
100 करोड़ लोगों की जेब पर डाका
सुरजेवाला ने कहा कि इसके बावजूद 23 जनवरी को केंद्र सरकार ने टेलीकॉम कंपनियों से एक लाख दो हजार करोड़ की रिकवरी को रोकते हुए आदेश जारी कर दिया कि टेलीकॉम कंपनियों पर भुगतान के लिए दबाव न डाला जाए। 14 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा फिर चेताने के बावजूद इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह देश के सौ करोड़ लोगों की जेब पर डाका और टेलीकॉम कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए बड़ा घोटाला किया गया है। जिस पर केंद्र सरकार को श्वेत पत्र जारी करना चाहिए।
कांग्रेस प्रवक्ता ने केंद्र से उठाए सवाल
-क्या सरकार ने 112 करोड़ मोबाइल उपभोक्ताओं पर बोझ नहीं डाला है।
-क्या कंपनियों द्वारा टैरिफ बढ़ाकर 102000 करोड़ एजीआर उपभोक्ताओं से नहीं वसूला जा रहा।
-केंद्र सरकार द्वारा टेलीकॉम कंपनियों से वसूली को बार-बार क्यों लंबित किया जा रहा है।
-उपभोक्ताओं की जेब पर डाका और मोबाइल कंपनियों पर कृपा का राज क्या है।