scriptवैज्ञानिकों का दावा, 17 देशों पर और छाया लिंगानुपात का संकट, भारत-चीन में आया सुधार | 12 Countries Could 'Lose' Almost 5 Million Women in The Next Decade | Patrika News

वैज्ञानिकों का दावा, 17 देशों पर और छाया लिंगानुपात का संकट, भारत-चीन में आया सुधार

locationजयपुरPublished: Aug 30, 2021 07:24:01 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

एक नए शोध के आधार पर वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगले दशक तक दुनिया के 12 देशों में करीब 50 लाख लड़कियां गर्भपात और अन्य वजहों से जन्म नहीं ले सकेंगी। इससे इन देशों में gender ratio और भी अधिक गहरा जाएगा।

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वैज्ञानिकों का दावा, 17 देशों पर और छाया लिंगानुपात का संकट, भारत-चीन में आया सुधार

वर्ष 1970 के दशक से, चीन, भारत और दस अन्य देशों में लिंग-चयनात्मक गर्भपात के चलते 2.30 से 4.50 करोड़ लड़कियां जन्म नहीं ले सकी हैं। हाल ही हुए एक नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इन देशों को लिंग-चयनात्मक गर्भपात के प्रति फिर से चेताया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर लड़कियों की इसी तरह अनदेखी की जाती रही तो 2030 तक ये देश 50 लाख लड़कियों को और ‘खो’ देंगे, जिससे gender ratio और अधिक गड़बड़ा जाएगा।
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3.26 अरब बच्चों का डेटा
यह अध्ययन 197 देशों के 3.26 अरब जन्म रिकॉर्ड के आधार पर एक मॉडल का उपयोग कर किया गया है। अध्ययन में 12 ऐसे देशों को चिन्हित किया गया है, जहां सबसे ज्यादा विषम लिंगानुपात है। इतना ही 17 ऐसे देशों की भी पहचान की गई है जो अगले दशक के पूरा होने तक लिंगानुपात के मामले में इन देशों की सूची में शामिल हो सकते हैं। हालांकि, अच्छी खबर यह है कि विषम लिंगानुपात वाले 12 देशों में सुधार के संकेत भी दिखाई दे रहे हैं, विशेष रूप से चीन और भारत में। लिंग-चयनात्मक गर्भपात के 95 फीसदी मामले इन्हीं दोनों देशों में हैं।

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79 वर्षों में 57 लाख बेटियां
मॉडल के अनुसार, वर्ष 2100 तक, ये राष्ट्र 57 लाख से ज्यादा बेटियों को गर्भ में ही खो देंगे। अध्ययन के अनुसार, चीन और भारत में, आज पुरुषों की संख्या, महिलाओं से लगभग 7 करोड़ अधिक है। हालांकि, सरकारी प्रयासों और सामाजिक बदलाव के कारण, हाल के वर्षों में, दोनों देशों में gender gap and raio का असंतुलन धीमा होना शुरू हो गया है। इस नए मॉडल का उपयोग करने वाली टीम का कहना है कि चीन, भारत, अल्बानिया, आर्मेनिया, अजरबैजान और वियतनाम जैसी जगहों पर विषम लिंगानुपात को संतुलित करने के लिए अब भी बहुत काम करने की जरूरत है।

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इन देशों में भी बेटियों की कमकद्री
अगर बेटियों पर बेटों को प्राथमिकता देने वाले अन्य देशों जैसे नाइजीरिया, पाकिस्तान, मिस्त्र, तंजानिया और अफगानिस्तान की बात करें तो, यहां भी gender gap एक चुनौती बनकर उभर रहा है। अगर समय पर कठोर और प्रभावी कदम न उठाएगए तो इस नए मॉडल के अनुसार, वर्ष 2100 तक 2.2 करोड़ बेटियां और जन्म लेने से पहले ही कोख में मार दी जाएंगी। अकेले उप-सहारा अफ्रीका के देशों में ही एक तिहाई बेटियां आंख नहीं खोल पाएंगी। शोधकर्ताओं ने कन्या भ्रूण हत्या, खराब महिला स्वास्थ्य, आर्थिक आजादी की कमी, शिक्षा तक पहुंच का न होना और सांस्कृतिक एवं सामाजिक कुरीतियों को इसका बड़ा कारण बताया है।

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महिला समानता पर कुछ पेशेवर और कामकाजी महिलाओं से बातचीत में निम्न बातें सामने आई-
महिला समानता के लिए कौन सी 5 मुख्य बातें ज़रूरी हैं?
एक निजी फर्म में सीनियर स्ट्रेटिजिक एनालिस्ट ऋचा शर्मा का कहना है कि महिलाओं को समानता का अधिकार देने के लिए सबसे पहले उनके निर्णय लेने के अधिकार को बहाल करने की ज़रूरत है। यानी वे अपनी मर्ज़ी से अपने लिए निर्णय लेने में सक्षम हों। इसके अलावा उन्हें शिक्षा, सभी गतिविधियों में उन्हें भाग लेने के लिए प्रेरित करना और आगे बढ़ने का मौका देना, साथ ही सुरक्षा के लिहाज से उन्हें शाम के वक़्त निशुल्क सकारी ट्रांसपोर्ट की सुविधा होनी चाहिए। इसके लिए हमें अपने घर से ही शुरुआत करनी होगी।
वर्ल्ड इकनोमिक फोरम के अनुसार महिला समानता में अभी 267 और लगेंगे, आप क्या कहेंगे?
यह सही है, इस gender gap को कम करने में 267 साल लग सकते हैं, हालांकि, यह कुछ आंकड़ों के आधार पर है जो कुछ आनुपातिक आधार पर based है। हालांकि, यदि महिलाएं स्वयं कार्यभार संभालें और ज़िम्मेदारियों को हाथ में लेती हैं, तो इस गैप को जल्दी भरा जा सकता है। मुझे विश्वास है कि 267 साल के इस अंतर को 27 साल तक लाया जा सकता है।
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भारत में महिला समानता को किस तरह देखते हैं? ऐसे कौन से सेक्टर हैं जहां बदलाव नज़र आ रहा है ?
मुझे लगता है कि प्राचीन काल से नारी समानता चिंता का विषय है। लेकिन भारत अभी भी अन्य देशों के विपरीत तुलनात्मक रूप से महिलाओं के लिए एक बेहतर जगह है। हाल ही में संगठन में वर्क फ्रॉम होम संस्कृति को अपनाने के साथ, महिलाओं को प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अधिक अवसर मिल रहे हैं। एक निजी फर्म में प्रोडक्ट डिज़ाइन टीम में काम कर रहीं सीनियर मेंबर सलोनी जैन का कहना है, वर्कप्लेस पर महिलाओं को अवसर देने के कई लाभ हैं क्यूंकि उनमें ईमानदारी, प्रतिबद्धता, अखंडता, रचनात्मकता जैसे कुछ व्यवहार संबंधी लक्षण होते हैं, जो किसी भी कर्मचारी के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। जैसा कहा जाता है कि आप किसी को रोज़ खाना खिलाने से अच्छा उसे रोज़ी कमाने का कौशल सीखा दें तो वह जीवन भर के लिए आत्म निर्भर बन जाएगा। सबसे आम कारण बालिकाओं को उच्च शिक्षा की कमी, लड़कियों के अनुकूल स्कूलों की कमी, लड़कियों के लिए अवसरों की कमी है। मेरे ख़याल में बालिकाओ को शिक्षा से ही सक्षम बनाया जा सकता है। यह पुरुषों या महिलाओं के बारे में नहीं है, यह उस कौशल के बारे में है जो आपको एक मानव के रूप में स्थापित करता है, और आप संगठन के विकास में उस कौशल के साथ कैसे उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते हैं।
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अच्छी लीडर होने के बावजूद महिलाओं को नेतृत्व की ज़िम्मेदारी नहीं मिलती, ऐसा क्यों?
महिला सदस्यों के साथ या उनके नेतृत्व में काम करने के बारे में पेशेवर चीफ टेक्निकल ऑफिसर मधुर का कहना है कि, दरअसल नजरिया बदलने की ज़रूरत है। नजरिया बदलेगा तभी इस तरह की दकियानूसी सोच के प्रति हमारी मानसिकता बदलेगी। वास्तव में सही मायनों में तभी महिलाओं को सामान अवसर और वेतन जैसी बुनियादी बातों में तवज्जो मिल सकेगी। उनके अनुसार यह कहना भी दूसरी तरफ बिलकुल गलत होगा की महिलाओं को अवसर बिलकुल ही नहीं मिलते। स्वीकार्यता अवश्य कम है लेकिन अवसर ज़रूर मिल रहा हालात भी बदले हैं। काबिलियत का जेंडर नहीं होता, ज़रूरत बस महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने की है।

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देश में आने वाले एक दशक में महिला समानता को लेकर क्या बदलाव आप देख पा रहे हैं ?
देश में महिला समानता और अधिकारों को लेकर बदलाव नज़र आ रहा है, हालांकि अब भी इस और काफी काम किया जाना बाकी है। निजी सॉफ्टवेयर कम्पनी के एमडी कपिल गोयल का कहना है की महिलाओं ने अपने आप को हर फील्ड में साबित किया है, उनकी काबिलियत जगजाहिर है बावजूद इसके मौके न मिलना इस बात का स्पष्ट संकेत है की अब भी महिला अधिकारओं की पैरवी करने वाला ढांचा उतना मज़बूत नहीं जितना की होना चाहिए था। भारत में बीते कुछ दशकों में इस दिशा में काफी अच्छा काम हुआ है। हालांकि अब भी ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को आगे लाना और उन्हें आत्म निर्भर बनाना एक चुनौती है लेकिन शुरुआत करने से ही मंज़िल मिलती है। आशा है अगले कुछ दशकों में भारत में इस दिशा में और भी सुधार देखने को मिलेगा।

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