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#karsalam: इन 15 महिलाओं का भी है दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान बनाने में अहम भूमिका

Published: Jan 26, 2018 05:39:38 pm

Submitted by:

dinesh mishra1

देश का संविधान बनाने में भारत की की 15 महिलाओं की भी काफी अहम भूमिका रही है। आइए जानते हैं उनके बारे में-

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नई दिल्ली : हमारा संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, इसे बनाने में 2 साल 11 महीने 18 दिन लगे और संविधान सभा के अध्यक्ष भीमराव अंबेडकर थे। ये कुछ ऐसी बातें हैं, जिसे सब जानते हैं। लेकिन संविधान को बनाने में देश की 15 महिलाओं की भी काफी अहम भूमिका रही, ये बात बहुत कम लोग जानते हैं। ये महिलाएं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, वकील, समाज सुधारक और राजनीतिज्ञ थीं। इनके विचारों और कार्यों की झलक संविधान में आज भी दिखती है। आइए जानते हैं इनके बारे में-
बेगम अयाज रसूल

वह पहली ऐसी मुस्लिम महिला थीं, जो संविधान सभा के लिए चुनी गई थीं। उन्होंने मुस्लिम आरक्षण के लिए आवाज उठाई और अल्पसंख्यक नेताओं के बीच अपनी अलग पहचान बनाई। उनकी मांग थी कि धार्मिक तौर पर अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए।
राजकुमारी अमृत कौर
अमृत कौर महात्मा गांधी की अनुयायी थीं। वह 1927 में ऑल इंडिया वुमंस कॉन्फ्रेंस की सहसंस्थापक थीं। गांधीजी के आंदोलन दांडी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अमृत कौर जेल गई थीं। वह सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्होंने पर्दा प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ व्यापक अभियान भी चलाया था।
पूर्णिमा बनर्जी
पूर्णिमा भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों का डटकर मुकाबला किया। वह सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी और विजयलक्ष्मी पंडित की तरह ही बेहद सक्रिय राजनीतिज्ञ थीं। उन्होंने जेल में ही रहकर स्नात्तक उपाधि हासिल की थी।
रेणुका रे
रेणुका रे ऑल इंडिया वुमंस कॉन्फ्रेंस की अध्यक्ष रह चुकी हैं। उन्होंने महिला अधिकारों और पैतृक संपत्ति में महिलाओं के हक के लिए लड़ाई लड़ी। संविधान सभा के लिए चुने जाने से पहले वह केंद्रीय विधान सभा में बतौर महिला प्रतिनिधि चुनी गई थीं।
सरोजिनी नायडू
स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान सरोजिनी नायडू की भूमिका काफी अहम थी। उन्हें महात्मा गांधी बुलबुल नाम से बुलाते थे। वह किसी राज्य की पहली महिला राज्यपाल बनीं। उन्होंने 1917 में वुमंस इंडियन एसोसिएशन की स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी।
सुचेता कृपलानी
सुचेता किसी राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी थीं। वह कांग्रेस की महिला विंग की संस्थापक भी थीं। उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ स्पीच से ठीक पहले वंदे मातरम् गाया था। वह संविधान सभा की उपसमिति का हिस्सा थीं, जिसने संविधान बनाया था।
विजय लक्ष्मी पंडित
पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित पहली महिला थीं, जो कैबिनेट मंत्री बनी थीं। वह संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली एशियाई अध्यक्ष थीं। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह कई बार जेल भी गईं। 1939 में उन्होंने कांग्रेस दफ्तर से उस वक्त इस्तीफा दे दिया, जब ब्रिटिश सरकार ने द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत के हिस्सा लेने का ऐलान किया था।
अम्मू स्वामीनाथन
ये सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता थीं। वह महात्मा गांधी की अनुयायी थीं और कई अहिंसक आंदोलनों में हिस्सा लिया था। वह संविधान सभा की सदस्य थीं। इनका मानना था कि संविधान कुछ ज्यादा ही बड़ा बन गया।
हंस जीवराज मेहता
ये संविधान सभा में 1946 से 1949 तक थीं। वह मौलिक अधिकारों पर बनी उपसमिति की सदस्य थीं। साथ ही सलाहकार समिति और प्रांतीय संविधान समिति की सदस्य भी रहीं। 15 अगस्त 1947 को उन्होंने आजाद भारत में पहला झंडा सभा में फहराया था। उन्होंने सर्वशिक्षा के लिए, लैंगिक समानता और भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी। वह यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड में बतौर सदस्य रह चुकी थीं और ऑल इंडियन वुमन कॉन्फ्रेंस की अध्यक्ष भी रह चुकी थीं।
दक्षिणयानी वेलायुधन
ये पहली और दलित महिला थीं, जिन्हें 1946 में संविधान सभा के लिए चुना गया था। वह 34 की उम्र में सभा में पहुंचने वाली सबसे युवा महिला थीं। वह केरल की पहली महिला थीं, जिन्होंने स्नातक उपाधि हासिल की थी। उन्होंने अनुसूचित जातियों की शिक्षा के लिए उल्लेखनीय काम किया।
दुर्गाबाई देशमुख
दुर्गाबाई देशमुख ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई थी। वह नेशनल काउंसिल ऑन वुमंस एजुकेशन की पहली चेयरमैन चुनी गईं थीं। इसे सरकार ने 1958 में गठित किया था।
लीला रॉय
लीला रॉय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्होंने देश में महिलाओं की शिक्षा के लिए उल्लेखनीय काम किया। वह बंगाल से संविधान सभा के लिए चुनी गई इकलौती महिला थीं। वह प्रबल नारीवादी महिला थीं और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की करीबी थीं। उन्होंने भारत विभाजन के विरोध में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
मालती चौधरी
मालती चौधरी ओडिशा से संविधान सभा में पहुंची थीं। वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं। महात्मा गांधी ने इसी चलते उनका नाम ‘तूफानी’ रख दिया था। उन्होंने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग समेत वंतिच समूहों के उत्थान के लिए बेहतरीन कार्य किया।
एनी मैसकरीन
स्वतंत्रता संग्राम के लिए एनी मैसकरीन ने अपना जीवन दांव पर लगा दिया था। केरल की रहने वाली एनी पहली महिला थीं, जिसने त्रावणकोर स्टेट कांग्रेस में हिस्सा लिया। बाद में वह केरल से पहली महिला सांसद भी बनीं।
कमला चौधरी
कमला चौधरी भी संविधान सभा में शामिल 15 महिलाओं में से थीं। उन्होंने भी संविधान निर्माण में अहम भूमिका निभाई।

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