उन दिनों पाकिस्तान अमेरिका से मंगवाए पैटन टैंकों पर बहुत उछल रहा था। पाकिस्तान को न जाने ऐसा क्यों लग रहा था कि वो सिर्फ टैंक के भरोसे भारत को हरा देंगे। शायद उन्हें ये नहीं पता था कि भारत से लड़ने के लिए जिगरा चाहिए, जो उनके पास नहीं था। युद्ध के दौरान हमीद ने अपनी आरसीएल जीप से ही अमेरिका से लिए पाकिस्तान के 7 टैंकों को भस्म कर दिया था। हमीद के इस हैरतअंगेज़ कारनामे को देखकर पूरी दुनिया अपने दांतों तले उंगली चबाने को मजबूर हो गई। पाकिस्तान की हालत का अंदाज़ा तो आप खुद ही लगा सकते हैं।
लेकिन 10 सिंतबर की बात है, दुश्मनों ने हमीद को चारों ओर से घेर लिया। लेकिन इस जवान के जिगरे को तो देखो, जान बचाने के बजाए वो अपनी गन लोड कर रहा था। मेरे ख्याल से हमीद के मन में यही बात आ रही होगी कि जाते-जाते जितने निपट जाएं, कम से कम स्कोर तो बढ़ेगा। बस, इसी बीच हमीद को गोलियों ने छलनी कर दिया। 32 की उम्र में हमीद ने पंजाब के तरण-तारण में शहीद हो गए।
अब्दुल हमीद 27 दिसंबर 1954 को भारतीय सेना के साथ जुड़े थे। उनकी जॉइनिंग ग्रीनेडियर्स रेजिमेंट में हुई थी। हमीद के साहस और बलिदान के लिए उन्हें परमवीर चक्र से नवाज़ा गया।