आपातकाल के 40 साल: मोदी को राजनीति का पाठ
Published: Jun 25, 2015 01:14:00 pm
उस समय मोदी पर्दे के पीछे
रहकर काम करने वालों में थे। उनकी छवि जन नेता की नहीं थी। यह स्थिति जून 2004 तक
रही।
40 वर्ष पूर्व इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया आपातकाल भारतीय राजनेताओं के लिए एक ऎसा समय माना जाता है जिसे उन्होंने पूर्ण रूप से राजनीतिक रूप से निभाया था। आपातकाल के विरूद्ध किए गए प्रयासों में वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी सहभागिता निभाई थी। नवयुवक के तौर पर उस समय अपनी समझदारी और सूझबूझ का कौशल दिखाने के लिए मोदी को काफी प्रोत्साहन भी मिला और वही एक दौर था जब मोदी खुद को राजनीति में प्रवेश करता महसूस कर पा रहे थे।
दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में चलाए जा रहे जनसंघ सत्याग्रह में मोदी ने पहली बार सहभागिता की। 1971 में नवयुवक के तौर पर वे इन सत्याग्रहों का हिस्सा बने। इस दौरान मुक्ति वाहिनी का साथ देने के विरोध में सरकार ने उन्हें कुछ समय के लिए तिहाड़ जेल में भी डाल दिया। कई प्रकार की उच्च स्तरीय जिम्मेदारियों के चलते एक वर्ष के अंदर ही मोदी को अहमदाबाद में स्वयंसेवक कार्यालय का प्रचारक बना दिया गया। एक या दो साल के भीतर उनका कद बढ़ गया था। उसी समय नवनिर्माण आंदोलन इंदिरा गांधी के लिए एक राजनीतिक संकट में तब्दील हो चला था। इस दौरान मोदी स्वयंसेवक कार्यालय में आए पत्रों के जवाब देते थे और कार्यकर्ताओं के लिए रेल व बस के रिजर्वेशन का कार्य किया करते थे।
“सरू सर्व जाने”
आपातकाल के दौरान लोगों में “क्या सही है” इस बात की समझ बढ़ाने के लिए “सरू सर्व जाने” (सही क्या है सभी को जानना चाहिए) कार्यक्रम के तहत उन्होंने जन जागृति शुरू की। आपातकाल के विरूद्ध मोदी को गुप्त रूप से कार्यो को करना पड़ा। जिसके लिए आरएसएस ने उन्हें गुजरात की लोक संघर्ष समिति का अधिकारी नियुक्त किया। इस दौरान दिल्ली की जेल में कैद लोगों से मिलने वे अलग-अलग रूप व कपड़ों में जाया करते थे। साथ ही उन्होंने अपना एक छद्म नाम भी रखा “प्रकाश”। इन साहसी कार्यो से वे जनता के लिए अद्वितीय शोभा के रूप में सामने आए। भारतीय मजदूर संघ की नींव रखने वाले दत्तोपंत थेगड़ी से भी उनकी नजदीकियां बढ़ीं। सरसंघचालक के पिता कहे जाने वाले मधुकरराव भागवत मोदी के विश्वसनीय सलाहकार भी थे।
37 वर्ष पूर्व मोदी ने लिया राजनीति में प्रवेश करने का फैसला
देश भर में नीतियों को पूरा करने और गुप्त रूप से किसी हितकारी कार्यक्रम को परिणाम देने के लिए वे काफी पहचाने जाने लगे। उन्हें “विचारशील” व्यक्ति भी कहा जाने लगा। 37 वर्ष पूर्व उन्होंने राजनीति में प्रवेश करने का फैसला लिया था, लेकिन आपातकाल के दौरान और बाद के संघर्ष के कारण उन्होंने संघ में रहकर ही राजनीति करने का निर्णय लिया और आखिर में काफी प्रतिस्पर्धा के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री बने। आज वे उच्च स्तरीय पद पर आसीन होकर देश का नेतृत्व कर रहे हैं।