7 शताब्दी पहले यूं पड़ा जच्चा की बावड़ी नाम
7 शताब्दी पहले यूं पड़ा जच्चा की बावड़ी नाम
जयपुर रियासत का हिस्सा रहे हिण्डौन सिटी में प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल "जच्चा की बावड़ी" है जो शहर से करसौली (खरेटा) मार्ग पर स्थित है। इस बावड़ी का निर्माण 14 वीं शताब्दी में किया था।
जनश्रुति के अनुसार इसका निर्माण लख्खी बंजारे ने कराया था। जब इसकी खुदाई में जल नहीं निकला तो एक साधु ने कहा था कि यदि कोई गर्भवती स्त्री, इसके अंदर बच्चे को जन्म दे तो इसमें जल निकल सकता है। इसकी सफाई की गई तो बच्चे को दूध पिलाती एक लेटी हुई महिला की प्रतिमा मिली।
करौली
Published: March 04, 2022 11:45:11 am
7 शताब्दी पहले यूं पड़ा जच्चा की बावड़ी नाम
जयपुर रियासत का हिस्सा रहे हिण्डौन सिटी में प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल "जच्चा की बावड़ी" है जो शहर से करसौली (खरेटा) मार्ग पर स्थित है। प्रहलाद कुंड के पास स्थित इस बावड़ी का निर्माण 14 वीं शताब्दी में किया गया था। यह बावड़ी इतनी गहरी है कि इसमें कोई वस्तु गिर जाए तो उसे वापस निकाल पाना मुश्किल है।
जनश्रुति के अनुसार इसका निर्माण लख्खी बंजारे ने कराया था। जब इसकी खुदाई में जल नहीं निकला तो एक साधु ने कहा था कि यदि कोई गर्भवती स्त्री, इसके अंदर बच्चे को जन्म दे तो इसमें जल निकल सकता है। यहां के निवासी बताते हैं कि जब एक बार इसका जल सूख गया और इसकी सफाई की गई तो इसके अंदर मध्य में पत्थर के तख्त पर बच्चे को दूध पिलाती एक लेटी हुई महिला की प्रतिमा मिली। इसी के नाम पर इसका नाम "जच्चा की बावड़ी" पड़ा।
बनावट एवं शिल्प
यह बावड़ी 200 फीट चौड़ी और 200 फीट लंबी वर्गाकार रूप में बनी हुई है। बावड़ी में पानी तक पहुंचने के लिए, जो सीढिय़ां बनी है, उनकी बनावट भी शिल्पकला का शानदार नमूना है। बावड़ी में ऊपर से नीचे तक सीढिय़ां बनी हुई है। पानी चाहे कितना भी गहरा हो, इसमें आसानी से पानी तक पहुंचा जा सकता है। बावड़ी में लगभग 5000 सीढिय़ां हैं।बावड़ी के चारों कोनों में 4 चबूतरें बने हुए हैं। उन चबूतरों के मध्य में जच्चा की लेटी हुई प्रतिमा है। बावड़ी के ऊपर एक कुआं बना हुआ है। इस बावड़ी के पानी की विशेषता यह है कि कपड़े धोने के लिए साबुन का प्रयोग नहीं किया जाता बल्कि बिना साबुन ही कपड़ा धोने पर वे बिल्कुल साफ हो जाते हैं।इस बावड़ी की बनावट में वलुआ पत्थर का प्रयोग किया गया है। इसके सामने प्रहलाद कुंड स्थित है। जल स्वावलंबन अभियान के तहत वर्ष 2016 में प्रशासन ने कुछ राशि स्वीकृत कर इस बावड़ी का जीर्णोद्धार करवाया लेकिन अभी इस ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षण की दरकार है। अगर "जच्चा की बावड़ी" पर प्रशासन ध्यान दे तो इसे हिण्डौन सिटी के पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। यह स्थान विदेशी पर्यटकों को लुभाने के लिए प्रमुख स्थल बन
सकता है।

7 शताब्दी पहले यूं पड़ा जच्चा की बावड़ी नाम
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