इसलिए जरूरत थी नए घर की
नयापुरा स्थित जू वर्ष 1905 में स्थापित किया गया था। यह आकार में काफी छोड़ा है। केन्द्रीय जू प्राधिकारण के वन्यजीवों को जू में रखने के मापदंडों को यह पूरा नहीं करता। इसके पिंजरे व बाड़े भी छोटे हैं। यहां कुल 12 पिंजरे हैं। यह 2.20 हैक्टेयर में फैला हुआ है। प्राधिकरण ने नया जून बनने तक ही इसे अस्थाई तौर पर मान्यता दे रखी है। इस कारण नया चिडिय़ाघर बनाया जाना जरूरी था। वर्तमान में जू में पैंथर, भेडिय़ा, जरख, सियार, चीतल,सांभर, काले हिरण, घडिय़ाल, नीलगाय, चिंकारा, अजगर, बंदर व घडिय़ाल, मगरमच्छ, विभिन्न चिडियाएं जैसे पेलीकंस, सारस आदि हैं। इस प्राचीन चिडिय़ाघर में कई शेर व बाघ रहे हैं। यहां से अन्य जगहों पर भी वन्यजीवों को भेजा है।
नयापुरा स्थित जू वर्ष 1905 में स्थापित किया गया था। यह आकार में काफी छोड़ा है। केन्द्रीय जू प्राधिकारण के वन्यजीवों को जू में रखने के मापदंडों को यह पूरा नहीं करता। इसके पिंजरे व बाड़े भी छोटे हैं। यहां कुल 12 पिंजरे हैं। यह 2.20 हैक्टेयर में फैला हुआ है। प्राधिकरण ने नया जून बनने तक ही इसे अस्थाई तौर पर मान्यता दे रखी है। इस कारण नया चिडिय़ाघर बनाया जाना जरूरी था। वर्तमान में जू में पैंथर, भेडिय़ा, जरख, सियार, चीतल,सांभर, काले हिरण, घडिय़ाल, नीलगाय, चिंकारा, अजगर, बंदर व घडिय़ाल, मगरमच्छ, विभिन्न चिडियाएं जैसे पेलीकंस, सारस आदि हैं। इस प्राचीन चिडिय़ाघर में कई शेर व बाघ रहे हैं। यहां से अन्य जगहों पर भी वन्यजीवों को भेजा है।
यूं पकड़ी गति
-1988 में तत्कालिक वन अधिकारी ने अभेड़ा में बायोलॉजिकल पार्क बनाने का प्रस्ताव रखा।
-वन्यजीव सलाहकार समिति ने इसका अनुमोदन किया।
-1989 में वाइल्डलाइफ बोर्ड के विशेषज्ञों ने मौके का सर्वे किया।
-2005 में सीजेडए के निर्देशानुसार 10 करोड़ की लागत से जू बनाने के निर्देश दिए, लेकिन मामला अटका रहा।
– 2009 में तकनीक समिति का गठन कर कंसल्टेंट नियुक्त करने पर चर्चा हुई।
-2010 में कंसलटेंट ने यूआईटी को पार्क का प्लान बनाकर दिया। यह नगर विकास न्यास के माध्यम से वन विभाग के पास पहुंचा। इसके ले आउट प्लान में संशोधन चलते रहे।
-1988 में तत्कालिक वन अधिकारी ने अभेड़ा में बायोलॉजिकल पार्क बनाने का प्रस्ताव रखा।
-वन्यजीव सलाहकार समिति ने इसका अनुमोदन किया।
-1989 में वाइल्डलाइफ बोर्ड के विशेषज्ञों ने मौके का सर्वे किया।
-2005 में सीजेडए के निर्देशानुसार 10 करोड़ की लागत से जू बनाने के निर्देश दिए, लेकिन मामला अटका रहा।
– 2009 में तकनीक समिति का गठन कर कंसल्टेंट नियुक्त करने पर चर्चा हुई।
-2010 में कंसलटेंट ने यूआईटी को पार्क का प्लान बनाकर दिया। यह नगर विकास न्यास के माध्यम से वन विभाग के पास पहुंचा। इसके ले आउट प्लान में संशोधन चलते रहे।
फिर भी रही धीमी गति
क्षेत्र में नगर निगम का टेंचिंग ग्राउण्ड होने के कारण लंबे समय तक प्रोजेक्ट अटका रहा। करीब 3 वर्ष पहले पार्क व टें्रङ्क्षचग ग्राउंड के मध्य सघन ग्रीन बेल्ट विकसित करने की शर्त पर पार्क के निर्माण की स्वीकृति मिली। इसके बाद कार्य ने तेजी पकड़ी।
क्षेत्र में नगर निगम का टेंचिंग ग्राउण्ड होने के कारण लंबे समय तक प्रोजेक्ट अटका रहा। करीब 3 वर्ष पहले पार्क व टें्रङ्क्षचग ग्राउंड के मध्य सघन ग्रीन बेल्ट विकसित करने की शर्त पर पार्क के निर्माण की स्वीकृति मिली। इसके बाद कार्य ने तेजी पकड़ी।