आइये जानते हैं इस होनहार स्टूडेंट की कामयाबी की कहानी
दरअसल, अपनी मेहनत की दम पर कामयाबी के झंडे गाड़ने वाला यह होनहार स्टूडेंट 26 साल का मोहनलाल है। जिसने यूपीएससी रिजल्ट में 53 वीं रैंक हासिल की है। कहते हैं सफलता का असली स्वाद वही जानता है जिसने संघर्ष का कड़वापन चखा हो। अक्सर माना जाता है कि छोटे गांव के बच्चे बड़े सपने नहीं देखते। लेकिन सपने तो उन्हीं के सच होते हैं जो उन्हें देखना नहीं छोड़ते। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं आईएएस अफसर मोहन जाखड़। जिन्होंने जीवन की कठिनाईयों से लड़ते हुए आईएएस बनने का प्रेरक सफर तय किया है। मोहन के जीवन का सफर बाकी लोगों की तरह आसान नहीं था।मोहन के पिता चन्दाराम जी जाखड़ किसान है। कड़ी मेहनत करके पढ़ाया और बड़ा भाई भी राजस्थान पुलिस में सेवाए दे रहे है । यूपीएससी की परीक्षा को पास करने के लिए जहां लोग मंहगे कोचिंग का सहारा लेते वहीं मोहन ने जयपुर में किराए का मकान लेकर बिना किसी कोचिंग की मदद से एक बार नहीं बल्कि तीन बार यूपीएससी परीक्षा को क्रैक किया है। परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति को कई लोग अपनी कामयाबी की राह में रोड़ा मानते हैं।
बचपन से ही किया संघर्ष
01 जनवरी 1998 को राजस्थान के बाड़मेर ज़िले के भाड़खा गाँव में एक सामान्य परिवार में जन्में मोहन जाखड़ बचपन से पढ़ाई में काफी अच्छे थे। लेकिन उनका बचपन आम बच्चों से काफी अलग था, क्योंकि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और उन्होंने अपना बचपन बेहद गरीबी में बिताया । मोहन के पिता किसान है और खेती का काम करते है, माताजी गृहिणी है लेकिन इससे मुश्किल से परिवार का गुजारा हो पाता था।मोहन भी स्कूल के बाद पिताजी के साथ खेती के काम में मदद करते थे। वो पढ़ाई के साथ-साथ घर चलाने के लिए पिता की मदद किया करते थे।ऐसे चुना आईएएस बनने का रास्ता
12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद आईआईटी की तैयारी के लिये कोटा में एक साल पढ़ाई की उस दोरान आईआईटी खड़गपुर में चयन हो गया। कॉलेज लाइफ में पढ़ाई के साथ साथ क्रिकेट प्रतियोगिता में भाग लिया और गोल्ड मेडल प्राप्त किया। जब विद्यार्थी कॉलेज लाइफ में प्रवेश करता है तो राजनीति में जाना तो स्वाभाविक है। मोहन भी आईआईटी खड़गपुर (पश्चिम बंगाल) में हुए छात्रसंघ चुनाव में उपाध्यक्ष के पद पर विजयी प्राप्त की। मोहन ने जब आईआईटी खड़गपुर से डिग्री प्राप्त की तो , उन्हें यूपीएससी सबसे सही रास्ता दिखा। उन्होंने इसे ही अपना लक्ष्य बना लियाऐसे बने आईएएस ऑफिसर
Ratan Dave,मोहन की सफ़लता की कहानी थानाराम पूनिया की जुबानी :- अनपढ माता-पिता का होनहार बेटा,पहले IIT, फिर आरएएस, उसके बाद आईसीएआर में प्रशासनिक अधिकारी और अब बने आईएएस। अक्सर लोग कहते हैं कि पढ़े-लिखे या पैसे वालों के बच्चों को ही बड़ी सरकारी नौकरी मिलती है। लेकिन इस कहावत को एक किसान के बेटे ने तोड़ दिया है। क्योंकि बाड़मेर जिले के भाड़खा गांव के रहने वाले अनपढ़ माता-पिता के बेटे का सिलेक्शन यूपीएससी की परीक्षा में हो गया है। यानि वह आईएएस अधिकारी बन गया है। बिना किसी कोचिंग के उसने यह कामयाबी हासिल की है। इससे पहले वह आईआईटी जैसे बड़ी परीक्षा भी पास कर चुका है। बता दें कि संघ लोक सेवा आयोग ने सिविल सेवा परीक्षा 2023 का फाइनल रिजल्ट मंगलवार को जारी कर दिया है।
आइये जानते हैं इस होनहार स्टूडेंट की कामयाबी की कहानी
माता गृहिणी तो पिता करते खेती
दरअसल, अपनी मेहनत की दम पर कामयाबी के झंडे गाड़ने वाला यह होनहार स्टूडेंट 26 साल का मोहनलाल है। जिसने यूपीएससी रिजल्ट में 53 वीं रैंक हासिल की है।
माता गृहिणी तो पिता करते खेती
दरअसल, अपनी मेहनत की दम पर कामयाबी के झंडे गाड़ने वाला यह होनहार स्टूडेंट 26 साल का मोहनलाल है। जिसने यूपीएससी रिजल्ट में 53 वीं रैंक हासिल की है।
कहते हैं सफलता का असली स्वाद वही जानता है जिसने संघर्ष का कड़वापन चखा हो। अक्सर माना जाता है कि छोटे गांव के बच्चे बड़े सपने नहीं देखते। लेकिन सपने तो उन्हीं के सच होते हैं जो उन्हें देखना नहीं छोड़ते। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं आईएएस अफसर मोहन जाखड़। जिन्होंने जीवन की कठिनाईयों से लड़ते हुए आईएएस बनने का प्रेरक सफर तय किया है। मोहन के जीवन का सफर बाकी लोगों की तरह आसान नहीं था।मोहन के पिता चन्दाराम जी जाखड़ किसान है। कड़ी मेहनत करके पढ़ाया और बड़ा भाई भी राजस्थान पुलिस में सेवाए दे रहे है । यूपीएससी की परीक्षा को पास करने के लिए जहां लोग मंहगे कोचिंग का सहारा लेते वहीं मोहन ने जयपुर में किराए का मकान लेकर बिना किसी कोचिंग की मदद से एक बार नहीं बल्कि तीन बार यूपीएससी परीक्षा को क्रैक किया है। परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति को कई लोग अपनी कामयाबी की राह में रोड़ा मानते हैं। लेकिन मोहन ने कभी हार नहीं मानी और सफलता की कहानी लिखी। आइये जानते हैं उनके जीवन के प्रेरक सफर के बारे में
बचपन से ही किया संघर्ष
01 जनवरी 1998 को राजस्थान के बाड़मेर ज़िले के भाड़खा गाँव में एक सामान्य परिवार में जन्में मोहन जाखड़ बचपन से पढ़ाई में काफी अच्छे थे। लेकिन उनका बचपन आम बच्चों से काफी अलग था, क्योंकि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और उन्होंने अपना बचपन बेहद गरीबी में बिताया । मोहन के पिता किसान है और खेती का काम करते है, माताजी गृहिणी है लेकिन इससे मुश्किल से परिवार का गुजारा हो पाता था।मोहन भी स्कूल के बाद पिताजी के साथ खेती के काम में मदद करते थे। वो पढ़ाई के साथ-साथ घर चलाने के लिए पिता की मदद किया करते थे।
ऐसे चुना आईएएस बनने का रास्ता
12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद आईआईटी की तैयारी के लिये कोटा में एक साल पढ़ाई की उस दोरान आईआईटी खड़गपुर में चयन हो गया। कॉलेज लाइफ में पढ़ाई के साथ साथ क्रिकेट प्रतियोगिता में भाग लिया और गोल्ड मेडल प्राप्त किया। जब विद्यार्थी कॉलेज लाइफ में प्रवेश करता है तो राजनीति में जाना तो स्वाभाविक है। मोहन भी आईआईटी खड़गपुर (पश्चिम बंगाल) में हुए छात्रसंघ चुनाव में उपाध्यक्ष के पद पर विजयी प्राप्त की। मोहन ने जब आईआईटी खड़गपुर से डिग्री प्राप्त की तो , उन्हें यूपीएससी सबसे सही रास्ता दिखा। उन्होंने इसे ही अपना लक्ष्य बना लिया
ऐसे बने आईएएस ऑफिसर
2020 में जैसे ही डिग्री पूर्ण की उसके साथ ही प्रथम प्रयास में यूपीएससी प्रीलिम्स सिविल सर्विसेज परीक्षा उतीर्ण की लेकिन मैंस परीक्षा को उत्तीर्ण नहीं कर पाये। वर्ष 2021 में फिर प्रयास किया लेकिन प्रीलिम्स को भी उत्तीर्ण नहीं कर पाये लेकिन हिम्मत नहीं हारी वर्ष 2022 में यूपीएससी प्रिलिम्स और मैंस उत्तीर्ण करने के बाद इंटरव्यूज़ दिया लेकिन फाइनल रिजल्ट में बाहर हो गये। इतने प्रयासों के बावजूद भी सफलता नहीं मिलने से मनोबल टूट गया । लेकिन मोहन के माता-पिता, भाई और बहिन का भरपूर सहयोग रहा। परिवार के कई लोग मज़ाक़ भी उड़ाने लग गये कि मोहन आईएएस बन गया तो दूसरी दुनिया क्या करेगी। उसके बाद मोहन ने प्राइवेट जॉब करने का मानस बना लिया और जयपुर में स्थित निजी कोचिंग संस्थान में जॉब के लिए अप्लाई किया तो बात पैसो पर अटक गई। कोचिंग संस्थान से एक लाख 20 हजार रुपये महीने की डिमांड की लेकिन कोचिंग संस्थान ने एक लाख रुपये महीने का बोला तो मोहन वापस कमरे चला गया। तीसरे दिन वापस कोचिंग संस्थान के मालिक का फ़ोन आता है और बोलते है कि आपका हमारी संस्थान में वेलकम है। तब ये बात मोहन अपने बड़े भाई लुंभाराम को बताते है की मैं कल से एक निजी संस्थान में पढ़ाने जाऊँगा और साथ में यूपीएससी की तैयारी भी कर लूँगा, मेरा यहाँ जयपुर में खर्चा भी ज़्यादा है इतने पैसे मेरी पढ़ाई पर खर्च करना संभव नहीं है
बचपन से ही किया संघर्ष
01 जनवरी 1998 को राजस्थान के बाड़मेर ज़िले के भाड़खा गाँव में एक सामान्य परिवार में जन्में मोहन जाखड़ बचपन से पढ़ाई में काफी अच्छे थे। लेकिन उनका बचपन आम बच्चों से काफी अलग था, क्योंकि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और उन्होंने अपना बचपन बेहद गरीबी में बिताया । मोहन के पिता किसान है और खेती का काम करते है, माताजी गृहिणी है लेकिन इससे मुश्किल से परिवार का गुजारा हो पाता था।मोहन भी स्कूल के बाद पिताजी के साथ खेती के काम में मदद करते थे। वो पढ़ाई के साथ-साथ घर चलाने के लिए पिता की मदद किया करते थे।
ऐसे चुना आईएएस बनने का रास्ता
12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद आईआईटी की तैयारी के लिये कोटा में एक साल पढ़ाई की उस दोरान आईआईटी खड़गपुर में चयन हो गया। कॉलेज लाइफ में पढ़ाई के साथ साथ क्रिकेट प्रतियोगिता में भाग लिया और गोल्ड मेडल प्राप्त किया। जब विद्यार्थी कॉलेज लाइफ में प्रवेश करता है तो राजनीति में जाना तो स्वाभाविक है। मोहन भी आईआईटी खड़गपुर (पश्चिम बंगाल) में हुए छात्रसंघ चुनाव में उपाध्यक्ष के पद पर विजयी प्राप्त की। मोहन ने जब आईआईटी खड़गपुर से डिग्री प्राप्त की तो , उन्हें यूपीएससी सबसे सही रास्ता दिखा। उन्होंने इसे ही अपना लक्ष्य बना लिया
ऐसे बने आईएएस ऑफिसर
2020 में जैसे ही डिग्री पूर्ण की उसके साथ ही प्रथम प्रयास में यूपीएससी प्रीलिम्स सिविल सर्विसेज परीक्षा उतीर्ण की लेकिन मैंस परीक्षा को उत्तीर्ण नहीं कर पाये। वर्ष 2021 में फिर प्रयास किया लेकिन प्रीलिम्स को भी उत्तीर्ण नहीं कर पाये लेकिन हिम्मत नहीं हारी वर्ष 2022 में यूपीएससी प्रिलिम्स और मैंस उत्तीर्ण करने के बाद इंटरव्यूज़ दिया लेकिन फाइनल रिजल्ट में बाहर हो गये। इतने प्रयासों के बावजूद भी सफलता नहीं मिलने से मनोबल टूट गया । लेकिन मोहन के माता-पिता, भाई और बहिन का भरपूर सहयोग रहा। परिवार के कई लोग मज़ाक़ भी उड़ाने लग गये कि मोहन आईएएस बन गया तो दूसरी दुनिया क्या करेगी। उसके बाद मोहन ने प्राइवेट जॉब करने का मानस बना लिया और जयपुर में स्थित निजी कोचिंग संस्थान में जॉब के लिए अप्लाई किया तो बात पैसो पर अटक गई। कोचिंग संस्थान से एक लाख 20 हजार रुपये महीने की डिमांड की लेकिन कोचिंग संस्थान ने एक लाख रुपये महीने का बोला तो मोहन वापस कमरे चला गया। तीसरे दिन वापस कोचिंग संस्थान के मालिक का फ़ोन आता है और बोलते है कि आपका हमारी संस्थान में वेलकम है। तब ये बात मोहन अपने बड़े भाई लुंभाराम को बताते है की मैं कल से एक निजी संस्थान में पढ़ाने जाऊँगा और साथ में यूपीएससी की तैयारी भी कर लूँगा, मेरा यहाँ जयपुर में खर्चा भी ज़्यादा है इतने पैसे मेरी पढ़ाई पर खर्च करना संभव नहीं है
Ratan Dave,
तब मोहन के भाई ने स्पष्ट मना कर दिया और समझाया कि प्राइवेट नौकरी तो कभी मिल जाएगी, लेकिन आईएएस बनने का अभी क्रीम टाइम है इस पर ही फोकस करो। सिर्फ़ पढ़ाई के अलावा कुछ नहीं करना है आपकी पढ़ाई पर जितना भी खर्चा आएगा वो हम देने के लिए तैयार है। मोहन की ज़िन्दगी का सबसे ऐतिहासिक दिन था क्योंकि यदि मोहन ट्रैक चेंज कर देते और प्राइवेट जॉब में लग जाते तो शायद ही आज आईएएस बन पाते। मोहन के ताऊजी नेनाराम जी जाखड़ एवम जेठाराम जी कड़वासरा (SI राज पुलिस)शुरू से ही कहा करते थे कि हमारा मोहन कलेक्टर बनेगा उनका भी एक सपना था वो भी साकार हुआ।
अंततः आज मोहन 53 वीं रैंक के साथ चयनित हुए।✌️✌️
तब मोहन के भाई ने स्पष्ट मना कर दिया और समझाया कि प्राइवेट नौकरी तो कभी मिल जाएगी, लेकिन आईएएस बनने का अभी क्रीम टाइम है इस पर ही फोकस करो। सिर्फ़ पढ़ाई के अलावा कुछ नहीं करना है आपकी पढ़ाई पर जितना भी खर्चा आएगा वो हम देने के लिए तैयार है। मोहन की ज़िन्दगी का सबसे ऐतिहासिक दिन था क्योंकि यदि मोहन ट्रैक चेंज कर देते और प्राइवेट जॉब में लग जाते तो शायद ही आज आईएएस बन पाते। मोहन के ताऊजी नेनाराम जी जाखड़ एवम जेठाराम जी कड़वासरा (SI राज पुलिस)शुरू से ही कहा करते थे कि हमारा मोहन कलेक्टर बनेगा उनका भी एक सपना था वो भी साकार हुआ।
अंततः आज मोहन 53 वीं रैंक के साथ चयनित हुए।✌️✌️