जो चीज नजर नहीं आती हम उसका अनुमान लगाते हैं। हम जानते हैं कि टाइल्स पर गिरा ग्लास टूट जाएगा, लेकिन कालीन पर नहीं। हम परस्पर संबंधों के बीच भेद कर सकते हैं। हम जानते हैं कि बारिश में छाता लगाने के पीछे जरूरत है, लेकिन बिना बारिश छाता लगाना इच्छा पर निर्भर है। यह अनुभूति के एक महत्वपूर्ण घटक को छूता है। हम दूसरों के अंतज्र्ञान के मनोविज्ञान को विकसित करते हैं, जिसे थ्योरी ऑफ माइंड कहते हैं। ये एल्गोरिदम है, जो हमारी सोच में परिलक्षित होता है। क्योंकि हम अनपेक्षित का अनुमान भी लगा सकते हैं, जब हम सडक़ पर गाड़ी चला रहे हैं, जहां एक मां अपने तीन बच्चों के साथ सडक़ पार कर रही है। तो इस हादसे को एआइ नहीं रोक सकती। क्योंकि मानवीय चेतना एक अनुभूति है, यह मशीनी ज्ञान नहीं है।
यदि एआइ प्रणाली 99 फीसदी अच्छा प्रदर्शन करती है तो एक फीसदी मामूली चूक भी विनाशकारी हो सकती है, जैसे यदि इसका इस्तेमाल कार चलाने या चिकित्सा निदान में किया जाता है। अब तक यह प्रणाली विकसित नहीं हो पाई है कि इसे बेहतर कैसे किया जाए? हालांकि शोधकर्ताओं का तर्क है कि यह तभी संभव है, जब इस प्रणाली को इंसानी दिमाग जितना संवेदनशील बनाया जाए। पिछले दिनों फिलिप बाल की रिपोर्ट में सामने आया कि हम एक ही तरीके से नहीं सीख सकते। जबकि ‘तंत्रिका नेटवर्क’ हमारे दिमाग में न्यूरॉन्स के उच्च परस्पर वेब के सिलिकॉन चिप संस्करण को डेटा पैटर्न के अनुसार प्रशिक्षित करता है। डीपमाइंड का कंप्यूटर प्रोग्राम ‘अल्फागो’ एक जटिल बोर्ड के साथ इंसानी विशेषज्ञों को मात देने में सक्षम है। जबकि गूगल अनुवाद भी नौसिखिए युवाओं के लिए बेहतर है, हालांकि अभी इसमें खामियां हैं। मौजूदा एआई 2010 से प्रभाव में आई है।