वक्ष पर चरण चिह्न गर्भगृह में श्यामल प्रस्तर से निर्मित चतुर्भुज विष्णु और पार्श्व में महालक्ष्मी की प्रतिमा है। भगवान के वक्षस्थल पर गुरु भृगु द्वारा मारी गई लात का पौराणिक महत्व प्रकट करता चरण अंकित हैं, जो अंचल के अन्य कृष्ण मंदिरों की तुलना में दुर्लभ शिल्प कल्पना का प्रतीक है। मुख्य प्रतिमा के विग्रह में चारों हाथों में आयुध हैं। कण्ठ में हार, कौस्तुभ मणि, करधनी, कंकण, किरीट, नुपूर, बाजूबंद आदि सुशोभित हैं। मंदिर का सभा मंडप 16 खंभों पर निर्मित है। इसके मध्य में अष्टधातु की बनी कृष्णवर्ण की गरूड़ की प्रतिमा है। नींव से शिखर तक लाल व श्वेत प्रस्तरों से गुजराती शैली में निर्मित यह मंदिर विभिन्न कालखंडों के बीतने के उपरांत भी अपनी महत्ता बनाए हुए हैं। मंदिर का शिल्प गुजरात के प्रभास व देलवाड़ा के मंदिरों के शिल्प से साम्य रखता है। गुंबज पर कमल और नर्तकियों की प्रतिमाएं श्रद्धालुओं को भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला का अहसास कराती हैं। गुम्बज की परिधि में क्षेत्रपालों की प्रतिकृतियां व दैवीय प्रसंगों को भी उकेरा है। प्रत्येक शिलाखंड पर पुष्प-पल्लव, योगिनियों, भैरव, समुद्र मंथन, देव-दानव युद्ध आदि उत्कीर्ण हैं। पीछे की तरफ चतुर्भुज विष्णु की भूरे रंग की प्रतिमा खंडित अवस्था में है। इसके सिर पर मुकुट, नीचे का दायां हाथ वरद मुद्रा में अक्षमाला, ऊपर के हाथ में त्रिशूल है, जबकि बाएं दोनों हाथ खण्डित हैं। दाएं व बाएं पैरों में गण-गणिकाएं विद्यमान हैं।
पहले सुध ली, फिर छोड़ा अधूरा काम द्वारिकाधीश मंदिर के पुरावैभव को लेकर 1999 में पुरातत्व विभाग ने सर्वे की थी। इसकी रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी गई। वर्षों बाद मंदिर के संरक्षण-संवर्धन का काम हाथों में लिया। 2014-2015 में मुख्यमंत्री बजट योजना के अन्तर्गत मंदिर के लिए दो किस्तों में 65 लाख रुपए स्वीकृत हुए। जीर्णोद्धार शुरू भी हुआ, लेकिन मंदिर विकास का कार्य पूर्ण नहीं हो पाया। मंदिर परिसर में लाल पत्थर बिखरे पड़े हैं। परिसर में निर्मित उद्यान बदहाल है। पुरातत्व विभाग की ओर से मंदिर के ठीक बाहर इसे संरक्षित घोषित करने का सूचना पट्ट अवश्य लगा रखा है, किंतु मंदिर को नया स्वरूप देने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है।
ट्रस्ट कर रहा देखभाल द्वारिकाधीश ट्रस्ट मंडल के पूर्व अध्यक्ष लक्ष्मी नारायण शुक्ला, वैष्णव समाज अध्यक्ष दिनेश त्रिवेदी व बुजुर्ग बताते हैं कि यह विशाल मंदिर पुरातन धरोहर है। हर प्रस्तर पर अद्भुत शिल्प है। पुरातत्व विभाग को लिखने पर समिति बनी। संरक्षण के लिए लाखों रुपए स्वीकृत हुए। खुदाई, सफाई आदि कार्य हुए। कई शिलाएं अब भी बिखरी पड़ी है। वर्तमान में कास कार्य ठप है।