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कोटा

200 करोड़ खर्च कर जो काम बड़े-बड़े ‘इंजीनियर’ नहीं कर सके, वो पांचवी पास ने ‘मुफ्त’ में कर दिखाया

इनोवेशन : ढाई अक्षर पढ़े इंसान ने बनाया बायो सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट

कोटाJun 11, 2018 / 12:05 pm

​Zuber Khan

200 करोड़ खर्च कर बड़े-बड़े 'इंजीनियर' नहीं कर सके जो काम वो ढाई अक्षर पढ़े इंसान ने 'मुफ्त' में कर दिखाया

200 करोड़ खर्च कर बड़े-बड़े ‘इंजीनियर’ नहीं कर सके जो काम वो ढाई अक्षर पढ़े इंसान ने ‘मुफ्त’ में कर दिखाया

कोटा. नगर विकास न्यास और नगर निगम के आला इंजीनियर 200 करोड़ रुपए फूंकने के बाद भी नालों के जिस पानी को साफ नहीं कर पाए, उसे ढाई अक्षर पढ़े इंसान ने मुफ्त में पीने लायक बना दिया। पानी साफ करने में आई लागत को निकालने के लिए उसने बिजली बनाने का तरीका भी खोजा। बावजूद इसके नगर निकायों ने इस अनूठी खोज को तवज्जो नहीं दी।
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गांव-गांव घूमकर शौचालय बनाने वाले गुमानपुरा निवासी नीरज तिवारी ने बायो सीवरेज ट्रीटमेंट एंड इलेक्ट्रिसिटी जनरेशन प्लांट इजाद किया है। वेस्टेज से बनाए गए इस प्लांट में सीवरेज को साफ करने के लिए ओपन टनल बनाई गई है। यह तीन हिस्सों में बंटी है।
टनल के मुख्य द्वार को नाले से जोड़ा गया है। सभी टनल में 5-5 एनीकट बनाए गए हैं। पहले एनीकट में लाइम स्टोन, दूसरे में रथकांकर स्टोन, तीसरे में चारकोल, चौथे में ईंटों के टुकड़े और पांचवें में मिक्स मटेरियल के साथ-साथ फिटकरी डाली। नाले के पानी के साथ बहकर आया कचरा साफ करने के लिए इन सभी एनीकट के बीच में जालियों के फिल्टर लगाए गए हैं।
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बायो ट्रीटमेंट का लिया सहारा
पहली टनल से पानी फिल्टर होने के बाद एक टैंक में गिराया जाता है, ताकि बारीक गाद नीचे बैठ सके। गाद और कीचड़ का स्तर नापने के लिए इस टैंक में मीटर भी लगाया गया है। यह टैंक दूसरी टनल से जुड़ा है। इसमें लंबे एनीकट बनाए गए हैं। इनसे गुजरने के बाद पानी दूसरे टैंक में गिरता है जहां से तीसरी टनल में जाता है।
इस टनल में पानी में मौजूद वैक्टीरिया को मारने के लिए नीम, पौधों के जाइलम और स्लोयम टिश्यूज डालकर उसे फिल्टर किया जाता है। आखिर में बने एक टैंक में साफ पानी स्टोर होता है।

ऑक्सीजन की कमी ने खोजी बिजली
पांचवीं तक पढ़े नीरज बताते हैं कि जलदाय विभाग से जब साफ पानी के नमूनों की जांच करवाई तो सीवरेज में पाए जाने वाले सभी हानिकारक तत्व खत्म हो चुके थे, लेकिन पानी में पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं थी। जबकि पीने के लिए ऑक्सीजन होना जरूरी था।
जब जलदाय विभाग के अभियंताओं से उन्होंने इस खामी को दूर करने का तरीका पूछा तो उन्होंने साफ हो चुके पानी को लिफ्ट करके ऊंची टंकी में स्टोर करने और वहां से नीचे गिराने का सुझाव दिया। नीरज बताते हैं कि व्यर्थ में गिरते हुए पानी को देखकर बिजली बनाने का विचार आया। इसके बाद उन्होंने टैंक में पानी चढ़ाने के बाद उसे एक डायनुमा लगे टर्बाइन पर गिराया तो बिजली भी बनना शुरू हो गई।

नहीं मिली तवज्जो
नीरज बताते हैं कि उन्होंने नगर निगम, नगर विकास न्यास, जिला प्रशासन और राज्य सरकार व केंद्र सरकार के मंत्रालयों में भी प्रजेंटेशन दिए, लेकिन तवज्जो नहीं मिली। जब वे जिला उद्योग केंद्र महाप्रबंधक वाईएन माथुर से मिले तो उन्होंने न सिर्फ सराहना की, बल्कि कोटा के 14 बड़े औद्योगिक संस्थानों को सीएसआर स्कीम के तहत इस प्लांट को लगाने के लिए निर्देशित भी किया। हालांकि किसी भी संस्थान ने प्लांट को अब तक स्थापित नहीं कराया।
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