कार्टून्स का ऐसे पड़ता है बच्चों पर बुरा असर भाषा का खराब विकास… एक अध्ययन में सामने आया कि अधिकतर कार्टून्स उचित शब्दों का उपयोग नहीं करते। बहुत बार बच्चा भी अपने पसंदीदा कार्टून की तरह आवाज निकालकर बोलने लगता है।
व्यवहार संबंधी समस्याएं… कार्टून्स के सामने ज्यादा समय बिताना बच्चों के सामाजिक व्यवहार को भी प्रभावित करता है। इससे बच्चे अपने आसपास होने वाली बातों को लेकर उदासीन हो जाते हैं।
व्यवहार संबंधी समस्याएं… कार्टून्स के सामने ज्यादा समय बिताना बच्चों के सामाजिक व्यवहार को भी प्रभावित करता है। इससे बच्चे अपने आसपास होने वाली बातों को लेकर उदासीन हो जाते हैं।
बदल रही है मनोवृति
टीवी पर हिंसा के कार्यक्रम देखने वाले बच्चों की मानसिकता भी वैसी हो रही है। इससे उनके व्यवहार में बदलाव आना स्वाभाविक है। काल्पनिक दुनिया का असल जीवन में ऐसा दखल घातक है। बच्चों के स्वभाव में बदलाव आ रहा है। बच्चों की मनोवृत्ति बदल रही है
कमजोर सामाजिक जीवन… कार्टून की आदत वाले बच्चे अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलना पसंद नहीं करते। जब भविष्य में उन्हें समाज के साथ घुलने मिलने का मौका आता है तो उन्हें परेशानी होती है।
रिश्तों पर असर... एक मशहूर कार्टून सीरिज में एक कैरेक्टर टीचर की ओर से डांटने पर उसका विरोध करता है। बच्चे भी ऐसा करने लगते हैं। वे घर के लोगों के साथ भी बात-बात पर बुरा बर्ताव करने लगते हैं।
टीवी पर हिंसा के कार्यक्रम देखने वाले बच्चों की मानसिकता भी वैसी हो रही है। इससे उनके व्यवहार में बदलाव आना स्वाभाविक है। काल्पनिक दुनिया का असल जीवन में ऐसा दखल घातक है। बच्चों के स्वभाव में बदलाव आ रहा है। बच्चों की मनोवृत्ति बदल रही है
कमजोर सामाजिक जीवन… कार्टून की आदत वाले बच्चे अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलना पसंद नहीं करते। जब भविष्य में उन्हें समाज के साथ घुलने मिलने का मौका आता है तो उन्हें परेशानी होती है।
रिश्तों पर असर... एक मशहूर कार्टून सीरिज में एक कैरेक्टर टीचर की ओर से डांटने पर उसका विरोध करता है। बच्चे भी ऐसा करने लगते हैं। वे घर के लोगों के साथ भी बात-बात पर बुरा बर्ताव करने लगते हैं।
रियलिटी शोज का प्रभाव
चैनलों पर कई तरह के कौशल प्रदर्शन आधारित रियलिटी-शो प्रसारित किए जा रहे हैं। टीआरपी के लिए ये बचपने को भुनाने में भी पीछे नहीं रहते हैं। इन कार्यक्रमों का हिस्सा बनने वाले बच्चे तो मानसिक दबाव और प्रतिस्पर्धा के जाल में फंसते ही हैं, इन्हें देखने वाले बच्चों पर भी बुरा असर पड़ता है।
चैनलों पर कई तरह के कौशल प्रदर्शन आधारित रियलिटी-शो प्रसारित किए जा रहे हैं। टीआरपी के लिए ये बचपने को भुनाने में भी पीछे नहीं रहते हैं। इन कार्यक्रमों का हिस्सा बनने वाले बच्चे तो मानसिक दबाव और प्रतिस्पर्धा के जाल में फंसते ही हैं, इन्हें देखने वाले बच्चों पर भी बुरा असर पड़ता है।
ज्यादा हिंसक हो रहे हैं बच्चे… सिस्टल (वाशिंगटन) में हुए अध्यन के अनुसार जो बच्चे अधिक टीवी देखते हैं वे ज्यादा हिंसक होते जा रहे हैं। दस साल से कम उम्र के ४ प्रतिशत बच्चे माता-पिता से मारपीट करने से भी गुरेज नहीं करते।
अध्ययनों में सामने आया… -2 से 7 साल के बच्चों में कार्टूनों का सीधा असर देखने को मिलता है जैसे चिड़चिड़ापन और पढ़ाई में मन न लगना, जबकि 7 से 12 साल तक के बच्चे उग्र हो रहे हैं।
-35 घंटे से ज्यादा टीवी से चिपके रहते हैं 6 से 17 साल की आयुवर्ग के ज्यादातर बच्चे एक हफ्ते में।
-9 प्रतिशत अभिभावकों ने माना है कि टीवी कार्यक्रम बदतर होते जा रहे हैं। साथ ही इमोशनल अत्याचार, डेट ट्रैप जैसे कार्यक्रमों में फूहड़ता परोसी जा रही है जिन्हें आजकल के बच्चे-बड़े देख रहे हैं। ऐसे कार्यक्रमों की भेड़चाल बढ़ती जा रही है।
(एसोचैम के सर्वे के अनुसार)
-35 घंटे से ज्यादा टीवी से चिपके रहते हैं 6 से 17 साल की आयुवर्ग के ज्यादातर बच्चे एक हफ्ते में।
-9 प्रतिशत अभिभावकों ने माना है कि टीवी कार्यक्रम बदतर होते जा रहे हैं। साथ ही इमोशनल अत्याचार, डेट ट्रैप जैसे कार्यक्रमों में फूहड़ता परोसी जा रही है जिन्हें आजकल के बच्चे-बड़े देख रहे हैं। ऐसे कार्यक्रमों की भेड़चाल बढ़ती जा रही है।
(एसोचैम के सर्वे के अनुसार)
ऐसे करें कंट्रोल
बच्चों के टीवी देखने का समय फिक्स करें। रोजाना सिर्फ १ घंटे के लिए टीवी देखने दें। इसमें से आधा घंटा कार्टून और बाकी आधा घंटा बच्चे अपनी पसंद का कोई और प्रोग्राम देख सकें।
अचानक उनका टीवी देखने का समय कम न करें। ऐसा धीरे-धीरे ही करें।
बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं। उन्हें अकेला न रहने दें। इससे टीवी की ओर उनका रुझान कम होगा।
बच्चों के साथ गेम्स खेलें, उन्हें म्यूजियम दिखाने लेकर जाएं, उनके साथ बातें करें।
बच्चों के भीतर कोई एक ऐसी हॉबी विकसित करें जो उनका पैशन बन जाए। मसलन बच्चा कोई इंस्ट्रूमेंट बजाना सीख सकता है, म्यूजिक सीख सकता है, ड्रॉइंग सीख सकता है।
कोशिश करें बच्चे का खेल के मैदान से रिश्ता कायम रहे। वह दौड़े, भागे, शारीरिक मेहनत करे। ऐसा करने से बच्चों के अंदर हॉर्मोनल बैलेंस बना रहता है और उनकी शारीरिक और मानसिक क्षमता में बढ़ोतरी होती है।
बच्चा जिद करें तो उसके सामने हथियार न डालें नहीं तो वे वह हर बार जिद करके अपनी बात मनवाने लगेगा।
बच्चों के टीवी देखने का समय फिक्स करें। रोजाना सिर्फ १ घंटे के लिए टीवी देखने दें। इसमें से आधा घंटा कार्टून और बाकी आधा घंटा बच्चे अपनी पसंद का कोई और प्रोग्राम देख सकें।
अचानक उनका टीवी देखने का समय कम न करें। ऐसा धीरे-धीरे ही करें।
बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं। उन्हें अकेला न रहने दें। इससे टीवी की ओर उनका रुझान कम होगा।
बच्चों के साथ गेम्स खेलें, उन्हें म्यूजियम दिखाने लेकर जाएं, उनके साथ बातें करें।
बच्चों के भीतर कोई एक ऐसी हॉबी विकसित करें जो उनका पैशन बन जाए। मसलन बच्चा कोई इंस्ट्रूमेंट बजाना सीख सकता है, म्यूजिक सीख सकता है, ड्रॉइंग सीख सकता है।
कोशिश करें बच्चे का खेल के मैदान से रिश्ता कायम रहे। वह दौड़े, भागे, शारीरिक मेहनत करे। ऐसा करने से बच्चों के अंदर हॉर्मोनल बैलेंस बना रहता है और उनकी शारीरिक और मानसिक क्षमता में बढ़ोतरी होती है।
बच्चा जिद करें तो उसके सामने हथियार न डालें नहीं तो वे वह हर बार जिद करके अपनी बात मनवाने लगेगा।