कांग्रेस के तीन दिवसीय चिंतन शिविर में भाग लेने के लिए राहुल गांधी दिल्ली के सराय रोहिल्ला स्टेशन से ट्रेन से राजस्थान के उदयपुर पहुंच चुके हैं। सबसे बड़ा सवाल ये है कि एक के बाद एक कई राज्यों के चुनावों में हार से पस्त कांग्रेस क्या इस चिंतन शिविर में हार की ईमानदार समीक्षा करेगी? लेकिन उसके पहले राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने नया सवाल खड़ा कर दिया है। राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने का। देखना होगा कि कांग्रेस इस चिंतन शिविर में किस सवाल का सामना किस तरह से करती है….
झीलों की नगरी उदयपुर में आज 13 मई, शुक्रवार से कांग्रेस का तीन दिवसीय ‘नव संकल्प चिंतन शिविर’ शुरू हो रहा है। देश का सबसे पुराना दल अपनी कमजोरियां व भावी चुनौतियों पर विचार करेगा। कांग्रेस के सामने चुनौती ये है कि दो माह पहले हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे पार्टी के लिए निराशाजनक रहे थे। ऐसे में कांग्रेस के चिंतन शिविर के इतिहास पर एक नजर डालना भी जरूरी है। कांग्रेस में चिंतन शिविर मुख्य रूप से सोनिया गांधी के पार्टी के अध्यक्ष के रूप में सत्ता संभालने के बाद शुरू हुए हैं। 14 मार्च 1998 में पहली बार कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद कांग्रेस का पहला चिंतन शिविर पचमढ़ी में सितंबर 1998 में हुआ था। इस समय तक कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बेदखल हो चुकी थी और अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के नेतृत्व में बनी गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री बने जो 19 मार्च 1998 से 22 मई 2004 तक रहे। जबकि कांग्रेस का दूसरा चिंतन शिविर आम चुनाव से ठीक पहले पांच साल बाद 2003 में शिमला में आयोजित हुआ था। जबकि तीसरा चिंतन शिविर 2013 में जयपुर में आयोजित हुआ था और अब नौ साल बाद राजस्थान के उदयपुर में चौथा शिविर हो रहा है।
क्या मंथन से निकलेगा शिमला जैसा अमृत चिंतन शिवर के परिणामों की बात करें तो आरंभ के 1998 और 2003 के दो शिविर सफल कहे जा सकते हैं क्योंकि इसके बाद जो आम चुनाव 2004 में हुए उसमें कांग्रेस के नेतृत्व में गठबंधन सरकार का गठन हुआ था, जो लगातार एक दशक तक चली। गौर करने की बात ये है कि इस बीच कांग्रेस को किसी चिंतन शिविर की जरूरत नहीं पड़ी!
पचमढ़ी शिविर को याद करने की है जरूरत बता दें, 1998 में, सोनिया गांधी के पार्टी अध्यक्ष के रूप में बागडोर संभालने के बाद मध्य प्रदेश के पचमढ़ी में 4 से 6 सितंबर के बीच इसी तरह का एक चिंतन शिविर आयोजित किया गया था। पचमढ़ी अधिवेशन में सोनिया गांधी ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा था, “चुनावी उलटफेर अपरिहार्य हैं और अपने आप में चिंता का कारण नहीं हैं। लेकिन जो बात हमें परेशान करती है वह है हमारे सामाजिक आधार का क्षरण होना, उस सामाजिक गठबंधन का हमसे दूर जाना जो हमारा समर्थन करता है और हमारी ओर देखता है। यह भी चिंताजनक है कि पार्टी की भीतरी कलह हमारा इतना समय और ऊर्जा लेती है, जबकि इसे लोकप्रिय समर्थन और आमजन का भरोसा हासिल करने के लिए मिलकर काम करने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। कहने की जरूरत नहीं कि आज ये चुनौतियां कांग्रेस के सामने पहले से कहीं बहुत विकट हैं….देखना होगा कि आज से शुरू हो रहा कांग्रेस का चिंतन शिविर उसे सत्ता में लाता है या फिर कांग्रेस में चिंता के सुर तेज होते हैं। इस बार के चिंतन शिविर का खास बात ये बताई जा रही है कि इस बार 50 प्रतिशत से अधिक भागीदार युवा होने का दावा किया जा रहा है। देखना होगा कि इस शिविर में युवाओं की बात कितनी सुनी जाती है। सचिन पायलट जैसे नेता जरूर इस पर नजर रख रहे होंगे।