नई दिल्ली। गुजरात में जगह-जगह मरी हुई गायें ऐसी ही पड़ी हैं। दलित आंदोलनरत हैं। मृत गायों की खाल निकालने और दफनाने से इंकार कर चुके हैं। बता दें कि कुछ वक्त पहले तक यहां के 15 फीसदी रोहितास समुदाय की रोजी-रोटी का एकमात्र जरिया मृत गाय की खाल निकालना और उसे बेचना था। इस काम में इसी समुदाय का सबसे ज्यादा दखल है।
खाल निकालने से पहले ली जाती है अनुमति
सौराष्ट्र के सुरंद्रनगर में रहने वाले हीराभाई बताते हैं कि मृत गाय की खाल निकालने से पहले पंजरापोल्स (गौशाला) से अनुमति ली जाती है। समुदाय के कुछ परिवार ‘भम’ लोगों के साथ मिलकर इस काम को अंजाम देते हैं।
महीने में 10-12 हजार की कमाई कर परिवार का करते थे भरण-पोषण
हीराभाई कहते हैं कि मृत गाय की खाल निकालकर दलित समुदाय के लोग महीने में 10 से 12 हजार रुपए की कमाई करके परिवार का भरण-पोषण करते हैं। ‘भम’ लोग एक दिन में पहले छह से सात मृत गायों की खाल निकालते थे, लेकिन ऊना की घटना, गौ-रक्षकों की तरफ से की जाने वाली मार-पीटाई और उत्पीड़न के बाद दलितों ने अब यह काम छोड़ दिया है।
बड़े शहरों के कारखानों में भेजी जाती है चमड़ी
हीराभाई का कहना है कि वैसे भी पिछले कुछ सालों से इस काम में बड़े खिलाड़ी शामिल हो चुके हैं। सूबे के दलित सिर्फ मृत गाय की चमड़ी निकालते थे, नमक लगाकर रखने के बाद उसे कानपुर, कोलकाता, चेन्नई और हापुर स्थित चमड़े के कारखानों में भेज दिया जाता था।
1,200 करोड़ का है कारोबार, 500 से 800 में बिकती थी खाल
मृत गाय की खाल निकालने का कारोबार सालाना 1,200 करोड़ के करीब है। हीराभाई का कहना है कि मृत गाय के मांस को 40 रुपए किलो तक बेचा जाता था। काटकर सूखाया मांस करीब 100 रुपए किलो भी बिकता था। गाय की हड्डियों को गुजरात में ही स्थित कारखाने में क्रैश किया जाता है।
हीराभाई कहते हैं, लोग चर्म उत्पादों का इस्तेमाल तो करना चाहते हैं लेकिन मृत जानवरों की खाल निकालने वालों की पिटाई करने से पीछे नहीं हटते। हीराभाई कहते हैं जब बाजार सही था उस वक्त चमड़ा 800 रुपए किलो बिकता था। अब 500 रुपए में बेचा जा रहा है। मृत गाय की हड्डियों को 10 रुपए किलो के हिसाब से बेचा जाता था।
गौरतलब है कि ऊना और इसके आसपास के इलाकों में बड़े पैमाने पर दूध का कारोबार होता है। यहां अच्छी नस्ल की गायें पाली जाती हैं। पशुपालन का काम मुख्य रूप से गैर-दलित समुदाय के लोग करते हैं। दलित समुदाय के लोगों का काम मृत जानवरों की खाल निकालकर उनको दफनाना था, जो कि 18 जुलाई के बाद से बंद है।
दिन में छह से सात मृत गायों की खाल निकालता थे ‘भम’ लोग
-15 फीसदी रोहितास समुदाय करता है मृत गाय की खाल निकालने का काम
– 1,200 करोड़ रुपयों का है सालाना कारोबार
– 500 से 800 रुपए के बीच बेची जाती है चमड़ी
– 40 रुपए किलो बिकता है मांस
– 100 रुपए किलो बेची जाता है सूखा मांस
– 10 रुपए किलो बेचा जाती हैं हड्डियां
– एक दिन में 6 से 7 मरी हुई गायों की चमड़ी निकालता है भम समुदाय
– चमड़ी निकालने का 6 से 7 करोड़ में दिया जाता है कॉन्ट्रेक्ट