खुद उठाई जिम्मेदारी
महिला की हर पल बढ़ती प्रसव पीड़ा और होने वाले बच्चे की जान को खतरा देखकर राणा ने मेडिकल टीम का इंतजार करने की बजाय खुद ही जिम्मेदारी उठाने का फैसला किया। उन्होंने बगलवाले केबिन में मौजूद कुछ बुजुर्ग महिलाओं की मदद से कुमकुम का प्रसव करवाने में मदद के लिए कहा। महिलाओं ने जब कुमकुम को देखा तो वे दंग रह गईं। उन्होंने राणा को बताया कि बच्चा किसी भी वक्त हो सकता है। यह सुनते ही सभी पुरुष यात्रियों को केबिन से बाहर कर कुमकुम के केबिन को चादरों से ढांक दिया गया। महिलाओं के कहने पर राणा ने प्रसव के लिए ब्लेड, गर्म पानी, धागा जैसे जरूरी सामान का इंतजाम कर दिया। महिलाओं ने अपने अनुभव और राणा की मदद से कुमकुम का सुरक्षित प्रसव करवाने में सफल रहीं। कुमकुम ने स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया था। बच्ची के जन्म की खबर सुनकर पूरे बी-२ कोच के यात्रियों ने राणा के लिए जमकर तालियां बजाईं। राणा ने डिलीवरी के बाद महिलाओं के बताए अनुसार कुमकुम के लिए खाने-पीने का भी प्रबंध किया।
पारिवारिक पृष्ठभूमि आई काम
राणा ने बताया कि उनके पिता स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी थे और माता भी स्वास्थ्य विभाग में काम करती थीं। इस पारिवारिक पृष्ठभूमि के चलते राणा को यह निर्णय लेने में जरा भी देर नहीं लगी। उनकी सूझ-बूझ और तुरंत निर्णय ने बच्ची और मां दोनों के जीवन को बचा लिया। रेलवे विभाग ने भी राणा की रेलवे के अधिकारिक ट्विटर अकांउट पर प्रशंसा करते हुए इसे गौरव बताया। वहीं दिल्ली स्टेशन डायरेक्टर संदीप कुमार गहलोत ने भी राणा और उनके सहयोगियों को ईनाम से नवाज़ा है। राणा कहते हैं कि टीटीआई होने के नाते उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाई है। उनकी जगह कोई भी दूसरा टीटीआई होता तो वह भी ऐसा ही करता। वहीं राणा ने भारतीय रेलवे का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है।
पहले भी हो चुकी हैं डिलीवरी
ट्रेन में डिलिवरी का यह पहला मामला नहीं है। बीते दिनों जलपाईगुड़ी में अगरतला-हबीबगंज एक्सप्रेस में भी एक महिला की डिलीवरी हुई थी। इस ट्रेन में परेशान हो रही गर्भवती महिला की तरफ लोगों का ध्यान गया तो तीन लोगों ने डॉक्टर को ढूंढा। जब ट्रेन में कोई डॉक्टर नहीं मिला तो तीन यात्रियों ने ही मिलकर महिला की डिलिवरी कराई थी।