वहीं जयपुर के डॉक्टरों का कहना कि इस मामले में कार्रवाई डॉक्टर के बजाए कंपनी पर होना चाहिए। दवा कंपनी ओमेगा फार्मास्यूटिकल ने कैसे और क्या मिलाकर ये दवाई बनाई है। कहीं सस्ती दवा खरीदने के चक्कर में मोहल्ला क्लीनिक में कोई खराब गुणवत्ता की दवा तो नहीं आ गई। साथ ही अगर बच्चे चार साल से कम के हैं तो यह भी देखा जाना चाहिए कि उन्हें डिस्ट्रोमेथोर्फन के घटक वाली दवा उन्हें क्यों दी गई। इसके बावजूद यह नोट किया जाना चाहिए कफ सप्रेशंट सभी दवाओं में डिस्ट्रोमेथोर्फन होता है। लेकिन कफ सप्रेशंट डिस्ट्रोमेथोर्फन की दवा बच्चों के लिए नहीं होती है, उनके लिए कफ निकालने वाली या कफ पतला करने वाली दबा होती है।
सभी खांसी की दवाओं में डिस्ट्रोमेथोर्फन होता है। इससे मौत होना हैरान करने वाला है। डॉक्टरों के बजाए दवा कंपनी की जांच होना चाहिए।
डॉ नरेंद्र रूंग्टा, वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ
ये देखना होगा कि चार साल से कम बच्चों की क्यों डिस्ट्रोमेथोर्फन के घटक वाली दवा दी गई। दवा डॉक्टर ने दी है या नर्स ने दी है। दवा की कितनी डोज दी गई है, ये सब जांच के विषय हैं। साथ ही दवा कंपनी के इस बैच की सभी सीरप की जांच होना चाहिए। डिस्ट्रोमेथोर्फन के साइड इफेक्ट देखे गए हैं, पर मौत कभी नहीं सुनी। डॉ. तरूण पाटनी, वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ व अध्यक्ष, जयपुर मेडिकल एसो.