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अंतरिक्ष में नहीं गईं पर ‘स्पेस वुमन’ कहलातीं हैं

वर्ष 1971 में ओडिशा के कटक में जन्मीं सुष्मिता मोहंती ने अहमदाबाद के राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान और फ्रांस के अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष विश्वविद्यालय (आइएसयू) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से प्रशिक्षण लिया। मोहंती अंतरिक्ष में तो नहीं गईं, लेकिन स्पेस रिसर्च से जुड़ी रहने के कारण उन्हें ‘स्पेस वुमन’ कहा जाता है।

जयपुरJan 05, 2020 / 06:36 pm

pushpesh

अंतरिक्ष में नहीं गईं पर ‘स्पेस वुमन’ कहलातीं हैं

जयपुर.
हाल ही भारत की स्पेस वुमन सुष्मिता मोहंती ने कहा कि इस बार इसरो प्रमुख एक महिला हो सकती है। दुनिया के कई देशों में पहचान बना चुकी मोहंती उन महिलाओं में है, जिसने चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में खुद को साबित किया। इसरो वैज्ञानिक नीलमणि मोहंती की बेटी सुष्मिता ने कम उम्र में ही अपने कॅरियर की शुरुआत की थी। मोहंती दुनिया की एकमात्र अंतरिक्ष उद्यमी हैं, जिन्होंने तीन अलग-अलग महाद्वीपों में अपनी कंपनियां स्थापित की हैं। वर्ष 2001 में सैन फ्रांसिस्को में एयरोस्पेस कंसल्टिंग फर्म ‘मून फ्रंट’, 2004 में वियना में आर्किटेक्चर और डिजाइनिंग फर्म ‘लिक्विफायर’ की स्थापना की।
2008 में वे भारत लौट आईं और बेंगलूरु में उन्होंने अपना तीसरा उद्यम ‘अर्थ2ऑर्बिट (ई2ओ)’ के रूप में शुरू किया। ई2ओ के जरिए मोहंती ने अंतरराष्ट्रीय लॉन्चिंग पर ध्यान केंद्रित किया। 2012 में ई2ओ से एक जापानी उपग्रह और 2016 में एक गूगल सैटेलाइट की लॉन्चिंग में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने ह्यूस्टन में नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर में शटल मीर मिशन पर भी काम किया। अब वह एल्गोरिद्म के जरिए सैटेलाइट से वैश्विक जलवायु निगरानी प्रणाली विकसित करने की दिशा में काम कर रही हैं।
तीन देशों में की पढ़ाई
भारत, फ्रांस और स्वीडन में शिक्षित मोहंती के पास कई डिग्रियां हैं। स्वीडन की चालमर्स विवि से एयरोस्पेस आर्किटेक्चर में पीएचडी की। वर्ष 2017 में फॉच्र्यून पत्रिका के कवर पेज पर प्रकाशित किया गया था। 2012 में उन्हें भारत की 25 कामयाब हस्तियों में शामिल किया गया था। 2005 में उद्यमिता के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने पर सुष्मिता को वाशिंगटन में एयरोस्पेस में इंटरनेशनल एचीवमेंट अवॉर्ड दिया गया।
ओडिशा के मुख्यमंत्री ने दी बड़ी जिम्मेदारी
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के आमंत्रण पर उन्हें 2017 से 2019 तक एमओ स्कूल अभियान का अध्यक्ष बना राज्यमंत्री का दर्जा दिया। एमओ स्कूल पूर्व छात्रों का कल्याणकारी मंच है, जिससे 65 हजार सरकारी स्कूलों के 72 लाख छात्र जुड़े हुए हैं। सितंबर तक इस अभियान से 100 करोड़ रुपए जुटा लिए थे। इस राशि को गरीब और शिक्षा से वंचित बच्चों की शिक्षा पर खर्च किया जाता है।

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