आज हर इंसान मोबाइल की गिरफ्त में है। उनमें से कई तो ऐसे हैं, जो एक पल भी इससे दूर नहीं रह पाते। पर अब ऐसे लोग भी डिजिटल-डिटॉक्सिफिकेशन की ओर रुख करने लगे हैं…
सो शल मीडिया के माध्यम से हम घर बैठे-बैठे दुनिया-जहान से जुड़ जाते हैं। लेकिन हमारी जिंदगी में इसका दायरा इतना बढ़ता जाता है कि दुनिया से मिलाने वाली यह खिड़की हमारे शयनकक्ष तक में झांकना शुरू कर देती है। आज हर इंसान मोबाइल की गिरफ्त में है। उनमें से कई तो ऐसे हैं, जो एक पल भी इससे दूर नहीं रह पाते। पर अब ऐसे लोग भी डिजिटल-डिटॉक्सिफिकेशन की ओर रुख करने लगे हैं…
दीपिका शर्मा, नई दिल्ली
मनोवैज्ञानिकों की मानें तो मोबाइल, लैपटॉप जैसे गैजेट्स से घिरे रहने के चलते लोगों में एक तरह की बेचैनी है। ऑफिशियल ईमेल, सोशल मीडिया अपडेट के तनाव का असर रिश्तों पर पड़ रहा है। इस वर्चुअल वल्र्ड के चलते हम अपने आसपास की दुनिया से दूर हो रहे हैं। इसी समस्या का हल बन कर सामने आया है ‘डिजिटल डिटॉक्सÓ (डिजिटल डिटॉक्सिफिकेशन)। सुनने में यह भले अजीब लगे, लेकिन टेक्नोलॉजी से घिरे युवाओं के लिए यह एक बेहद अहम थेरेपी बनती जा रही है।
चिढ़ होती है अब
‘मैं यानी निधि सिंह और मेरे पति राजीव दोनों आईटी सेक्टर में काम करते हैं। हमारी सबसे बड़ी मुश्किल है कि ऑफिस हो या घर हम हमेशा तकनीक से घिरे रहते हैं। इसके अलावा नेटवर्किंग के लिए सोशल मीडिया पर भी अच्छा-खासा वक्त देना पड़ता है। हमारी शादी को ज्यादा समय नहीं हुआ, लेकिन हमारे पास एक-दूसरे से कहने को ज्यादा कुछ नहीं होता। पहले समझ में नहीं आता था, पर चिढ़ होने लगी है अब। कहीं भी घूमने जाते हैं तो वहां का आनंद लेने के बजाए वहां की फोटो सोशल मीडिया पर डालने में लगे रहते हैं। इसलिए अब फैसला किया है ऐसी जगह जाएंगे, जहां नेटवर्क ही न आए, ताकि कुछ समय तो एक-दूसरे के साथ आराम से रह सकें।
…यानी रिश्तों का समय
अमरीका, ब्रिटेन, चीन समेत डिजिटल डिटॉक्स का ट्रेंड धीरे-धीरे भारत में भी आ रहा है। इसकी सुविधा विशेष प्रकार के कई कैम्प, होटल, रिसॉर्ट आदि दे रहे हैं। एक्सपट्र्स के अनुसार, लोग पहले होटल में वाई-फाई, इंटरनेट आदि की सुविधा है या नहीं, इसके बारे में जरूर पूछते थे, लेकिन अब ऐसे होटल तलाश रहे हैं, जहां फोन तक नेटवर्क में न आए। विशेषज्ञो के अनुसार, यह रिश्तों को बचाने की कवायद है। अब तकनीक से दूर रहकर आसपास की चीजों से सीधे जुडऩे की जरूरत महसूस की जा रही है। ब्रिटेन की बात करें तो यहां निजी जिंदगी में इंटरनेट के बढ़ते दखल से लोग परेशान हो चुके हैं। यहां की मीडिया एंड टेलीकॉम रेग्युलेटर ऑफकॉम की रिपोर्ट के अनुसार, 34 प्रतिशत इंटरनेट यूजर डिजिटल डिटॉक्स की कोशिश कर चुके हैं।
क्या है डिजिटल-डिटॉक्स
हम तकनीक से घिरे हुए हैं। पूरे दिन उसी के बारे में सोचते हैं और चिंतित भी रहते हैं। ऐसे में तकनीक के मायाजाल से खुद को दूर रखने के लिए कुछ समय के लिए डिजिटल छुट्टी पर जाने को ही ‘डिजिटल डिटॉक्सÓ कहते है। इस छुट्टी में लोग मोबाइल, इंटरनेट व तकनीक से दूर रहते हैं।
तकनीक का बुरा असर
मोबाइल फोन का ज्यादा इस्तेमाल अनिद्रा की समस्या पैदा कर सकता है। वहीं सोशल मीडिया अहंकार की भावना बढ़ाता है। तकनीक से घिरे होने के चलते याददाश्त पर भी असर पड़ता है।
इंटरनेट फ्री जोन में जा रहे लोग
दुनिया भर में कई टूर एंड ट्रैवल्स कंपनियां ऐसे कैम्प लगा रही हैं, जहां लोगों को तकनीक से दूर रखा जाता है। ट्रैवल कंपनी हॉलीडे आईक्यू के आंकड़ों की मानें तो पिछले साल की अपेक्षा साल 2016 में डिजिटल वल्र्ड से दूर ट्रैवल पर जाने वाले लोगों की संख्या में लगभग 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
अध्ययनों से खुलासा…
लगातार फोन की स्क्रीन देखने से बच्चों में भावनात्मकता कम होती है। साथ ही कई बार सिर्फ 3-4 दिन टेक्नोलॉजी से दूर रहने पर लोगों के सोचने के तरीके में सुधार हुआ है।