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छह राज्यों ने इसलिए कहा- हमारे यहां ना खोलें और इंजीनियरिंग कॉलेज

locationनई दिल्लीPublished: Dec 28, 2017 06:28:55 pm

Submitted by:

Navyavesh Navrahi

– एआईसीटीई को लिखे पत्र में कहा- पहले मोजूदा संस्थानों की स्थिति सुधारी जानी चाहिए।

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– सीटें न भर पाने के कारण इन राज्यों में बंद होने के कगार पर हैं इंजीनियरिंग कॉलेज

नई दिल्ली। छह राज्यों- हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश , हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना ने अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) को 2018 से नए इंजीनियरिंग कॉलेज खोलने पर रोक लगाने की अपील की है। साथ ही फैकलिटी की लगातार कमी होने के कारण मौजूदा संस्थानों में क्षमता विस्तार पर भी स्थाई प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया है। गौर हो, इंजीनियरिंग स्ट्रीम का देश की कुल शिक्षा में 70 फीसदी स्थान है। एमबीए, फार्मेसी, कंप्यूटर एप्लीकेशन, आर्कीटेक्चर, टाउन प्लानिग, होटल मैनेजमेंट, आर्ट एंड क्राफ्ट इसके बाद आते हैं। एक मीडिया हाउस ने हाल ही में की अपनी पड़ताल के बाद दावा किया है कि देश में 3291 इंजीनियरिंग कॉलेजों में बीई/बीटेक की 15.5 लाख सीटें हैं। जिनमें से 2016-17 के अकादमिक सैशन के दौरान 51 फीसदी खाली रहीं।
पुनर्विचार को कहा है

एआईसीटीई के अध्यक्ष अनिल सहस्रबुद्धे ने कहा कि परिषद ने छह राज्यों में से हरियाणा, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना के सुझावों को स्वीकार कर लिया है। इन राज्यों में फिलहाल नए संस्थान खोलने पर विचार नहीं किया जाएगा। अगर जरूरत पड़ती है, तो उनके सुझावों को ध्यान में रखकर ही कोई फैसला लिया जाएगा। ‘हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश ने हमें कोई नया संस्थान न खोलने को कहा है। यह अच्छा नहीं है। हरियाणा, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना ने इस अनुरोध के साथ-साथ भविष्य की योजनाओं के बारे में भी बताया है। इसलिए हमने दोनों राज्यों (एमपी और हिमाचल प्रदेश) से उनके अनुरोध पर पुनर्विचार करने के कहा है।
ये हैं कारण

अकादमिक वर्ष 2016-17 में मध्यप्रदेश में 98,247 बीई/बीटेक सीटों के लिए 58 खाली रही। हिमाचल प्रदेश में 7,830 सीटें थी, जिनमें से 74 प्रतिशत खाली रहीं। मीडिया हाउस ने तीन महीने की लंबी पड़ताल के बाद इसके कारणों का भी खुलासा किया है। पड़ताल में पता चला कि विनियमन में गैप, कथित भ्रष्टाचार, बुनियादी सुविधाओं की कमी, घटिया लैब व्यवस्था तथा अयोग्य फैकिलिटी के कारण स्टूडेंट की कमी इन संस्थानों में हो रही है। साथ ही ये संस्थान न तो अपने कोर्सों की ब्रांडिंग कर पाए हैं और न ही अपने छात्रों के लिए कोई अच्छा कैंपस प्लेसमेंट न ही पेश कर पाए हैं। जिससे इन संस्थानों को छात्रों की कमी से जूझना पड़ रहा है। ये संस्थान अपने राज्यों की इंडस्ट्री से भी कोई संबंध स्थापित नहीं कर पाए हैं, जिससे छात्रों को काई लाभ हो सके।
हरियाणा में हालत ज्यादा खराब

एआईसीटीई के एनरोलमैंट डाटा से स्पष्ट है कि हरियाणा में इंजीनियरिंग शिक्षा की हालत सबसे खराब है। राज्य में 2016-17 सेशन के दौरान 74 फीसदी इंजीनियरिंग सीटें खाली थीं, जो देश के अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा थीं। एआईसीटीई को लिखे पत्र में हरियाणा के तकनीकी शिक्षा विभाग ने बताया है कि वर्तमान शैक्षणिक वर्ष में बी-टैक की लगभग 70 प्रतिशत सीटें खाली रहने का अनुमान है। इस हालत को देखते हुए हरियाणा ने राज्य में 2018-19 और 2019-20 के सैशन के लिए कोई नया तकनीकी संस्थान न खोलने का अनुरोध किया है। साथ ही मौजूदा संस्थानों में सीटे बढ़ाने पर भी रोक लगाने का सुझाव दिया है। विभाग ने कहा है कि फिलहाल राज्य में मौजूद तकनीकी संस्थानों की क्षमता बढ़ाने की बजाय उनकी गुणवत्ता बढ़ाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
ये दिया सुझाव

हरियाणा ने कहा है कि इन संस्थाओं से निकलने वाले छात्रों को कौशल के अभाव के कारण बेरोजगार रहना पड़ता है। छात्रों के लिए अच्छी णवत्ता वाला वाले प्रशिक्षण सुनिश्चित करने के लिए पिछले तीन साल से अच्छा प्रदर्शन न करने वाले संस्थानों को बंद किया जाना चाहिए। भविष्य में ऐसे संस्थान खोले जा सकते हैं, जिनमें बुनियादी सुविधाएं तथा अति-विक्सित इंफ्रास्ट्रक्चर हो, ताकि अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा दी जा सके।
तेलंगाना ने अन्य संस्थानों पर भी रोक लगाने को कहा
इसी तरह, तेलंगाना में पिछले साल 1.4 लाख बीटेक सीटों में से 47 फीसदी खाली रही थीं। तेलंगारा ने अपने पत्र में तकनीकी संस्थानों के साथ बी-फार्मेसी तथा एमबीए/एमसीए संस्थानों पर भी रोक ललगाने को कहा है। हालांकि तेलंगाना ने इतना जरूर कहा है कि काउंसिल राज्य के पिछड़े इलाकों के लिए अलग से विचार कर सकती है। तेलंगाना राज्य के इंजीनियरिंग कॉलेजों में सैकेंड शिफ्ट की शुरुआत भी नहीं करना चाहता।
– छत्तीसगढ़, 2016-17 में 22,934 स्नातक इंजीनियरिंग सीटों में से 63 प्रतिशत खाली थीं। राज्य ने पत्र में आग्रह किया है कि अगर नए संस्थान खोलने ही हैं, तो वहां खेले जाएं, जहां पर पहले से कोई संस्थान न हो।
– राजस्थान में पिछले साल 58,013 बीटेक सीटों में से 67 प्रतिशत सीटें ही भर पाया था। राज्य ने अपने पत्र में कहा है कि तीन जिलों जैसलमेर , कसौली और उदयपुर को छोड़कर राज्य में कोई नई निजी तकनीकी संस्था की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
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