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चौकिए मत! ये हकीकत है, भारत में दूसरी कक्षा के छात्र हिंदी का शब्द भी नहीं पढ़ पाते

locationनई दिल्लीPublished: Oct 13, 2017 12:35:37 pm

Submitted by:

Dhirendra

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत उन 12 देशों की सूची में दूसरे नंबर पहै जहां दूसरी कक्षा के छात्र एक छोटे से अध्याय का एक शब्द नहीं प

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मलावी पहले स्थान पर
भारत में प्रारंभिक शिक्षा का आलम उस स्थिति में जब यहां पर राइट टू शिक्षा का अधिकार है। 6 14 साल तक के बच्चों सार्वभौंमिक शिक्षा अभियान के दायरे में आते हैं। हर जनगणना में देश में साक्षरता दर में इजाफा होता है। लेकिन एक चीज सही नहीं होता वो है अध्ययन और अध्यापन का बेहतर तरीका। यही वजह है कि विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में भारत को दूसरा स्थान मिला है। इस सूची में भारत से ऊपर मलावी है जो पहले स्थान पर है।
ज्ञान के संकट की चेतावनी
विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट वल्र्ड डवलपमेंट रिपोर्ट 2018 : लर्निंग टू रियलाइज एजुकेशंस प्रॉमिस में वैश्विक शिक्षा में ज्ञान के संकट की चेतावनी दी। इसमें कहा गया है कि इन देशों में लाखों युवा छात्र बाद के जीवन में कम अवसर और कम वेतन की आशंका का सामना करते हैं, क्योंकि उनके प्राथमिक व माध्यमिक स्कूल उन्हें जीवन में सफल बनाने के लिए शिक्षा देने में विफल हो रहे हैं।
जोड़-घटाव भी नहीं कर पाते
ग्रामीण भारत में तीसरी कक्षा के तीन चौथाई छात्र दो अंकों क घटाने वाले सवाल हल नहीं कर सकते व पांचवीं कक्षा के आधे छात्र ऐसा नहीं कर सकते। शिक्षा बिना ज्ञान के गरीबी मिटाने और सभी के लिए अवसर पैदा करने व समृद्धि लाने के अपने वादे को पूरा करने में विफल होगी। यहां तक कि स्कूल में कई वर्ष बाद भी लाखों बच्चे पढ़-लिख नहीं पाते या गणित का आसान-सा सवाल हल नहीं कर पाते।
क्यूं हैं ऐसे हालात
जानकारों का कहना है कि विश्व बैंक की रिपोर्ट भारतीय स्कूली शिक्षा व्यवस्था का अकाट्य सुबूत है। जमीनी स्तर पर हालात इससे ज्यादा खराब हैं। सरकार बेहतर करने के नाम पर केवल खोखले वादे करती है, लेकिन शिक्षा में सुधार को लेकर गंभीरता से कोई कदम नहीं उठाए जाते। यही कारण है कि बच्चे न तो अध्याय पढ़ पाते हैं और न ही सामान्य जोड़-घटाव जैसे सवालों को हल कर पाते हैं। अगर स्थिति में सुधार करनी है तो सरकार को जमीनी स्तर पर प्रयास करने होंगे और योग्य शिक्षकों को स्कूलों से जोडऩा होगा।
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