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जिनका अज्ञात ही ज्ञात है…

Published: Aug 25, 2016 07:01:00 pm

Submitted by:

Deepika Sharma

हिंदी साहित्य में अभी तक एक ही अबूझ गुत्थी थी- स्नोवा बार्नो। अब ‘अबूझमाड़’ प्रदेश के रूप में विख्यात छत्तीसगढ़ के बस्तर की एक आदिवासी कवियित्री दोपदी सिंहार चर्चा में है। इनकी रचनाओं में इतनी धार और बेबाकपना है कि हिंदी साहित्य जगत के लिए ये अनजाना नाम नहीं रह गई हैं,  लेकिन सच में ये कौन हैं, यह जानना अब भी बाकी है। हिंदी साहित्य की अबूझ पहेली : दोपदी सिंहार और स्नोवा बार्नो…


मज्कूर आलम
oped@in.patrika.com

हिंदी साहित्य जगत में अभी स्नोवा बार्नो की न तो यादें धूमिल पड़ी है, न ही बातें थमी है। इस बीच इसी महीने एक और रहस्यमयी लेखिका दोपदी सिंहार चर्चा में आ गई है। बस माध्यम अलग है। स्नोवा जहां पत्र-व्यवहार कर रही थी, पत्र-पत्रिकाओं में कहानियों की पांडुलिपियां भेज रही थीं, वहीं दोपदी अपनी कविताओं के माध्यम से फेसबुक पर सबसे सीधा संवाद कर रही है। उसे लेकर भी वैसी ही गप्पबाजी और चर्चाएं चल रही हैं। पक्ष-विपक्ष में लोग खूब बातें कर रहे हैं। इन दोनों में काफी समानता है। दोनों रहस्य के आवरण में हैं। इनका ज्ञात अज्ञात ही है। इतना ही नहीं दोनों का लेखन काफी बोल्ड और जनसरोकारी है। हिंदी जगत इन्हें मिथ्या मान रहा है। 

दोनो पक्ष है मजबूत
एक पक्ष का मानना है कि हिंदी साहित्य इन्हें खारिज नहीं कर सकता, क्योंकि साहित्य में तो लेखन ही पहचान होती है, न कि व्यक्ति की। इस लिहाज से यह तो वक्त तय करेगा कि इनकी रचनाएं आने वाले वक्त में कहां टिकती हैं। फिलहाल इतना तो तय है कि इन दोनों ने जो भी लिखा है एक नंगा सच है और हिंदी साहित्य को इन जैसी कहानियों और कविताओं की जरूरत है। वहीं दूसरे पक्ष का मानना है कि व्यक्ति की पहचान से ही रचनाएं भी जुड़ी होती हैं। जैसे बेबी हालदार जब ‘आलो आंधारि’ लिखती हैं तो यह आत्मकथात्मक रचना उनकी पृष्ठभूमि की वजह से चर्चित होती है।
 
उनके जीवन से जुड़ी इसी रचना को अगर किसी और ने लिखा होता तो शायद इतनी तवज्जो न मिलती। इसी तरह दोपदी सिंहार यदि आदिवासी महिला है तो उसका लिखा यकीनन शानदार है, क्योंकि तब इसे उस समाज के सच का उद्घाटन माना जाएगा। उसके लेखन की अनगढ़ता कोई मायने नहीं रखेगी, पर अगर दिल्ली मेें बैठा कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति ऐसा लिख रहा है तो इसके मायने ठीक वही नहीं होंगे, जो एक आदिवासी दोपदी सिंहार के लिखे के होंगे। 

एक थी स्नोवा बार्नो 
2008 में हिंदी साहित्य पटल पर धूमकेतू की तरह एक लेखिका स्नोवा बार्नो का उदय होता है। 2012 तक वह अपनी रहस्यमयी उपस्थिति दर्ज कराती है। फिर अचानक गायब। पर उससे जुड़े रोमांचक चटकारे हिंदी साहित्य जगत में आज भी बड़े चाव से सुने-सुनाए जाते हैं। हिंदी साहित्य की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में उसकी कहानियां छपी और लोगों ने उसे पढ़ा भी और उसके लेखन को सराहा भी। यहां तक कि बार्नो का कथा संग्रह भी छापे गए, जो अब भी उपलब्ध हैं। 


अनगढ़ सौंदर्य की कविताएं
दोपदी सिंहार की कविताओं में बस्तर का गंवई सोंधापन, आदिवासी जीवन का आदिम राग और फौजी बूटों की बारूदी गंध इस तरह समाए हुए थे कि अनायास हिंदी कविता को उसके कई जरूरी, मगर छूटे बिंब याद आ गए। बेशक, इन कविताओं में कई जगह अनगढ़ता दिखी, लेकिन वह भी एक तरह से इनका सौदर्य बढ़ाती रही। ये महान कविताएं नहीं हैं, मगर एक आदिवासी स्त्री के जीवट और बिखरे हुए घर-संसार का संवेदनशील सुराग देने वाली हैं। 


कहीं नहीं मिली स्नोवा बार्नो
‘हंस’ में मैंने स्नोवा बार्नो की कई कहानियां प्रकाशित कीं। उसे लेकर तरह-तरह के गॉसिप सामने आए। कई लोग मनाली में उसके डाक के पते पर उसे खोजने गए, लेकिन वह नहीं मिली। फिर खबर मिली कि वो कलकत्ते में रह रही है। कुछ लोगों ने वहां भी उसे खोजा, लेकिन वह नहीं मिली। एक खबर यह भी है कि स्नोवा अब पोलैंड, फिनलैंड या स्वीटजरलैंड लौट गई हैं।Ó 
(2010 में स्नोवा पर उन्होंने ये टिप्पणी की थी)


अपने बारे 
में दोपदी…
सुना है, दूर दिल्ली में सरगनाओं की बैठक जमी है/ बीड़ी-सिगरेट चाय-दारू पी-पीकर
कौन है ये दोपदी?
ये मर्द है, औरत के पास तो जीभ नहीं जो कविता बनाए…
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