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कोरोना स्पेशल रिपोर्ट: विदेशी निवेशकों ने निकाले 63 खरब रूपये, भारत समेत एशियाई देशों में आर्थिक संकट गहराया

अगर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में यह गिरावट कुछ समय के लिए बरकरार रही तो विकासशील देशों के लिए इससे उबर पाना आसान नहीं होगा।

Jun 05, 2020 / 10:20 pm

Mohmad Imran

कोरोना स्पेशल रिपोर्ट: विदेशी निवेशकों ने निकाले 63 खरब रूपये, भारत समेत एशियाई देशों में आर्थिक संकट गहराया

चीन के वुहान शहर से पूरी दुनिया में फैले नोवेल कोरोनावायरस कोविड-19 ने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है। अर्थव्यवस्था में बीते कुछ महीनों से जारी इस वैश्विक गिरावट का ही नतीजा है जिसके परिणामस्वरूप विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) भी बाधित हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) के अनुसार इस साल वैश्विक एफडीआइ प्रवाह वर्ष 2020-21 के दौरान 30 से 40 फीसदी के बीच बने रहने की आशंका है। यूएनसीटीएडी का यह भी कहना है कि अगर एफडीआइ में यह गिरावट कुछ समय के लिए यूं ही बना रहा तो आने वाले महीनों में विकासशील देशों के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे। दुनिया भर के विशेषज्ञों ने चर्चा में कहा कि कोविड-19 आर्थिक वैश्वीकरण को खत्म कर रहा है। संक्रमण को रोकने के लिए दुनिया भर के देशों में लगे लॉकडाउन के कारण और मांग और आपूर्ति दोनों ही स्तर पर वैश्विक उत्पादन नेटवर्क अब से पहले इतनी बुरी तरह कभी प्रभावित नहीं हुए थे।
उपभोक्ता आधारित उद्योगों पर संकट
मार्च के अंत में, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने घोषणा की थी कि निवेशकों ने कोरोना महामारी के चलते विकासशील देशों से 83 बिलियन अमरीकी डॉलर (62.65 खरब रुपए) निकाल लिए हैं, जो अब तक का सबसे बड़ा पूंजी बहिर्वाह (कैपिटल आउटफ्लो) है। यूएनसीटीएडी के अनुसार एफडीआई के इतने तेजी से सिकुडऩे का सबसे ज्यादा प्रभाव उपभोक्ताओं पर पूरी तरह निर्भर उद्योग जैसे एयरलाइंस, होटल, रेस्तरां, ट्यूर एंड ट्रेवल एजेंसी, विनिर्माण उद्योग और ऊर्जा क्षेत्र पर सबसे ज्यादा पड़ेगा।
कोरोना स्पेशल रिपोर्ट: विदेशी निवेशकों ने निकाले 63 खरब रूपये, भारत समेत एशियाई देशों में आर्थिक संकट गहराया
विकासशील देशों के लिए चुनौती
एफडीआई में इस गिरावट का असर सबसे ज्यादा दक्षिण एशिया के भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश जैसे विकासशील देशों पर ही ज्यादा पड़ेगा। क्योंकि विकासशील देशों के लिए एफडीआई प्रवाह में वैश्विक औसत से भी अधिक गिरावट आने की आशंका है। दूसरा कारण यह भी है कि बीते कुछ दशकों में एफडीआई पर अधिक निर्भर हो गए हैं। 1985 से 2017 के बीच विकासशील देशों में फडीआई के जरिए निवेश 14 बिलियन से बढ़कर 690 बिलियन(वर्तमान मूल्य) हो गया। यह वैश्विक एफडीआइ इन-फ्लो की हिस्सेदारी के रूप में 25 से 46 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्शाता है।

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