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friendship day: राजनीति में दोस्ती दुश्मनी फिर दोस्ती का अजब खेल

Published: Aug 01, 2015 05:12:00 pm

Submitted by:

Rakesh Mishra

राजनीति में कौन कब किसका दुश्मन बन जाए और कब दुश्मन का ही हाथ थाम ले कहा नहीं जा सकता

PM Modi and BJP president Amit Shah

PM Modi and BJP president Amit Shah

नई दिल्ली। राजनीति में कौन कब किसका दुश्मन बन जाए और कब दुश्मन का ही हाथ थाम ले कहा नहीं जा सकता है। इस दुनिया में तो राज और नीती से ही दोस्त और दुश्मन बनते हैं। इस खबर में हम उनका भी जिक्र करेंगे जिन्होंने कभी एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ा तो वो भी शामिल हैं जो दोस्त, दुश्मन और फिर से दोस्त बन गए हैं।




शिवराज सिंह चौहान-उमा भारती
मध्य प्रदेश भाजपा के दोनों कद्दावर नेताओं का रिश्ता “मेरी-तेरी बनती नहीं और तेरे बिन रहा जाता नहीं” जैसी है। शुरू में दोनों साथ मिलकर काम करते थे। मध्य प्रदेश में 10 साल बाद सत्ता में आने के बाद भाजपा ने सरकार बनाई और उमा भारती मुख्यमंत्री बनी। एक साल बाद ही उमा के खिलाफ एक पुराने दंगे के मामले में गिरफ्तारी नोटिस जारी किया गया और इसके चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। उनकी जगह शिवराज सिंह चौहान को सीएम की कुर्सी मिली। बताया जाता है कि इसके बाद से दोनों के रिश्तों में खटास आने लग गई। सीएम पद छोड़ने के बाद उमा ने भाजपा भी छोड़ दी थी और अलग पार्टी बनाई, लेकिन बुरी हार झेलनी पड़ी। वर्तमान में दोनों एक दूसरे का सम्मान करते हैं, लेकिन गाहे बगाहे इशारों-इशारों में दोनों एक दूसरे पर हमला बोलते रहते हैं। हालांकि एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उमा भारती को अपनी बड़ी बहन कहते हैं।




राहुल गांधी-ज्योतिरादित्य सिंधिया

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और मध्य प्रदेश से सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच दोस्ती बचपन से कही जा सकती है। दोेनों नेता पारिवारिक राजनीतिक विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं। राहुल पर जहां नेहरू गांधी परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है, जबकि सिंधिया अपने पिता माधवराव सिंधिया के नाम को आगे बढ़ा रहे हैं। माधवराव सिंधिया और राजीव गांधी भी काफी करीब थे। राजीव सरकार में सिंधिया रेल मंत्री थे। वर्तमान में विपक्ष में बैठी कांग्रेस को फिर से उबारने के लिए ज्योतिरादित्य और राहुल गांधी मिलकर काम कर रहे हैं। संसद में भी दोनों नेता पास में ही बैठते हैं। दोनों नेताओं की पढ़ाई भी एक ही स्कूल दून स्कूल और हावर्ड यूनिवर्सिटी से हुई।



नरेंद्र मोदी और अमित शाह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह का रिश्ता बहुत पुराना है। ये पिछले 20 साल से एक-दूसरे का साथ दे रहे हैं। इनकी मुलाकात अहमदाबाद में लगने वाली संघ की शाखाओं में हुई। हालांकि दोनों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में काफी अंतर था। मोदी गरीब परिवार से आते थे, वहीं अमित शाह संपन्न घराने के थे। जब दोनों युवा हुए तो दोनों ने अलग-अलग राह पकड़ ली। मोदी ज्ञान की तलाश में हिमालय की ओर चले गए, वहीं दूसरी तरफ शाह संघ से जुड़े रहते हुए अपने पारिवारिक व्यापार करने लगे रहे। हालांकि ये दोनों आज भारतीय राजनीति के सबसे सफल चेहरे हैं।



अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी
भारतीय जनता पार्टी के अतीत में जाते हैं तो अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी का नाम सामने आता है। ये जोड़ी भी संघ की शाखाओं में ही बनी है। 1951 में ये जोड़ी भारतीय राजनीति की मुख्यधारा में शामिल हुई। इस जोड़ी ने 1975 में आपातकाल विरोधी आंधी के बाद अपनी सांगठनिक क्षमता का शानदार उपयोग किया और 80 के दशक में जनसंघ को भाजपा बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह इस जोड़ी का ही करिश्मा था कि दो दर्जन से भी अधिक दल एनडीए की सरकार में शामिल थे और इन सभी को अटल-आडवाणी पूरी तरह स्वीकार्य रहे। इस बीच दोनों की आपसी होड़ का कोई मामला शायद ही कभी सामने आया हो।



लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार
लालू प्रसाद के साथ ही बिहार में सत्ता की राजनीति की शुरूआत करने वाले नीतीश कुमार लगभग दो दशक बाद फिर से लालू प्रसाद के साथ आए हैं। दो दशक तक राजनीति में जानी-दुश्मन की तरह रहे बिहार के इन दोनों कद्दावर नेताओं की जोड़ी एक बार फिर से अस्तित्व में आ चुकी है। इससे पहले लालू प्रसाद के संग सत्ता की सियासत की शुरूआत करने वाले नीतीश कुमार मेहनत करने और लालू प्रसाद को बिहार से उखाड़ फेंकने के लिए ही भाजपा के साथ जाते रहे। हालांकि अब राजनीतिक हालात के बदलाव और बिहार की राजनीति में अपने अस्तित्व को बचाए रखने की चुनौती ने ही उन्हें फिर से लालू प्रसाद के साथ ला दिया है।

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