18 साल में दो बच्चों की जिम्मेदारी
उनके माता-पिता ने उनकी 16 वर्ष की उम्र में ही शादी कर दी और 18 की छोटी उम्र में ही उन पर दो बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी आन पड़ी थी। उनके पति किसान थे। 1985 से 1990 तक ज्योति ने खेतों और खदानों में दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम किया। उन्हें प्रतिदिन 5 रुपए की दिहाड़ी मिलती थी। वे बताती हैं कि उनके पास कभी इतने पैैसे नहीं होते थे कि वे अपने बच्चों की दवा या खिलौने खरीद सकें। एक कमरे के संयुक्त परिवार में उन्होंने गरीबी के अलावा घरेलू हिंसा (Domestic Violence) और पति से रोज के झगड़े भी फांके के साथ झेले। परेशान होकर उन्होंने दो बार आत्महत्या का प्रयास भी किया लेकिन बच्चों की चिंता ने उन्हें रोक लिया।
रात्रि स्कूल ने बदली जिंदगी
क्योंकि ज्योति उन गिनी-चुनी दिहाड़ी मजदूरों में थीं जो पढ़-लिख सकती थीं, इसलिए उन्होंने नेहरु युवा केन्द्र मिशन के तहत संचालित होने वाले रात्रि स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया। यहां उन्हें 120 रुपए का मासिक वेतन मिलता था। इसके अलावा उन्होंने वारंगल के गांव-गांव में जाकर लड़कियोंं को सिलाई सिखाने का काम भी किया। इतना ही नहीं वारंगल से 70 किमी दूर वे रोज ट्रेन से जाकर एक स्कूल में लाइब्रेरियन का काम भी करती थीं। 22 साल की उम्र में उन्होंने अपना मंगलसूत्र बेचकर ट्रेन के सफर के दौरान साडिय़ां और कपड़े बेचने शुरू किए। इस तरह वे मासिक 2 हजार रुपए से ज्यादा कमाने लगीं। संघर्ष के दिनों में भी ज्योति ने पढऩा नहीं छोड़ा और डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ओपन यूनिवर्सिटी से 1994 में बीए की डिग्री पास की। उन्होंने टीचर की नौकरी के दौरान जिंदगी में पहली बार अपने लिए 135 रुपए की दो साड़ी खरीदी थीं जो उन्होंने आज भी अपने पास संभाल के रखी है।
अमरीका जाने का सपना बुना
बीए पास करते ही उन्होंने कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर पाठ्यक्रम में एडमिशन ले लिया। दूसरे टीचर्स के लिए उन्होंने एक चिट फंड भी शुरू किया था जिससे वे 25 हजार रुपए महीना कमाती थीं। इस पैसे को उन्होंने अअमरीका जाने के लिए बचाना शुरू कर दिया क्योंकि उन दिनों कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर के लिए अमरीका से बेहतर कोई देश नहीं था। उन्होंने अपने वरिष्ठ प्रोफेसरों और साथियों की मदद से अमरीका के वीजा के लिए आवेदन किया। अपनी दोनो बेटियों को आंध्रा के एक मिशनरी हॉस्टल में छोड़कर वे अमरीका चली गईं। लेकिन यहां भी जिंदगी आसान नहीं थी। अंग्रेजी न बोल पाने के कारण उन्हें सर्वाइव करने के लिए छोटे-मोटे काम भी करने पड़े। वे यहां एक गुजराती परिवार के साथ पेइंग गेस्ट के तौर पर रुकीं और 350 डॉलर किराया देती थीं।
जब मेहनत से बनाया मुकाम
ज्योति ने अमरीका के शुरुआती कुछ वर्षें में टिके रहने के लिए न्यूजर्सी में सेल्स गर्ल, मोटेल में रूम सर्विस, आया, पेट्रोल पंप पर काम करने के अलावा गोदाम में सामान ढोने का भी काम किया। ऐसे काम के जरिए उन्होंने 2001 तक करीब 40 हजार डॉलर की बचत की। इन पैसों से उन्होंने counselling कंपनी की शुरुआत की जो वीजा प्रोसेसिंग का काम करती थी। ‘की सॉफ्टवेयर सॉल्यूशंस’ नाम की उनकी इस कंपनी ने समय के साथ इतने मजबूत कदम जमाए कि आज ज्योकि कि यह कंपनी बीते साल 23 मिलियन डॉलर के रेवेन्यू के साथ अमरीका की सफलतम सॉॅफ्टवेयर कंपनी में शामिल है।
ज्योति रेड्डी एक नजर में
-कभी नंगे पांव स्कूल जाने वाली ज्योति आज मर्सिडीज बेंज़ में सफर करती हैं
-जिंदगी दो साडिय़ों में गुजारने वाली ज्योति के पास आज 5000 से ज्यादा साडिय़ां हैं
-कभी दिहाड़ी मजदूर के रूप में 5 रुपए कमाने वाली ज्योति आज एक आइटी कंपनी की मालिक हैं
-महीने का 120 रुपए कमाने वाली ज्योति की कंपनी की वर्तमान में कीमत करीब 1.10 अरब रुपए है
-1 कमरे में गरीबी देखने वाली ज्योति के पास आज अमरीका में 6 औैर भारत में 2 आलीशान घर हैं