आर्सेन और उसकी 11 साल की बहन एल्सा अपने माता-पिता के सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर की जाने वाली तस्वीरों, कमेंट्स और जानकारी के बारे में बेबाक राय देते हैं। यह उस पीढ़ी के प्रतिनिधी हैं जो डिजिटल दुनिया में अपनी ऑनलाइन उपस्थिति को लेकर बहुत ज्यादा फोकस्ड हैं और इसे कौन शेयर करेगा इस पर भी पूरी नजर रखते हैं। जनरेशन जी आज इस बात को लेकर चिंतित है कि सूचना युग में उनकी प्रोफाइल और ऑनलाइन जानकारी उनकी कैसी छवि बनाती है। वे अपनी सोशल लाइफ और डिजिटल पहचान को लेकर इसलिए भी जागरूक हें क्योंकि कॉलेज में एडमिशन साक्षात्कार या नौकरी के वक्त अगर नियोक्ता सोशल मीडिया अकाउंट को चेक करेंगे तो वे इन तस्वीरों को देखकर क्या महसूस करेंगे? क्योंकि अब डिजिटल प्रोफाइल को भी इंटरव्यू के समय चेक किया जाता है। इसलिए युवा अपनी प्रभावी छवि चाहते हैं।
जनरेशन जेड पीढ़ी अपनी ऑनलाइन छवि खुद गढऩा चाहती हैं। इसलिए वे अपनी निजी तस्वीरों, खास पलों और जानकारियों पर ज्यादा से ज्यादा कंट्रोल चाहते हैं। 11 से 15 साल तक के इन किशोरों का मानना है कि यह मेरी पहचान और भविष्य के लिए मायने रखता है। अभिभावकों को भी ‘किड्स अप्रूव्ड’ को अहं से जोडऩे की बजाय बच्चों की सुरक्षा के रूप में देखना होगा।
बच्चों के किशोर होने पर उनके अपने अधिकारों के बारे में जानने की ललक बढ़ जाती है। पोज करने और सोने में फर्क है। चाइल्ड अब्यूज के मामलों को देखने वाली वकील स्टेसी स्टीनबर्ग का कहना है कि इन दिनों अभिभावकों में ‘शेयरटिंग’ इस कदर शौक है कि वे अपने बच्चों की कैसी भी तस्वीरें ऑनलाइन साझा करते हैं। लेकिन सवाल यह है कि ये तस्वीरें हैं किसकी? इसलिए माता-पिता भी तस्वीरें शेयर करने से पहले पूछने लगे हैं। यह एक तरह से कॉपीराइट का पारिवारिकरण है।