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आपको भी सोशल मीडिया की लत है, तो इन बातों को जरूर याद रखिए

टेक कंपनियों के लिए उपभोक्ता न रहकर ‘उत्पाद’ बन गए हैं
-डॉक्यूमेंट्री बताती है सोशल मीडिया के जरिए कैसे इंटरनेट हमारे दिमाग और घर में घुस गया है

Oct 14, 2020 / 12:37 am

pushpesh

आपको भी सोशल मीडिया की लत है, तो इन बातों को जरूर याद रखिए

न्यूयॉर्क. डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता जेफ ओर्लोव्स्की दुनिया के विनाश को लेकर कई बार चिंता जाहिर कर चुके हैं। 2012 में उनकी फिल्म ‘चेजिंग आइस’ में पिघलते ग्लेशियर्स पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को दर्शाया। इसी तरह 2017 में ‘चेजिंग कोरल’ में उन्होंने कम हो रही प्रवाल भित्तियों पर चिंता व्यक्त की है। उनकी नई डॉक्यूमेंट्री ‘द सोशल डिलेमा’ इनसे भी बड़े खतरे की ओर इशारा करती है, वह है सोशल मीडिया। ‘सोशल डिलेमा’ बताती है कि सोशल मीडिया कैसे इंसानी वजूद के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
सोशल मीडिया और बढ़ते स्क्रीन टाइम से गलत सूचना, हेरफेर, अवसाद और फोमो (एक प्रकार का सोशल मीडिया एडिक्शन) जैसे दुष्प्रभाव देखे जाते हैं। लेकिन तकनीकी जानकार ट्रिस्टन हैरिस की चिंता दूसरी है। पिछले दिनों सैन फ्रांसिस्को में उन्होंने कहा, सोशल मीडिया के कारण हम किसी गुडिय़ा की तरह बड़ी टेक कंपनियों के हाथों की कठपुतली बन गए हैं। हमें मछलियों की तरह काटकर बेचा जा रहा है। हैरिस कहते हैं, यदि हम अभी नहीं संभले तो ये हमें मानवता के अंत की ओर ले जाएगा। ‘द सोशल डिलेमा’ को देखने के बाद भी यही अहसास होता है। इसमें हैरिस के फुटेज के साथ सोशल मीडिया का मानवता को कुचलने के प्रभाव को दर्शाया गया है।
लाइक बटन बनाने वाले को भी अफसोस
अच्छी और बुरी प्रौद्योगिकी हमेशा बहस का विषय रहा है। हैरित मानते हैं, सोशल मीडिया खुद अस्तित्ववादी खतरा नहीं है, बल्कि यह वह तरीका है, जो मानवता को खतरे के करीब ले जाता है। फिल्म में सोशल मीडिया के कई शिल्पियों के विचारों का उल्लेख है। जैसे फेसबुक के पूर्व निदेशक टिम केंडल, लाइक बटन का आविष्कार करने वाले जस्टिन रोजेंस्टीन और यूट्यूब पर ‘रिकमंडेड वीडियो’ की संरचना तैयार करने वाले गुइलमी चेस्लॉट आदि। आज ये सभी अपने इन कामों को सही नहीं ठहराते।
उसी सांचे में ढल गए जैसा कंपनियां चाहती
टेक एक्सपर्ट कहते हैं कि हम अपना ज्यादातर समय सोशल मीडिया पर इसलिए बिताते हैं, क्योंकि हमारे पास विकल्प नहीं है? टेक कंपनियां अपने सम्मोहन में फंसाए रखने और हमारे हर मूवमेंट पर नजर बनाए रखने की प्रणाली विकसित करने पर बेशुमार धन खर्च कर रही हैं और मोटी कमाई कर रही हैं। हम उनके लिए उपभोक्ता न रहकर ‘उत्पाद’ बन गए हैं। जुकरबर्ग और सुसान वॉजिकी अरबपति बन गए और हमने परिवार, रिश्ते, ज्ञान, समय, खुशी सब छोडकऱ खुद को आभासी दुनिया के हवाले कर दिया। हम इस भयानक साजिश के मोहरे हैं। हम उसी सांचे में ढल गए, जैसा कंपनियां चाहती हैं।
सोशल मीडिया बदल रहा सामाजिक जीवन
वृत्तचित्र में ओर्लोव्स्की ने नाटक के जरिए प्रौद्योगिकी और पारिवारिक मूल्यों के बीच संघर्ष को रेखांकित किया है। आज परिवार के सदस्यों को खाने की टेबल पर एक-दूसरे की तरफ देखने तक की फुरसत नहीं। किशोर बेटी सोशल मीडिया पर व्यस्त है और बेटा तेज आवाज में वीडियो देखता है। यानी संस्कार छूट रहे हैं। फोन ने परिवार और दोस्तों के साथ बातचीत के तरीकों को बदल दिया है। ऐसा नहीं है कि इस बदलाव की जानकारी टेक दिग्गजों को नहीं है। फेसबुक सीईओ मार्क जुकरबर्ग मान चुके हैं कि सोशल मीडिया पर अभिभावक और कानूनविदों की निगरानी जरूरी है।

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