ऐप कैसे काम करता है
यह ऐप अधिकृत मोबाइल एजेंसी के सर्वर से जीपीएस के जरिए कॉर्डिनेट करता है। इसमें यदि कोई व्यक्ति कोरेंटाइन क्षेत्र से बाहर आता है तो वह स्वत: डिटेक्ट हो जाएगा। टै्रक करने के लिए ऐप और सर्वर को कॉन्फिगर किया जाता है, जिससे यूजर संक्रमित के संपर्क में आए व्यक्ति के मूवमेंट पर नजर रख सकता है, जो कोरंटाइन से आया है।
यह ऐप अधिकृत मोबाइल एजेंसी के सर्वर से जीपीएस के जरिए कॉर्डिनेट करता है। इसमें यदि कोई व्यक्ति कोरेंटाइन क्षेत्र से बाहर आता है तो वह स्वत: डिटेक्ट हो जाएगा। टै्रक करने के लिए ऐप और सर्वर को कॉन्फिगर किया जाता है, जिससे यूजर संक्रमित के संपर्क में आए व्यक्ति के मूवमेंट पर नजर रख सकता है, जो कोरंटाइन से आया है।
कोरोना की लड़ाई में उपयोगी
ये ऐप इसलिए भी उपयोगी है, क्योंकि कोरेंटाइन क्षेत्रों से बचकर जाने वाला व्यक्ति हजारों लोगों को जोखिम में डाल देता है। इस ऐप के जरिए अधिकारी वायरस के वाहक (संक्रमित) को टै्रक आसानी से कर सकते हैं, जिससे टीम की अनावश्यक भागदौड़ बचेगी और इस समय का उपयोग अन्य जरूरी कार्यों में किया जा सकता है।
ये ऐप इसलिए भी उपयोगी है, क्योंकि कोरेंटाइन क्षेत्रों से बचकर जाने वाला व्यक्ति हजारों लोगों को जोखिम में डाल देता है। इस ऐप के जरिए अधिकारी वायरस के वाहक (संक्रमित) को टै्रक आसानी से कर सकते हैं, जिससे टीम की अनावश्यक भागदौड़ बचेगी और इस समय का उपयोग अन्य जरूरी कार्यों में किया जा सकता है।
कोरोना के आते ही जुट गए
ऐप बनाने वाली टीम पहले से ऐसे ऐप को विकसित करने की तैयारी में थी, जो कोरोना जैसी दूसरी महामारी से मानव जाति को बचाने में मददगार हो। इसी बीच कोरोना भारत में आ गया। अश्विन गामी कहते हैं, हमने अपना ध्यान कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने की दिशा में मोड़ दिया और एक सप्ताह के भीतर इस ऐप को तैयार किया। गामी कहते हैं कि इस ऐप को एंड्रॉयड वर्जन के लिए तैयार कर दिया गया है, लेकिन अभी लॉन्चिंग बाकी है।
ऐप बनाने वाली टीम पहले से ऐसे ऐप को विकसित करने की तैयारी में थी, जो कोरोना जैसी दूसरी महामारी से मानव जाति को बचाने में मददगार हो। इसी बीच कोरोना भारत में आ गया। अश्विन गामी कहते हैं, हमने अपना ध्यान कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने की दिशा में मोड़ दिया और एक सप्ताह के भीतर इस ऐप को तैयार किया। गामी कहते हैं कि इस ऐप को एंड्रॉयड वर्जन के लिए तैयार कर दिया गया है, लेकिन अभी लॉन्चिंग बाकी है।
दिल्ली आइआइटी स्टूडेंट्स ने एप डवलप किया
दिल्ली आइआइटी के पांच छात्रों ने भी ऐसा एप्लीकेशन तैयार किया है। यह ऐसे लोगों की पहचान करेगा, जो वायरस संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आया है। एप्लीकेशन ब्लूटूथ तकनीक से काम करता है और संक्रमित के करीब जाने वाली आबादी को टै्रक करने में मदद करता है।
दिल्ली आइआइटी के पांच छात्रों ने भी ऐसा एप्लीकेशन तैयार किया है। यह ऐसे लोगों की पहचान करेगा, जो वायरस संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आया है। एप्लीकेशन ब्लूटूथ तकनीक से काम करता है और संक्रमित के करीब जाने वाली आबादी को टै्रक करने में मदद करता है।