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लकवाग्रस्त बेटे के इलाज़ के लिए 98 साल के पिता कर रहे हैं सिलाई का काम, उठा रहे हैं परिवार का पूरा खर्च

locationनई दिल्लीPublished: Oct 10, 2017 03:47:06 pm

इस बुजुर्ग पिता बाबूराव जैन की आंखों में हमेशा पानी रहता है, अब इस पानी को हम चाहे आंसुओं का नाम दें या उम्मीद की गंगा…

stand on his feet
“पिता है तो बाज़ार के सब खिलौने अपने हैं” जी हां! यह कथन सिर्फ कहावतों तक ही सिमटा हुआ नहीं है बल्कि यह सबसे बड़ा सच है क्योंकि एक पिता ही है जो अपने बच्चों के लिए क्या कुछ नहीं करता! उन्हें सारी ख़ुशियां देता है, उनके हिस्से के सारे दु:ख खुद ले लेता है और उन्हें बेहतर से बेहतर जीवन देने की सारी कोशिशें करते नज़र आता है। जहां मां अपने बच्चे से ढेर सारा प्यार करती है, वहीं पिता के साये में हर बच्चा सुरक्षित महसूस करता है। अपने बच्चे के अच्छे भविष्य के लिए हर पिता कड़ी मेहनत करता है।
एक पिता अपनी सारी जिंदगी यह सोचकर जीता है कि उम्र के आखिरी पड़ाव पर उसका परिवार सेवा करेगा। लेकिन कई बार ऐसा देखने को मिला है कि उसकी सभी आशाएं उसके परिवार के हालातों पर खत्म हो जाती हैं और साथ ही टूट जाती है संघर्षों के ख़त्म होने की उम्मीद।
एक उम्मीद जो टूटती नहीं-

आज हम आपको एक ऐसे ही पिता की कहानी से आपको रूबरू करा रहे हैं जिनका लकवाग्रस्त बेटा पलंग पर है, घर में विधवा बेटी और उसके बच्चे हैं जो उन पर ही आश्रित हैं। पूरे परिवार का भार टिका है इस 98 साल के बुजुर्ग पिता के कन्धों पर, जिसका नाम है बाबूराव जैन।
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जिस उम्र में लोग चारपाई पकड़ लेते हैं या यूँ कहें कि इस उम्र तक लोग पहुँच भी नहीं पाते, उस उम्र में चुन्नीढाना के बुजुर्ग बाबूलाल जैन अपने पूरे परिवार के रीढ़ की हड्डी बने हुए हैं। परिवार में 60 वर्षीय बेटा प्रकाश, बहू और एक बेटी है। अगर फ्लैशबैक की बात करें तो करीब पांच साल पहले तक सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। बेटे का दूध का व्यापार था जिससे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती थी लेकिन साल 2012 के अंत में कुछ ऐसा हुआ कि बाबूलाल के सारे सपने चकनाचूर हो गए। एक दिन अचानक बेटे के शरीर का बांया हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया तभी से वह पलंग पर है।
सिलाई कर करते हैं परिवार का पोषण-

बेटे की दवाइयों का हर महीने का खर्च 1200 रुपया है, जिसे बाबूलाल बिना किसी की मदद लिए खुद ही पूरा कर रहे हैं, दवाइयों और परिवार का पेट पालने के लिए वे सिलाई मशीन चलाकर थोडा बहुत कमा लेते हैं ताकि अपने बेटे को दोबारा पैरों पर खड़ा करने का सपना वो अपने जीते-जी पूरा कर सकें। बेटे को फिर से अपने पैरों पर खड़ा देखने का सपना ही उन्हें इस उम्र में सुई में धागा डालने का हुनर बखूबी सिखा रहा है।
आँखों में आंसू या उम्मीद की गंगा-

इस बुजुर्ग पिता बाबूराव जैन की आंखों में हमेशा पानी रहता है, अब इस पानी को हम चाहे आंसुओं का नाम दें या उम्मीद की गंगा। लेकिन उनका कहना यही है कि शरीर कब तक उनका साथ वो कह नहीं सकते। लेकिन उन्हें 98 साल की उम्र में सबसे बड़ी चिंता यह है कि उनके बाद उनके बेटे का क्या होगा?

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