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‘मातृत्व’ का पश्चताप… क्यों?

Published: Sep 02, 2016 11:20:00 am

Submitted by:

Deepika Sharma

आपकी मां आपको भूखा नहीं देख पाती, अगर आपको चोट लगे तो दर्द मां को होता है…। दुनिया की लगभग हर मां अपने बच्चों के लिए कुछ ऐसी ही भावनाएं रखती है। लेकिन क्या हो अगर वह कहे, ‘हां, मुझे पछतावा है मां बनने का…’

motherhood

regretting motherhood

दीपिका 
oped@in.patrika.com

हिंदी सिनेमा, साहित्य, हमारे रीति-रिवाज या बुजुर्गों द्वारा दिये जाने वाले आशीर्वाद, बातें चाहे जिस माध्यम में हो, हमारे देश में ‘मां’ के लिए यही प्रतिमान स्थापित किए गए हैं कि वह ममता की मूरत और त्याग की देवी है। सिर्फ भारत नहीं, बल्कि कमोबेश सभी देशों में मां का यही रूप लोगों को नजर आता है। मातृत्व किसी भी नारी की संपूर्णता के लिए जरूरी है…। 
लेकिन हाल ही में एक इजरायली रिसर्चर की किताब ने पूरी दुनिया में इस विषय पर एक नई चर्चा को जन्म दिया है। इस किताब में 23 मांओं का अनुभव शामिल हैं, जो बताती हैं कि वह अपने बच्चे से बेहद प्यार करती हैं, लेकिन फिर भी उन्हें मां बनने का दुख है।
 इस किताब ने इजरायल के बाद अब जर्मनी, स्वीडन, एस्टोनिया, स्विट्जरलैंड, फिनलैंड और ऑस्ट्रेलिया तक इस विवाद को पहुंचा दिया है।

आखिर क्या है रिग्रेटिंग मदरहुड
इसी वर्ष फरवरी में जर्मनी में ‘रिग्रेटिंग मदरहुड’ नाम से किताब छपी है। यह किताब ओर्ना डोनाथ के 2015 में किए गए शोध निबंधों पर आधारित है। इसमें उन्होंने इजरायल की 23 महिलाओं का इंटरव्यू किया है। इन महिलाओं ने बताया कि कैसे वह भले ही अपने बच्चों से बहुत प्यार करती हैं, लेकिन कहीं न कहीं उन्हें अपने मां बनने के फैसले पर पछतावा है। 


क्यों नहीं हो सकता, बिना पाप के पछतावा : ओर्ना डोनाथ
जब कोई व्यक्ति पाप कर पछताए तो हम उसे आसानी से स्वीकार लेते हैं, क्योंकि उसके इस पछतावे को उसकी आत्मानुभूति से जोड़ कर देखा जाता है। पर यदि बिना पाप के पछतावा हो तो यह सामाजिक रूप से विवादास्पद स्थिति है। कोई भी समाज अपने विकास के लिए हमें हमेशा आगे बढऩे की सलाह देता है, लेकिन यदि हम किसी चीज के लिए पछताएं तो उसे यह बेकार लगता है।

 कोई कितना भी कहे कि हर व्यक्ति अपनी कहानी खुद लिखता है, पर यह भी उतना ही सच है कि हमारे फैसलों में समाजिक दबाव व मान्यताओं की अहम भूमिका होती है। यह माना जाता है कि मातृत्व पर पछताना मानव की परिधि से बाहर की चीज है। 

अफसोस है मुझे मां बनने का
‘मुझे गलत मत समझिए, मैं अपने बच्चों से बेहद प्यार करती हूं, लेकिन इसके लिए मुझे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक, काफी कीमतें चुकानी पड़ी हैं। – टाम्मीवाजेंडा नामक वेबसाइट पर
वहीं पेशे से बैंक कर्मचारी और एक बेटे की मां ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि यह सही है कि किसी न किसी पल पर या कई बार यह अहसास होता है कि काश, मां बनने का फैसला न लिया होता। 


मातृत्व चुनने का हक है महिला को 
‘कोख’ वह अवयव है जो नारी के अस्तित्व के साथ जुड़ा है। उसे मां बनना है या नहीं बनना है यह पूरी तरह उसका फैसला है। नारी को कैसे रहना चाहिए, उसके परिधान यहां तक कि उसके नाखून तक को रंगने की बात की जाती है। लेकिन यदि एक मां अपने मातृत्व पर सवाल कर रही है तो उसे इस पर बात करने का अधिकार होना चाहिए और इस विषय पर पूरी बात होनी चाहिए।
 चित्रा मुद्गल, लेखिका

जिम्मेदारी और जवाबदेही के साथ आता है मातृत्व
जब भी आप किसी चीज का सृजन करते हैं तो उसकी रक्षा और जवाबदेही भी आपकी ही होती है। यदि इस जिम्मेदारी में कुछ तकलीफें आती हैं तो पछतावा होता है। यदि महिला पर बच्चा पैदा करने की जिम्मेदारी है तो इसे उठाने या न उठाने का फैसला भी उसी का होना चाहिए।
 – अर्चना शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार





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